नई दिल्ली | वेब वार्ता
लोक आस्था का चार दिवसीय पर्व छठ महापर्व आज ‘नहाय-खाय’ के साथ आरंभ हो गया है। पूर्वांचल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सहित देशभर में इस पर्व की धार्मिक आभा देखते ही बन रही है। महिलाएं और पुरुष आज पवित्र नदी, तालाब या घर में बने कुंडों में स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण कर रही हैं।
कल यानी 25 अक्टूबर को ‘खरना’ (लोहंडा) मनाया जाएगा, जिसमें व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखकर शाम को भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करेंगी।
परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की दीर्घायु के लिए व्रत
छठ व्रत का मुख्य उद्देश्य परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की लंबी उम्र और रोगमुक्त जीवन की कामना करना है।
यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से घर में सकारात्मकता और समृद्धि का आगमन होता है।
‘नहाय-खाय’ से शुरू हुआ शुद्धता का पर्व
आज ‘नहाय-खाय’ के दिन व्रती महिला-पुरुष स्नान के बाद लौकी-चने की दाल और चावल का प्रसाद बनाते हैं।
यह भोजन पूर्णतः सात्विक और शुद्ध घी में तैयार किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन से घर की पवित्रता और उपवास की शुरुआत होती है।
‘खरना’ और ‘संध्या अर्घ्य’ की तैयारियां जोरों पर
कल ‘खरना’ के दिन पूरे दिन निर्जला उपवास के बाद व्रती शाम को गुड़ की खीर, रोटी और केले का प्रसाद ग्रहण करेंगे।
इसके बाद दो दिन — छठी (26 अक्टूबर) और सप्तमी (27 अक्टूबर) को व्रती क्रमशः संध्या अर्घ्य और प्रातः अर्घ्य देकर सूर्य देव की पूजा करेंगे।
सार्वजनिक स्थलों पर बनाए गए कुंड और घाट
देशभर में प्रशासन और स्थानीय समितियों द्वारा सार्वजनिक छठ घाटों और कृत्रिम कुंडों की तैयारी पूरी कर ली गई है।
नदियों और तालाबों की सफाई के साथ-साथ एलईडी लाइटों की सजावट, बैरिकेडिंग और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की गई है।
कई परिवारों ने अपने घरों में भी छोटे-छोटे कुंड बनाकर पूजा की व्यवस्था की है, ताकि महिलाएं सुरक्षित माहौल में पूजा कर सकें।
छठ प्रसाद में ठेकुआ, मालपुआ और फलों का महत्व
छठ पूजा के प्रसाद में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, गन्ना, सेब, केला, नारियल, नींबू और अदरक जैसे प्राकृतिक खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं।
यह प्रसाद बिना नमक और बिना प्याज-लहसुन के बनाया जाता है। मान्यता है कि यह सात्विक प्रसाद सूर्य देव को अत्यंत प्रिय है।
आस्था और पर्यावरण का संगम
छठ महापर्व न केवल आस्था का प्रतीक है बल्कि यह प्रकृति, जल और सूर्य ऊर्जा के प्रति आभार का उत्सव भी है।
सूर्य की उपासना के माध्यम से मनुष्य प्रकृति के संतुलन और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है।
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