Tuesday, November 11, 2025
व्हाट्सएप पर हमसे जुड़ें

छठ पर्व 2025 : सूर्य उपासना और मातृत्व की तपस्या का प्रतीक – तिथि, कार्यक्रम और धार्मिक महत्व

लखनऊ, अजय कुमार | वेब वार्ता 

लोक-आस्था का महापर्व छठ पर्व इस वर्ष 2025 में 25 अक्टूबर शनिवार से शुरू होकर 28 अक्टूबर मंगलवार तक मनाया जाएगा। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का प्रतीक है, जिसमें व्रती महिलाएं परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए कठोर तपस्या करती हैं। उत्तर भारत विशेषकर बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में यह पर्व अत्यंत श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है। यह चार-दिनों का पर्व है — नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य। पूजा का उद्देश्य सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करके परिवार की सुख-समृद्धि और संतान के कल्याण की कामना करना है। ठेकुआ, खीर-रोटी, मौसमी फल, गन्ना और नारियल इस पूजा के प्रमुख प्रसाद हैं। इस पर्व को अब देशभर में दिल्ली, झारखंड, छत्तीसगढ़ और यहां तक कि विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा भी बड़ी आस्था से मनाया जा रहा है।

तिथि व कार्यक्रम

25 अक्टूबर (शनिवार) – नहाय-खाय

पहला दिन ‘नहाय-खाय’ कहलाता है। इस दिन व्रती प्रातः स्नान कर सात्विक भोजन बनाती हैं। लौकी-भात या चना दाल का भोजन प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है। इसी दिन से व्रत की पवित्रता आरंभ होती है और व्रती स्वयं को शुद्ध और संयमित जीवन के लिए तैयार करती हैं।

26 अक्टूबर (रविवार) – खरना

दूसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जल व्रत रखती हैं। शाम को गुड़ और चावल की खीर-रोटी बनाकर पूजा करती हैं। यह प्रसाद परिवार और आसपास के लोगों में बांटा जाता है। इसके बाद 36 घंटे का कठिन निर्जल व्रत शुरू होता है।

27 अक्टूबर (सोमवार) – संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन व्रती सूर्यास्त के समय घाटों पर जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इस पूजा में ठेकुआ, फल, नारियल और मौसमी प्रसाद चढ़ाया जाता है। घाटों पर दीपों की रौशनी, भक्ति गीतों और श्रद्धालुओं की आस्था से अद्भुत दृश्य दिखाई देता है।

28 अक्टूबर (मंगलवार) – उषा अर्घ्य

अंतिम दिन व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर अपने व्रत का समापन करती हैं। यह क्षण नए जीवन और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। व्रत पारण के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है और सभी एक-दूसरे को छठ पर्व की शुभकामनाएं देते हैं।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

छठ पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है; यह प्रकृति-उपासना, सूर्य-शक्ति और मातृत्व की तपस्या का उत्सव है। सूर्य देव को जीवन-दायिनी ऊर्जा के स्रोत के रूप में देखा जाता है और छठी मैया को बच्चों तथा परिवार की रक्षा-कर्त्री देवी माना जाता है।

यह पर्व सरलता और स्वच्छता की भावना को भी प्रोत्साहित करता है। इसमें प्रतिमा स्थापित नहीं की जाती; पूजा प्राकृतिक जल-स्रोतों के पास होती है। इस प्रकार यह पर्यावरण-अनुकूल धार्मिक अनुष्ठान कहलाता है।

व्रती महिलाएं कठोर व्रतं करती हैं, निर्जल उपवास रखती हैं, जल-कुंभ में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं। यह उनकी मातृत्व, त्याग और समर्पण का प्रतीक है। सामाजिक दृष्टि से यह पर्व जात-पांत तथा आर्थिक भेदभाव के पार- जाकर समरसता एवं समानता का संदेश देता है।

प्रयोजन और प्रसाद

छठ पूजा के दौरान विशेष तरह के प्रसाद बनाए जाते हैं जिसमें प्रमुख हैं— ठेकुआ, खीर-रोटी, मौसमी फल, गन्ना, नारियल। ये प्रसाद सात्विक होते हैं, बिना प्याज-लहसुन के बनाए जाते हैं, मिट्टी या लकड़ी के बर्तन में तैयार किये जाते हैं।

ठेकुआ विशेष रूप से इस पर्व का सांकेतिक प्रसाद है। गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनाया जाने वाला यह व्यंजन श्रद्धा-भाव से तैयार किया जाता है।

प्रचलन और विस्तार

परम्परागत रूप से यह पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाता रहा है। लेकिन आज दिल्ली, आत्म-भारत के अन्य राज्यों और विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय कम-से-कम इस पर्व को मनाते हैं।

भारतीय रेलवे ने इस वर्ष 2025 के छठ-त्योहार को ध्यान में रखते हुए 150 से अधिक विशेष ट्रेनें चलाई हैं ताकि लाखों लोग अपने गृह-क्षेत्रों में समय-पर पहुंच सकें।

तैयारी एवं सावधानियाँ

छठ पूजा निर्माण-और-सफाई पर विशेष जोर देती है। व्रती महिलाएं पूजा स्थल के आसपास सफाई करतीं हैं, जल-स्रोतों को स्वच्छ बनातीं हैं तथा शाम-सुबह उपवास एवं अर्घ्य-दाय के लिए तैयार होती हैं।

उपवास के दौरान जल का त्याग अत्यंत कठिन माना जाता है। इसलिए स्वास्थ्य-सावधानियों की अनिवार्यता है, विशेषकर वृद्ध, रोगी या गर्भवती महिलाएं तय-रूप से चिकित्सकीय सलाह लें।

छठ पूजा का आज का सन्दर्भ

आज के युग में छठ पर्व ने धर्म-संस्कृति के साथ-साथ सामाजिक एवं पर्यावरणीय संदेश भी दिया है। यह सूर्य-उपासना हमें प्राकृतिक-चक्र और ऊर्जा-चक्र की याद दिलाती है। हरियाली-घाट सफाई, जल-शुद्धि और सामाजिक समरसता इस पर्व की विशेषता बन चुकी है।

निष्कर्ष

छठ पर्व 2025 हमारे लिए एक यादगार अवसर है—सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना, मातृत्व एवं परिवार की दीर्घायु के लिए समर्पण, और प्राकृतिक-संसाधनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना। यह सिर्फ धार्मिक पर्व नहीं बल्कि जीवन-दृष्टि का उत्सव है, जहाँ आस्था, तपस्या और सामुदायिक भावना मिलकर हमें एक-दूसरे के नजदीक लाती हैं। इस वर्ष 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक चलने वाली इस चार-दिनीय यात्रा में आप भी भाग लें, श्रद्धा और शुद्धता के साथ इस पर्व को अपनाएं।

Author

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest

More articles