नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजधानी दिल्ली के मयूर विहार फेज-2 इलाके में बने तीन मंदिरों को डीडीए द्वारा तोड़ने के लिए शुरू की गई कार्रवाई के खिलाफ दाखिल याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने डीडीए द्वारा की जा रही कार्रवाई के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं को अपनी मांग को लेकर उच्च न्यायालय जाने की छूट दे दी।
जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि हम इस मामले में फिलहाल कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन से पूछा कि उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे शीर्ष अदालत में याचिका क्यों दाखिल किया। इस पर, याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि इस अदालत ने जहांगीरपुरी मामले में हस्तक्षेप करते हुए आदेश पारित किया था। हालांकि पीठ ने मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए, याचिकाकर्ताओं को अपनी मांग को लेकर उच्च न्यायालय जाने को कहा। साथ ही, डीडीए के बागवानी विभाग द्वारा मंदिरों को तोड़ने के लिए डीडीए द्वारा की जा रही कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने पीठ से मामले में हस्तक्षेप करने और डीडीए को कार्रवाई करने से रोकने की मांग की। मयूर विहार फेज 2 में पूर्वी दिल्ली काली बाड़ी समिति, श्री अमरनाथ मंदिर संस्था, श्री बद्री नाथ मंदिर की समितियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इन याचिकाओं में मंदिरों को तोड़ने के लिए 19 मार्च को डीडीए द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के पीठ से कहा कि डीडीए के अधिकारियों द्वारा बुधवार रात 9 बजे सार्वजनिक नोटिस चिपकाया गया था। उन्होंने कहा कि गुरुवार को सुबह ही करीब 500 सुरक्षा बलों के अधिकारी मंदिरों को तोड़ने पहुंच गए। पीठ को बताया गया कि न तो डीडीए और न ही, किसी धार्मिक समिति के किसी भी अधिकारी द्वारा मंदिर समितियों को पक्ष करने को काई मौका दिया। याचिका में कहा गया है कि मंदिर 35 साल पुराने हैं और डीडीए ने काली बाड़ी समिति मंदिर को मंदिर के सामने की जमीन पर दुर्गा पूजा आयोजित करने की अनुमति भी दी थी। याचिका में कहा गया है कि डीडीए ने अपनी मर्जी से मंदिरों को तोड़ने का फैसला किया है, जो इस न्यायालय द्वारा पारित फैसले के साथ-साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 में निहित प्रावधानों का भी पूरी तरह से उल्लंघन है। पीठ को बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक 2009 से पहले बने मंदिरों को नहीं हटाया जा सकता है।