Monday, November 10, 2025
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क्या होता है असली ORS? हैदराबाद की डॉ. शिवरंजनी संतोष की 8 साल की जंग ने बदला फॉर्मूला, चीनी वाले पेयों पर ‘ORS’ का लेबल बंद

हैदराबाद | वेब वार्ता 

Oral Rehydration Solution: हैदराबाद की बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवरंजनी संतोष ने एक ऐसी लड़ाई जीती है, जो लाखों बच्चों की जान बचाने का वादा करती है। उनकी 8 साल की अथक मेहनत और जिद ने भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) को मजबूर किया कि वह चीनी से भरे पेय पदार्थों पर ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ORS) लेबल के दुरुपयोग पर पूरी तरह रोक लगाए।

14 अक्टूबर 2025 को जारी FSSAI की ऐतिहासिक एडवाइजरी ने साफ किया कि कोई भी खाद्य या पेय ब्रांड ‘ORS’ शब्द का उपयोग तब तक नहीं कर सकता, जब तक उसका फॉर्मूला विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों का पूरी तरह पालन न करे। यह जीत न केवल डॉ. शिवरंजनी की, बल्कि उन लाखों माता-पिताओं की है, जो अनजाने में गलत उत्पादों के कारण अपने बच्चों को खतरे में डाल रहे थे।

डॉ. शिवरंजनी ने कहा, “यह मेरी जीत नहीं, लोगों की जीत है। यह माता-पिता की जीत है। अब कोई बच्चा भ्रामक लेबल के कारण बीमार नहीं पड़ेगा।” उनकी यह जंग दस्त से पीड़ित बच्चों को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए थी, जो भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का एक प्रमुख कारण है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं—असली ORS क्या है, नकली पेयों का खतरा, डॉ. शिवरंजनी की लड़ाई, और FSSAI के नए नियमों का प्रभाव।

असली ORS क्या है? WHO का जीवन रक्षक फॉर्मूला

ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन (ORS) दस्त और डिहाइड्रेशन का इलाज करने वाली एक ऐसी औषधि है, जिसे WHO ने 20वीं सदी का सबसे बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य आविष्कार माना है। यह सस्ता, सरल और प्रभावी उपाय है, जिसने दुनियाभर में लाखों बच्चों की जान बचाई है। WHO के दिशानिर्देशों के अनुसार, असली ORS में प्रति लीटर पानी में निम्नलिखित सामग्री होनी चाहिए:

  • सोडियम क्लोराइड (नमक): 2.6 ग्राम

  • पोटेशियम क्लोराइड: 1.5 ग्राम

  • सोडियम साइट्रेट: 2.9 ग्राम

  • डेक्सट्रोज (ग्लूकोज): 13.5 ग्राम

इसका मतलब है कि प्रति 100 मिलीलीटर में केवल 1.35 ग्राम ग्लूकोज होना चाहिए। यह फॉर्मूला शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स के संतुलन को बहाल करता है, जो दस्त के दौरान तेजी से कम हो जाता है। भारत में, जहां 5 साल से कम उम्र के बच्चों में 100 में से 13 मौतें दस्त के कारण होती हैं, असली ORS एक जीवन रक्षक दवा है।

डॉ. शिवरंजनी ने बताया, “असली ORS का फॉर्मूला सटीक होना चाहिए। गलत अनुपात भी खतरनाक हो सकता है।” उन्होंने सुझाया कि केवल WHO-अनुमोदित 4 ग्राम (200 मिलीलीटर पानी के लिए) और 20 ग्राम (1 लीटर पानी के लिए) के पाउच ही इस्तेमाल किए जाएं।

नकली ORS का खतरा: चीनी से भरे पेय का धोखा

भारत की दवा दुकानों में रंग-बिरंगे टेट्रा पैक और बोतलें, जैसे ORSL, Rebalance with ORS, और अन्य, ‘ORS’ लेबल के साथ बिकते थे। ये पेय मशहूर हस्तियों द्वारा प्रचारित थे और माता-पिता को लगता था कि ये WHO-अनुमोदित ORS हैं। लेकिन इनमें सच्चाई कुछ और थी:

