Tuesday, April 22, 2025
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विश्व गौरैया दिवस (20 मार्च 2025) पैर विशेष: तू है चिड़िया मेरे आंगन की

-रमेश सर्राफ धमोरा-

हमारे घर के आंगन में सबसे बड़ी संख्या में एक छोटी चिड़िया देखने को मिलती है जिसे हम गौरैया कहते हैं। यह चिड़िया बचपन से ही हमारी साथी बन जाती है। जब बच्चा कुछ समझने लगता है तो सर्वप्रथम उसको जो पक्षी देखने को मिलता है वह नन्ही चिड़िया यानी गौरैया होती है। यह नन्ही चिड़िया बच्चों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है और अपनी मीठी आवाज से उन्हें आकर्षित करती रहती है। गौरैया बच्चों के हाथ से कई बार खाने की वस्तु भी झपटकर ले जाती है। छोटे बच्चे उन्हें पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ते हैं और वह फुर्र से उड़कर ऊपर बैठ जाती है। गांव देहातों में यह आज भी देखने को मिल जाता है। मगर शहरों में अब ऐसा नजारा शायद ही कहीं देखने को मिलता होगा।

कभी बड़ी संख्या में हमारे साथ रहने वाली गौरैया अब धीरे-धीरे बहुत कम होती जा रही है। मगर जीवन की भाग दौड़ में किसी का ध्यान इनकी घाटी संख्या की तरफ नहीं जा रहा है। बच्चों की सबसे नजदीकी मित्र गौरैया जिस तेजी से कम होती जा रही है उससे लगता है आने वाले समय में यह कहीं विलुप्त ना हो जाए। इसलिए हम सबको मिलकर गंभीरता से ऐसे प्रयास करने चाहिए जिससे गौरैया को संरक्षण मिल सके और उनकी संख्या में फिर से बढ़ोतरी प्रारंभ हो सके।

गौरैया छोटे, फुर्तीले पक्षी होते हैं जो 4 से 7 इंच तक लम्बे होते हैं। उनके गोल, मोटा शरीर और छोटी मजबूत चोंच होती हैं जो खुले बीजों को तोड़ने के लिए उपयुक्त होती हैं। उनके पंखों पर धारियां या गहरे रंग के धब्बे होते हैं। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है।

गौरैया मनुष्य के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में कम दिखाई देती है। शहरों, कस्बों, गांवों, और खेतों के आसपास यह बहुतयात से पाई जाती है। नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग नीचे का भाग और गालों पर पर भूरे रंग का होता है। गला चोंच और आंखों पर काला रंग होता है और पैर भूरे होते है। मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। नर गौरैया को चिड़ा और मादा चिड़ी या चिड़िया भी कहते हैं।

गौरैया पक्षियों के पैसर वंश की एक जीव वैज्ञानिक जाति है जो विश्व के अधिकांश भागों में पाई जाती है। आरम्भ में यह एशिया, यूरोप और भूमध्य सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती थी। लेकिन मानवों ने इसे विश्वभर में फैला दिया है। यह मनुष्यों के समीप कई स्थानों में रहती हैं। पिछले कुछ सालों में शहरों में गौरैया की कम होती संख्या पर चिन्ता प्रकट की जा रही है। आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए जगह नहीं मिल पाती।

हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य है गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना और उनके लिए हमारे आस पास का माहौल बेहतर करना है। गौरैया चिड़िया को घरेलू चिड़िया भी कहा जाता है। क्योंकि यह घरों के अंदर भी घोसले बनकर रह लेती है। ये मानव और प्रकृति के लिए बहुत उपयोगी है। क्योंकि यह कीड़ों को खाती है जिससे कीड़े पौधों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। गौरैया एक ऐसी चिड़िया है जो पर्यावरण के लिए बहुत जरूरी है। इसके अलावा धर्मशास्त्र के मुताबिक गौरैया का आपकी छत पर आना आपके लिए शुभ होता है। जानकारो का कहना हैं कि यह चिड़िया शांति और सदभावना का संदेश लेकर आती है।

