-मौसम की मार ने केले की खेती से किसानों को कमर तोड़ दी, लागत बढी़
– केले पर एमएसपी तय हो, भंडारण की सुविधा मिले
कुशीनगर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले की मुख्य फसल गन्ना रही है। अब यहां गन्ने की फसल की लागत बढ़ जाने के बाद केला की तरफ किसानों का झुकाव बढा है।यद्यपि इस जिले के कुछ हिस्सों में हल्दी की फसल किसान तैयार करते हैं। केला यूं तो नकदी फसल के रुप में आने लगा है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। लगातार बढ़ती लागत, गिरते बाजार मूल्य, खराब मौसम ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। एक तो उन्हें फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है, दूसरे, परिवहन और भंडारण की चुनौतियां उनकी परेशानी बढ़ा रही हैं।
कुशीनगर जिले में 1600 हेक्टेयर में केले की खेती जाती है। तकरीबन 10 हजार किसानों के लिए यह नकदी फसल है। एक एकड़ भूमि में केले की खेती करने पर 1.5 लाख रुपये की लागत आती है। अगर कोई आपदा या अन्य समस्या न हो तो तैयार फसल से 2.5 लाख रुपये की आमदनी होती है यानि एक लाख रुपये का मुनाफा होता है, लेकिन मौजूदा स्थितियों से केले की खेती करने वाले किसान चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
किसानों ने बताया कि कुशीनगर जिले में कभी बड़ी संख्या में किसान गन्ने की खेती करते थे। एक-एक कर चीनी मिलें बंद होने लगीं तो गन्ने की जगह किसानों ने केले को नकदी फसल के रूप में विकल्प बनाया। यहां तैयार केले की फसल लखनऊ, कानपुर, मेरठ, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, मुंबई व पड़ोसी देश नेपाल तक जाती है। पिछले कुछ वर्षों में केला उत्पादन की लागत में भारी वृद्धि हुई है। खाद-बीज, कीटनाशकों और मजदूरी की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। बाजार में कीमत स्थिर नहीं रह पाती है। मंडी न होने से किसानों को इसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता है। यहां तक कि लागत निकालने में भी कभी-कभी दिक्कत होती है। भंडारण की व्यवस्था न होने से भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
किसानों का कहना है कि केला उत्पादन के लिए अनुकूल जलवायु की आवश्यकता होती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मौसम में आए बदलावों ने किसानों की परेशायां बढ़ा दी हैं। असमय बारिश और तेज आंधी ने पिछले दो-तीन साल में केले की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है। किसानों ने बताया कि हम पूरे साल मेहनत कर फसल तैयार करते हैं, लेकिन तेज आंधी और बारिश से फसल बर्बाद हो जाती है। सरकार द्वारा फसल नुकसान होने पर मुआवजे का प्रावधान है, लेकिन इसमें भी बदलाव की जरूरत है। मौजूदा समय की लागत कुछ और है, जबकि क्षतिपूर्ति आज भी 1973 के रेट से दी जाती है। प्रति एकड़ 2200 रुपये के हिसाब से ही मुआवजा दिया जाता है, जो लागत के सापेक्ष कुछ भी नहीं है। किसानों का आरोप है कि बिचौलिए और व्यापारी उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं। जब फसल तैयार होती है तो व्यापारी बहुत कम दाम पर खरीदारी करते हैं और फिर बाजार में ऊंचे दामों पर बेचते हैं। वे सीधे बाजार में ले फसल ले जाना चाहते हैं तो वहां भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सरकार द्वारा केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन किसानों तक इनका लाभ सही तरीके से नहीं पहुंच पा रहा है। किसानों ने कहा कि सरकार उनके लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करे और उन्हें बिचौलियों से बचाने के लिए सीधी खरीद की व्यवस्था करे। केला जल्दी खराब होने वाली फसलों में से एक है। इसलिए इसे जल्द ही बाजार तक पहुंचाना भी जरूरी होता है, लेकिन किसानों के पास न तो पर्याप्त भंडारण की सुविधा है और न ही उचित परिवहन साधन। किसानों की मांग है कोल्ड स्टोरेज की सुविधाएं बढ़ाई जाएं ताकि किसान अपनी फसल सुरक्षित रख सकें। सस्ते ऋण और अनुदान की सुविधा मिले, जिससे बढ़ती लागत के बोझ को कम किया जा सके।
कुशीनगर जिले का केला पड़ोसी देश नेपाल तक भेजा जाता था। परिवहन लागत बढ़ने के कारण किसान अब नेपाल तक केले की फसल नहीं भेज पा रहे हैं। किसान दिवाकर कुशवाहा का कहना है कि नेपाल तक केला पहुंचाने के बाद हमें अच्छा खासा मुनाफा होता था। लेकिन भंसार में लगातार वृद्धि होने के कारण माल नेपाल नहीं भेज पा रहे हैं। इससे आमदनी कम हुई है।
केला किसानों के सामने पनामा विल्ट (फ्यूजेरियम विल्ट) बीमारी बड़ी चुनौती बन गई है। यह बीमारी फसल को जड़ से कमजोर कर देती है, जिससे पौधे सूखकर नष्ट हो जाते हैं। किसानों का कहना है कि इस बीमारी से उत्पादन में भारी गिरावट आई है, जिससे उनकी आय प्रभावित हो रही है। किसान उमेश गुप्ता ने बताया कि हमने उम्मीद से केला लगाई था, लेकिन पनामा विल्ट की वजह से आधी फसल बर्बाद हो गई। दवाओं के बावजूद कोई फायदा नहीं हो रहा। शिकायत करने पर कृषि वैज्ञानिक ट्राईकोर्डमा का उपयोग करने की सलाह देते हैं। इसके उपयोग के बाद भी इस बीमारी से केले को छुटकारा नहीं मिल पा रही है। वहीं, कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह फफूंद जनित रोग मिट्टी के माध्यम से फैलता है और लंबे समय तक सक्रिय रहता है। केला किसानों ने सरकार से बीमारी की रोकथाम के लिए विशेष सहायता देने और प्रभावित किसानों को मुआवजा देने की मांग की ताकि उनकी आर्थिक स्थिति न प्रभावित हो सके।
केले की खेती करने वाले किसान मजदूरों की कमी से भी जूझ रहे हैं। खेतों में गुड़ाई, सिंचाई, कटाई और ढुलाई के लिए पर्याप्त मजदूर नहीं मिल रहे। इससे उत्पादन पर असर पड़ रहा है। जो मजदूर मिल भी रहे हैं, वे अधिक मजदूरी की मांग कर रहे हैं। इसके कारण लागत लगातार बढ़ रही है। किसान बाबूराम कुशवाहा निवासी वनवीरपुर ने कहा कि केले की फसल की समय पर देखभाल चाहिए। लेकिन मजदूरों की कमी से कई काम अटक रहे हैं। इससे पैदावार और गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है। मजबूरी में किसान मजदूरों के बजाय ट्रैक्टर और अन्य मशीनों का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन केले की कटाई के लिए कुशल मजदूरों की जरूरत होती है । जो मशीनों से संभव नहीं है। प्रशासन से किसानों की मांग है कि मजदूरों की उपलब्धता और सब्सिडी की व्यवस्था की जाए।