  • अधिक चीनी: इन पेयों में प्रति 100 मिलीलीटर में 8-12 ग्राम चीनी थी, जो WHO की सीमा से 8-10 गुना ज्यादा है। कुछ में प्रति लीटर 120 ग्राम तक चीनी थी, यानी एक टेट्रा पैक में 3-5 चम्मच चीनी।

  • कम इलेक्ट्रोलाइट्स: इनमें सोडियम और पोटेशियम की मात्रा WHO मानकों से बहुत कम थी, जिससे ये डिहाइड्रेशन का इलाज करने में नाकाम थे।

  • स्वास्थ्य जोखिम: अधिक चीनी दस्त को और बदतर बनाती है, जिससे बच्चों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता था।

डॉ. शिवरंजनी ने बताया, “माता-पिता इन पेयों को ORS समझकर बच्चों को देते थे, लेकिन यह उनकी हालत को और खराब कर देता था। एक बाल रोग विशेषज्ञ के तौर पर यह देखना दर्दनाक था।”

डॉ. शिवरंजनी की लड़ाई: 8 साल का अथक संघर्ष

डॉ. शिवरंजनी की जंग 2017 में शुरू हुई, जब उन्होंने देखा कि उनके मरीजों को गलत पेय दिए जा रहे थे। उन्होंने इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जागरूकता अभियान शुरू किया। उनके वायरल वीडियो में उन्होंने कहा, “यदि आपका बच्चा बीमार है और आप ORS मांगते हैं, लेकिन आपको मीठा पेय मिलता है, तो यह धोखा है। यह बच्चों की जान से खिलवाड़ है।”

प्रमुख पड़ाव:

  1. 2017-2018: जागरूकता अभियान
    डॉ. शिवरंजनी ने माता-पिताओं को असली ORS और नकली पेयों के बीच अंतर समझाया। उन्होंने ग्रामीण और कम साक्षर क्षेत्रों में जागरूकता पर जोर दिया, जहां डिस्क्लेमर समझना मुश्किल था।

  2. 2020: कंपनियों की चाल
    कंपनियों ने छोटे डिस्क्लेमर छापने शुरू किए, जैसे “दस्त के लिए अनुशंसित नहीं”। लेकिन यह इतना छोटा था कि माता-पिता इसे पढ़ नहीं पाते। डॉ. शिवरंजनी ने इसे “कानूनी चाल” बताया।

  3. 2022: FSSAI की शुरुआती कार्रवाई
    FSSAI ने 2022 में कुछ प्रतिबंध लगाए, लेकिन कंपनियां प्रीफिक्स/सुफिक्स के साथ ‘ORS’ का उपयोग करती रहीं।

  4. 2024: तेलंगाना हाईकोर्ट में PIL
    सितंबर 2024 में डॉ. शिवरंजनी ने जनहित याचिका दायर की, जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, FSSAI, डा. रेड्डीज लैबोरेटरीज, और केनव्यू (जॉनसन एंड जॉनसन से अलग) को पक्षकार बनाया। याचिका में ‘ORS’ लेबल के दुरुपयोग को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एक्ट, 2006 का उल्लंघन बताया।

  5. 14 अक्टूबर 2025: FSSAI का ऐतिहासिक आदेश
    FSSAI ने साफ किया कि कोई भी फल-आधारित, गैर-कार्बोनेटेड, या तैयार पेय ‘ORS’ शब्द का उपयोग नहीं कर सकता। यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू हुआ।

FSSAI का आदेश: क्या बदला?

FSSAI की एडवाइजरी ने निम्नलिखित नियम लागू किए:

  • ‘ORS’ लेबल पर पूर्ण प्रतिबंध: फल-आधारित, गैर-कार्बोनेटेड, या तैयार पेयों पर ‘ORS’ (प्रीफिक्स/सुफिक्स सहित) का उपयोग गैरकानूनी।

  • WHO मानकों का अनुपालन: केवल WHO-अनुमोदित फॉर्मूले वाले उत्पाद ही ‘ORS’ लिख सकते हैं।

  • कानूनी कार्रवाई: उल्लंघन करने वाली कंपनियों पर फूड सेफ्टी एक्ट, 2006 के तहत कार्रवाई होगी।

