-डा. रवीन्द्र अरजरिया-
चुनावी दौर में राजनैतिक हलकों में जमकर मनमानियां होना शुरू गईं हैं। महिलाओं को सुरक्षा देने वाले आयोग की पूर्व अध्यक्ष के साथ मुख्यमंत्री आवास में हुई कथित मारपीट की घटना को लेकर दलगत वातावरण में उफान आ गया है। आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल की शिकायत पर विशेष परिस्थितियों में सलाखों से बाहर आये दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के निज सहायक विभव कुमार के विरुध्द मारपीट सहित अनेक धाराओं में प्रकरण दर्ज कर लिया गया है। आम आदमी पार्टी की सरकार की मंत्री आतिशी ने पत्रकार वार्ता में कहा कि उनके आरोप बेबुनियाद हैं, वे बीजेपी की साजिश का हिस्सा बनीं है जिसका निशाना दिल्ली के सीएम अरविन्द केजरीवाल थे। इस पर स्वाती ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आतिशी को कल का आया नेता निरूपित करते हुए स्वयं को 20 साल पुरानी कार्यकर्ता बताया तथा पार्टी की दो दिन पहले की पत्रकार वार्ता को भी रेखांकित किया जिसमें सच स्वीकारने की बात कही गई। उल्लेखनीय है कि आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह व्दारा पूर्व में इस घटना पर खेद व्यक्त किया जा चुका है। अखिलेश यादव ने एक अन्य पत्रकार वार्ता में स्वाती प्रकरण पर बचने की कोशिश करते हुए कहा कि देश में दूसरे जरूरी मुद्दे हैं जिन पर बात होना चाहिए। जबकि कांग्रेस इस विवाद पर कुछ भी कहने से कतराती रही है। जयराम रमेश ने पत्रकारों के इस संबंध में पूछे गये प्रश्न को अनसुना कर दिया। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी की नेता निर्मला सीतारमन ने इस घटना को अविश्वसनीय और अस्वीकार करार दिया। इंडी के अन्य घटक दल भी दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री आवास पर हुई घटना पर निरंतर चुप्पी साधे हुए हैं। दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष के साथ देश की राजधानी में मुख्यमंत्री आवास पर हुई घटना को लेकर पूरा देश अवाक है। चौराहों से लेकर चौपालों तक चर्चाओं का बाजार गर्म है। अरविन्द केजरीवाल की प्रतिक्रिया का स्वरूप अब मनमाने अर्थों में लोगो के मध्य पहुंचा है। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पद पर रहकर कार्यपालिका की बारीकियां समझने वाले केजरीवाल में अन्ना आन्दोलन के माध्यम से अपनी पहचान बनाई और पारदर्शी व्यवस्था, ईमानदारी जैसे सिध्दान्तों की दुहाई पर सत्ता प्राप्त की। कार्यपालिका का अनुभव उन्हें विधायिका के कार्यकाल में जादूई करामात की तरह काम आया। देश का तीसरा विकल्प बनने की होड में आम आदमी पार्टी ने अपने संयोजक की अगवाई में गरीबों का मसीहा बनने की कोशिश की। लिंग भेद के आधार पर महिलाओं को सुविधाओं के अम्बार तले ढकने की कोशिश की गई। मुफ्त यात्रा सहित अनेक लुभावने कार्यों को अंजाम दिया गया। पार्टी ने कम समय में ही अपेक्षाकृत बहुत अधिक संसाधन जुटा लिए। पंजाब के साइलेन्ट फायर को ज्वालामुखी बनाने के अप्रत्यक्ष आधार पर एक और राज्य पर झाडू का झंडा फहराने की बातें चटखारे लेकर कही-सुनी जाती रहीं हैं। अचानक ही खालिस्तान की राख में दबी चिन्गारियां उभरीं, हिमाचल तक गर्माहट भेजने की कोशिशें हुईं। विदेशों में बसे लोगों को उनकी धरती की याद दिलाई जाने लगी और फिर एक बार खालिस्तान का जिन्न बोतल से बाहर आने लगा। दूसरी ओर पार्टी के आदर्श पुरुष और समाजसेवा के चमकते सितारे