आंकड़े बताते हैं कि विश्व भर में घर-आंगन में चहकने-फुदकनेवाली छोटी सी प्यारी चिड़िया गौरैया की आबादी में 60 से 80 फीसदी तक की कमी आई है। ब्रिटेन की ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स’ ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को ‘रेड लिस्ट’ में डाला था। वहीं आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक गौरैया की आबादी में करीब 60 फीसदी की कमी आई है। यह कमी ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में हुई है। पश्चिमी देशों में हुए अध्ययनों के अनुसार गौरैया की आबादी घटकर खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। जबकि स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स (एसओआईबी) रिपोर्ट 2023 के मुताबिक पिछले 25 सालों में गौरैया की आबादी कुल मिलाकर काफी स्थिर रही है। हालांकि भारत में हाउस स्पैरो की संख्या कम होने की आम धारणा है। गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूकता को लेकर दिल्ली सरकार ने 2012 और बिहार सरकार ने 2013 से गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित कर रखा है।

कभी हमारे घर-आंगन में गिरे अनाज को खाने गौरैया फुर्र से आती थी और दाना चुगकर उड़ जाती थी। हालांकि गांवों में आज भी कई घरों में गौरैया आ रही है। गौरैया की संख्या में कमी के पीछे कई कारण हैं जिन पर लगातार शोध हो रहे हैं। गौरैया की संख्या में कमी के पीछे के कारणों में आहार की कमी, बढ़ता आवासीय संकट, कीटनाशक का व्यापक प्रयोग, जीवन-शैली में बदलाव, प्रदूषण और मोबाइल फोन टावर से निकलने वाले रेडिएशन को दोषी बताया जाता रहा है।

गौरैया की संख्या में कमी के पीछे बेतहाशा कीटनाशक का प्रयोग को माना जा रहा है। गौरैया अपने बच्चे को फसल, साग-सब्जी, फलों में लगनेवाले कीड़े को खिलाती है। इससे गौरैया के बच्चे को भरपूर प्रोटीन मिलता है। बच्चा अनाज खा नहीं सकता है लेकिन जिस तरह से फसल-सब्जी-फल-अनाज में कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ा है। उससे उनके बच्चों को सही आहार मिल पाने में परेशानी हो रही है। फसल और साग-सब्जी में बेतहाशा कीटनाशक के प्रयोग ने कीड़ों को मार डाला है। ऐसे में गौरैया अपने बच्चे को पालने के दौरान समुचित आहार यानी प्रोटीन नहीं दे पाती है और बच्चे कमजोर हो जाते हैं।

गौरैया के प्रजनन के लिए अनुकूल आवास में कमी को भी इसकी संख्या में कमी का एक कारण माना जा रहा है। कच्चे घरों का तेजी से कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होने से शहरों में इनके प्रजनन के लिए अनुकूल आवास नहीं मिलते हैं। यही वजह है कि एक ही शहर के कुछ इलाकों में ये दिखती है तो कुछ में नहीं। गौरैया संरक्षण में जुड़े लोग कृत्रिम घर बनाकर गौरैया को प्रजनन के लिए आवास देने की पहल चला रहे हैं। इसमें गौरैया अंडे देने के लिए आ भी रही हैं।

जहां तक गौरैया का सवाल है यह इन्सानों की दोस्त तथा किसानों की मददगार है। गौरैया इन्सान के साथ रहते हुए उन्हें सुख-शांति प्रदान करती हैं। बच्चों का बचपन इसके साथ खेलते हुए गुजरता है। लेकिन हम इन्सानो ने ही इसे अपने से दूर कर दिया है। भारत में पक्षियों की कुल मिलाकर 1250 प्रजातियां हैं। जिनमें से 85 प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं। जिसमें गौरैया का भी नाम शामिल है।

गौरैया का सुरक्षित रखना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह खेतों की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेती है। जिससे किसान की फसल खराब होने से बच जाती हैं। गौरैया अपना घौंसला इंसानों के करीब बनाती है। इससे उनके घौंसले उजाड़ दिए जाते हैं। बढ़ता वायु प्रदूषण भी इन पक्षियों के लिए मुसीबत है। इसलिए जरूरी है कि हम अभी से यह समझने की कोशिश करें कि छोटी सी गौरैया हमारे जीवन के लिए कितनी अहम है। ऐसे में उसकी रक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। 2025 में विश्व गौरैया दिवस की थीम “प्रकृति के नन्हे दूतों को श्रद्धांजलि” है। यह थीम पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में गौरैया की भूमिका पर प्रकाश डालती है और संरक्षण प्रयासों को प्रोत्साहित करती है।

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