यह आदेश मेडिकल स्टोर्स, अस्पतालों, और स्कूलों में केवल WHO-अनुमोदित 4 ग्राम और 20 ग्राम के ORS पाउच उपलब्ध कराने पर जोर देता है।

डॉ. शिवरंजनी का भावनात्मक संघर्ष

डॉ. शिवरंजनी के लिए यह केवल कानूनी जीत नहीं थी। उन्होंने इंस्टाग्राम पर वायरल वीडियो में कहा, “8 साल की जिद ने रंग लाया। अब कोई बच्चा गलत पेय से बीमार नहीं होगा।” एक बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में, उन्होंने बच्चों को डिहाइड्रेशन से जूझते देखा, जो रोके जा सकते थे। उन्होंने कहा, “जब माता-पिता ORS मांगते थे और उन्हें मीठा पेय मिलता था, तो यह धोखा था। यह मेरे लिए व्यक्तिगत दर्द था।”

उनके अभियान को एंडोक्राइन सोसाइटी ऑफ इंडिया, महिला बाल रोग विशेषज्ञ फोरम, हजारों माता-पिता, पत्रकार, और JIPMER के प्रोफेसरों का समर्थन मिला। डॉ. शिवरंजनी ने कहा, “यह मेरी अकेले की लड़ाई नहीं थी। यह सामूहिक जीत है।”

ORS का सही उपयोग: जागरूकता की जरूरत

डॉ. शिवरंजनी ने सरकार से मांग की कि क्षेत्रीय भाषाओं में राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाया जाए। उन्होंने बताया:

  • 4 ग्राम पाउच: 200 मिलीलीटर पानी में घोलें।

  • 20 ग्राम पाउच: 1 लीटर पानी में घोलें।

  • सावधानी: गलत अनुपात खतरनाक हो सकता है।

उन्होंने सुझाया कि दवा दुकानों, अस्पतालों, स्कूलों, और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर स्पष्ट निर्देश प्रदर्शित किए जाएं। साथ ही, मशहूर हस्तियों से अपील की कि वे स्वास्थ्य उत्पादों का प्रचार जिम्मेदारी से करें।

भारत में दस्त का खतरा

NCRB और WHO के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में दस्त मौत का एक प्रमुख कारण है। 100 में से 13 मौतें दस्त से होती हैं। ग्रामीण और कम साक्षर क्षेत्रों में माता-पिता अक्सर नकली ORS खरीद लेते हैं, जिसके परिणाम विनाशकारी होते हैं। डॉ. शिवरंजनी ने कहा, “यह धोखा उन माता-पिताओं के साथ है, जो अपने बच्चों की जान बचाने की कोशिश कर रहे हैं।”

भविष्य की राह: जागरूकता और सख्ती

डॉ. शिवरंजनी ने सरकार से निम्नलिखित मांगें की:

  • राष्ट्रीय जागरूकता अभियान: क्षेत्रीय भाषाओं में असली ORS की पहचान और उपयोग पर शिक्षा।

  • सख्त निगरानी: FSSAI और स्वास्थ्य मंत्रालय सुनिश्चित करें कि कोई कंपनी नियम तोड़े।

  • स्कूलों में प्रशिक्षण: बच्चों और शिक्षकों को ORS के सही उपयोग की जानकारी दी जाए।

उन्होंने कहा, “असली ORS हर माता-पिता का हक है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी बच्चा गलत उत्पाद के कारण न मरे।”

निष्कर्ष: एक डॉक्टर की जीत, लाखों बच्चों की जिंदगी

डॉ. शिवरंजनी की जंग ने न केवल FSSAI को नियम बदलने पर मजबूर किया, बल्कि यह बच्चों की जान बचाने की दिशा में एक मील का पत्थर है। उनकी यह लड़ाई सामाजिक जिम्मेदारी, वैज्ञानिक सटीकता, और माता-पिताओं के विश्वास की जीत है। अब जब कोई मां दवा दुकान में ORS मांगेगी, तो उसे वही मिलेगा, जो उसके बच्चे की जान बचा सकता है।

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