अन्ना हजारे की शिक्षायें धीरे-धीरे हाशिये के बाहर होतीं चलीं गईं। पुराने साथियों ने साथ छोड दिया। नये-नये चेहरे सामने आते चले गये। कार्यपालिका के तजुर्बे काम आये और उप-राज्यपाल के साथ तनातनी का वातावरण निर्मित किया गया ताकि पार्टी के घोषणा-पत्र को पूरा न कर पाने का ठीकरा महामहिम के सिर पर फोडा जा सके। इसी मध्य कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर ईडी के सम्मनों को तानाशाही की दम पर नकारते हुए स्वयं को संवैधानिक व्यवस्था के ऊपर दिखाने की कोशिश भी की गई ताकि अनुशासन की न्यायिक व्यवस्था को भी धता बताया जा सके। लम्बी जद्दोजेहद के बाद अन्तत: गवाह-सबूतों की रोशनी में पार्टी मुखिया की जेल यात्रा सुनिश्चित हो गई। फिर भी मुख्यमंत्री के पद की लालसा ने दामन नहीं छोडा। आरोप है कि सलाखों से बाहर आने के लिए वहां भी स्वास्थ्यगत आधारों को मजबूत करने हेतु डायविटीज पीडित होने के बाद भी वर्जित खाद्य पदार्थों का सेवन किया गया ताकि शारीरिक क्षमताओं में गिरावट दर्ज हो सके। आखिरकार तर्क, विवेचना और आधारों की विना पर सीमित समय के लिए खुली हवा पाने की मंशा पूरी हुई। तभी उनके निज सहायक विभव कुमार पर मुख्यमंत्री आवास में राज्यसभा सांसद स्वाती मालीवाल के साथ मारपीट का आरोप सामने आया। विधायिका के गरिमामय पद पर आसीत होने वाली महिला के साथ घटित कृत्य ने देश की सांस्कृतिक विरासत, सम्मान की थाथी और संस्कारों की धरोहर को एक साथ तिलांजलि दे दी। चुनावी मंचों पर स्वाति प्रकरण भी उद्बोधनों का अंग बन गया। महिला सुरक्षा, महिला अधिकार और महिला स्वाभिमान के मुद्दे आंधी की तरह तेज होते जा रहे हैं। इंडी गठबन्धन के अन्य दलों में ऊहापोह की स्थिति स्पष्ट रूप से देखने को मिल रही है। पार्टी पर छाये शराब घोटाले के काले बादल अभी साफ हुए ही नहीं थे कि मुख्यमंत्री आवास पर महिला के साथ हुए दुव्र्यवहार का ग्रहण भी लगने लगा। आरोपों-प्रत्यारोपों के मध्य राजनैतिक क्षितिज पर दलगत आंधियों की धूल निरंतर गहराती जा रही है। देवताओं की समूची शक्ति का प्रादुर्भाव देवी के रूप में होने वाली वसुन्धरा पर व्यवस्था के ठेकेदारों की नीतियां-रीतियां कुलाचें भरने लगीं हैं। सत्ता पर कब्जा करने की नियति से वक्तव्य जारी होने लगे हैं। धरातली सिध्दान्तों पर अवसरवादिता हावी होती जा रही है। मतदाताओं को रिझाने के लिए आधुनिक पैतरों को इस्तेमाल करने वाले दल अब स्वयं के लाभ के लिए दूसरों को बलि का बकरा बनाने से भी नहीं चूक रहे हैं। वैचारिक प्रदूषण की देहलीज पर शारीरिक सुख की चाहत में अंहकार चरम सीमा पर पहुंच गया है। लोकप्रियता के मायने बदलते जा रहे हैं। चुनावीकाल में स्वाति प्रकरण की परिणति से उभरते प्रश्नों को हल करना नितांत आवश्यक। पारदर्शी व्यवस्था के साथ खुली जांच के बिना आम आवाम तक सच्चाई पहुंचना बेहद कठिन है। गांव की मेडों से लेकर शहरों के गलियों तक आये दिन स्वाति प्रकरण जैसे अनगिनत काण्ड होते रहते हैं जिनकी आवाज न तो कभी राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचती है और न ही पुलिस की प्राथमिकी में ही दर्ज हो पाती है। ऐसे में देश की राजधानी के मुख्यमंत्री आवास पर घटी इस घटना पर भी यदि अदृश्य कवच डाल दिया जायेगा तो फिर संविधान, व्यवस्था और व्यवस्थापकों की नियत पर अनगिनत मौन प्रश्न अंकित होते देर नहीं लगेगी। इस बार बस इतनी ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।