गोरखपुर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में योगी सरकार के बेमिसाल आठ साल में सर्वाधिक खुशहाल लोगों में वह वनटांगिया भी हैं। जंगलों में रहने वाले ये लोग आजादी के बाद से ही उपेक्षित और बदहाल थे। कभी राजस्व अभिलेखों में ये नागरिक का दर्जा हासिल करने को भी तरसते थे, योगी सरकार ने आठ सालों में उनकी सारी कसक दूर कर दी।उन्हें शासन की अनेकानेक योजनाओं से आच्छादित कर उन्हें समाज और विकास की मुख्य धारा से जोड़ दिया है। जंगल के बीच सिमटा रहा वनटांगियों का संसार विकास की कदमताल करते हुए देश-दुनिया की नजर में छा गया है। कभी झोपड़ी में रहने को मजबूर वनटांगिए, योगी सरकार में पक्के मकानों में रहते हैं। शिक्षा की रोशनी जहां दूर थी, वहां अब बच्चे स्मार्ट क्लास वाले स्कूल में पढ़ते है।
जंगल के बीच बसे वनटांगिया गांव के लोगों के लिए योगी आदित्यनाथ तारणहार हैं। इनकी सौ साल से अधिक की गुमनामी और बदहाली को सशक्त पहचान और अधिकार दिलाने के साथ विकास संग कदमताल कराने का श्रेय सीएम योगी के ही नाम है। इनका रिश्ता अटूट है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से गोरखपुर-महराजगंज के 23 वनटांगिया गांवों और प्रदेश की सभी वनवासी बस्तियों में विकास और हक-हुकूक का बसेरा हो चुका है। योगी सरकार का आठ साल का कार्यकाल वनटांगिया गांवों के कायाकल्प के लिए भी समर्पित रहा है।
संसदीय कार्यकाल से ही शुरू हो गया था इनके हितों के लिए संघर्ष
वनटांगियों के लिए योगी आदित्यनाथ ने संघर्ष तो संसदीय कार्यकाल में ही शुरू कर दिया था लेकिन संघर्ष का परिणाम धरातल पर तब दिखना शुरू हुआ जब 2017 के वह मुख्यमंत्री बने। उनके आठ साल के मुख्यमंत्रित्व काल में वनटांगिया समुदाय की सौ साल से अधिक की कसक मिट गई है।
सीएम बनने के बाद अपने कार्यकाल के पहले ही साल उन्होंने वनटांगिया गांवों को राजस्व ग्राम का दर्जा दे दिया। राजस्व ग्राम घोषित होते ही ये वनग्राम हर उस सुविधा के हकदार हो गए जो सामान्य नागरिक को मिलती है। अपने कार्यकाल में उन्होंने वनटांगिया गांवों को आवास, शौचालय, सड़क, बिजली, पानी, स्मार्ट क्लास वाले स्कूल, आंगनबाड़ी केंद्र और आरओ वाटर मशीन जैसी सुविधाओं से आच्छादित कर दिया है।
अंग्रेजों के शासनकाल में जब रेल पटरियां बिछाई जा रही थीं तो स्लीपर के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ों की कटान हुई। इसकी भरपाई के लिए बर्तानिया सरकार ने साखू के नए पौधों के रोपण और उनकी देखरेख के लिए गरीब भूमिहीनों, मजदूरों को जंगल मे बसाया।
साखू के जंगल बसाने के लिए वर्मा देश की “टांगिया विधि” का इस्तेमाल किया गया, इसलिए वन में रहकर यह कार्य करने वाले वनटांगिया कहलाए। गोरखपुर स्थित कुसम्ही जंगल के पांच इलाकों जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन, रजही खाले टोला, रजही नर्सरी, आमबाग नर्सरी व चिलबिलवा में इनकी पांच बस्तियां वर्ष 1918 में बसीं।
इसी के आसपास महराजगंज के जंगलों में अलग-अलग स्थानों पर इनके 18 गांव बसे। 1947 में देश भले आजाद हुआ लेकिन वनटांगियों का जीवन गुलामी काल जैसा ही बना रहा। जंगल बसाने वाले इस समुदाय के पास देश की नागरिकता तक नहीं थी। नागरिक के रूप में मिलने वाली सुविधाएं तो दूर की कौड़ी थीं।
जंगल में झोपड़ी के अलावा किसी निर्माण की इजाजत नहीं थी। पेड़ के पत्तों को तोड़कर बेचने और मजदूरी के अलावा जीवनयापन का कोई अन्य साधन भी नहीं। समय समय पर वन विभाग की तरफ से वनों से बेदखली की कार्रवाई का भय अलग से।
साखू के पेड़ों से जंगल संतृप्त हो गया तो वन विभाग ने अस्सी के दशक में वनटांगियों को जंगल से बेदखल करने की कार्रवाई शुरू कर दी। तिकोनिया नम्बर तीन के बुजुर्ग चंद्रजीत बताते हैं कि इसी सिलसिले में वन विभाग की टीम 6 जुलाई 1985 को जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन में पहुंची।
न कहीं और घर, न जमीन, आखिर वनटांगिया लोग जाते कहां। उन्होंने जंगल से निकलने को मना कर दिया जिस वन विभाग की तरफ से फायरिंग कर दी गई। इस घटना में परदेशी और पांचू नाम के वनटांगियों को जान गंवानी पड़ी जबकि 28 लोग घायल ही गए। इसके बाद भी वन विभाग सख्ती करता रहा। यह सख्ती तब शिथिल हुई जब सांसद बनने के बाद 1998 से योगी आदित्यनाथ ने वनटांगियों की सुध ली।
वर्ष 1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार गोरखपुर के सांसद बने। उनके संज्ञान में यह बात आई कि वनटांगिया बस्तियों में नक्सली अपनी गतिविधियों को रफ्तार देने की कोशिश में हैं। नक्सली गतिविधियों पर लगाम के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को इन बस्तियों तक पहुंचाने की ठानी।
इस काम में लगाया गया उनके नेतृत्व वाली महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की संस्थाओं एमपी कृषक इंटर कालेज व एमपीपीजी कालेज जंगल धूसड़ और गोरखनाथ मंदिर की तरफ से संचालित गुरु श्री गोरक्षनाथ अस्पताल की मोबाइल मेडिकल सेवा को।
जंगल तिनकोनिया नम्बर तीन वनटांगिया गांव में 2003 से शुरू ये प्रयास 2007 तक आते आते मूर्त रूप लेने लगे। इस गांव के कोटेदार रामगणेश कहते है कि वनटांगिया तो अहिल्या थे, महराज जी (योगी आदित्यनाथ को वनटांगिया समुदाय के लोग इसी संबोधन से बुलाते हैं) यहां राम बनकर उद्धार करने आए।
वनटांगिया लोगों को शिक्षा के जरिये समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ ने मुकदमा तक झेला है। बकौल रामगणेश, 2009 में जंगल तिकोनिया नम्बर तीन में योगी के सहयोगी वनटांगिया बच्चों के लिए एस्बेस्टस शीट डाल एक अस्थायी स्कूल का निर्माण कर रहे थे।
वन विभाग ने इस कार्य को अवैध बताकर एफआईआर दर्ज कर दी। योगी ने अपने तर्कों से विभाग को निरुत्तर किया और अस्थायी स्कूल बन सका। हिन्दू विद्यापीठ नाम से यब विद्यालय आज भी योगी के संघर्षों का साक्षी है। वनटांगिया गांव तिकोनिया नम्बर तीन में ही योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2009 से दीपावली मनाना शुरू किया। यह सिलसिला उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भी जारी है।