Friday, March 21, 2025
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वैक्सीन और चंद्रयान जैसी वैश्विक सफलता की कहानियों ने भारत की क्वांटम छलांग को प्रमाणित किया: डॉ. जितेंद्र सिंह

– केंद्रीय मंत्री ने नई दिल्ली में विज्ञान भारती के नए परिसर का उद्घाटन किया

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने आज यहां कहा कि वैक्सीन और चंद्रयान जैसी वैश्विक सफलता की कहानियों ने भारत की क्वांटम छलांग को प्रमाणित किया है। डाॅ. सिंह राष्ट्रीय राजधानी में विज्ञान भारती के नए परिसर का उद्घाटन करने के बाद सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने इसे लंबे समय से महसूस की जा रही आवश्यकता बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह कार्यालय विचारों के आदान-प्रदान का केंद्र और सीखने का केंद्र होगा।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत विज्ञान के क्षेत्र में एक परिवर्तनकारी युग का गवाह बन रहा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे प्रधानमंत्री न केवल वैज्ञानिक समुदाय को प्रोत्साहित करते हैं बल्कि उसे संसाधनों के साथ मजबूत बनाने और सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए गैर-सरकारी क्षेत्रों के साथ सहयोग करने में सक्षम बनाते हुए उसे अटूट समर्थन भी प्रदान करते हैं।

पिछले दशक की प्रगति की चर्चा करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि भारत में हमेशा से ही अपार वैज्ञानिक कौशल और प्रतिभा रही है लेकिन राजनीतिक नेतृत्व की ओर से प्रतिबद्धता और प्राथमिकता की कमी थी। उसे अब प्रधानमंत्री मोदी के शासन में सक्रिय रूप से संबोधित किया जा रहा है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत की महत्वपूर्ण प्रगति को रेखांकित किया, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में। उन्होंने कहा कि भारत, जिसे कभी उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवा में गंभीरता से नहीं लिया जाता था, अब निवारक स्वास्थ्य सेवा में वैश्विक नेता के रूप में उभर रहा है। उन्होंने गर्व के साथ भारत की उपलब्धियों का उल्लेख किया, जिनमें महामारी के दौरान विकसित पहला डीएनए टीका शामिल है। गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से निपटने के लिए पहला स्वदेशी एचपीवी टीका और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति की है।

उन्होंने वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रयासों के लिए भारत की प्रतिबद्धता के बारे में भी बात की और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के देश के लक्ष्य की पुष्टि की। उन्होंने पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इसे स्वदेशी ज्ञान का एक मूल्यवान भंडार बताया। उन्होंने मिसाल दी कि किस तरह साल 2000 में सुपर साइक्लोन के बाद भी ओडिशा में कोणार्क मंदिर बरकरार रहा। यह भारत की स्थापत्य कला के लचीलेपन को दर्शाता है। पारंपरिक चिकित्सा में बढ़ती रुचि की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि महामारी के दौरान देखा गया कि पश्चिम ने संभावित उपचारों के लिए होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा की खोज की।

उन्होंने टाटा समूह के सहयोग से अरुणाचल प्रदेश में सड़क निर्माण के लिए स्टील स्लैग का उपयोग करने में भारत की सफलता का भी उल्लेख किया तथा इसकी तुलना अजंता और एलोरा के टिकाऊ मार्गों से की, जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उद्धृत करते हुए डॉ. सिंह ने कहा, अपनी विरासत के प्रति प्रतिबद्ध रहकर, हमें दुनिया भर में हो रही घटनाओं से खुद को वंचित नहीं रखना चाहिए। उन्होंने विज्ञान भारती से पहलों की पहचान करने और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक इंटरफेस के रूप में कार्य करने का आग्रह किया, ठीक उसी तरह जैसे इन-स्पेस और बाइरैक क्रमशः अंतरिक्ष और जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के लिए सफल मंच बन गए हैं।

उन्होंने स्वदेशी एंटीबायोटिक ‘नेफिथ्रोमाइसिन’ के निर्माण के साथ फार्मास्यूटिकल्स में भारत की हालिया सफलता की भी गर्व से घोषणा की, जिसने भारत को पारंपरिक और अत्याधुनिक दोनों तकनीकों में अग्रणी के रूप में स्थापित किया। डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि एकीकरण अब एक विकल्प नहीं बल्कि एक आवश्यकता है और उन्होंने विज्ञान भारती से व्यापक वैज्ञानिक एकीकरण के लिए एक प्रमुख माध्यम बनने का आह्वान किया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस तरह के प्रयास विज्ञान और प्रौद्योगिकी में वैश्विक महाशक्ति के रूप में भारत के निरंतर उदय को प्रेरित करेंगे।

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