-मालेगांव विस्फोट 2008
मुंबई, (वेब वार्ता)। 2008 में महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के मालेगांव में हुए विस्फोट मामले ने पूरे देश को हिला दिया था। इस धमाके में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में देश की शीर्ष जांच एजेंसियों ने वर्षों तक जांच की और कई महत्वपूर्ण गिरफ्तारियां कीं, लेकिन आखिरकार विशेष एनआईए अदालत ने 31 जुलाई 2025 को सभी सात आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ कोई ठोस और विश्वसनीय सबूत पेश नहीं कर सका।
🔍 क्या हुआ था 29 सितंबर 2008 को?
29 सितंबर 2008 की शाम मालेगांव में एक मोटरसाइकिल में बम लगाया गया था। धमाका इतना जबरदस्त था कि 6 लोगों की मौके पर मौत हो गई और 101 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। घटनास्थल पर मिले बाइक के अवशेषों से जांच एजेंसियों को कुछ महत्वपूर्ण सुराग मिले।
🕵️♀️ जांच और गिरफ़्तारियां: एक विवादास्पद मोड़
23 अक्टूबर 2008 को एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को गिरफ्तार किया। इस गिरफ्तारी के बाद यह मामला एक राजनीतिक और वैचारिक बहस में बदल गया।
नवंबर 2008 में सेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को गिरफ्तार किया गया।
एटीएस का दावा था कि इस धमाके के पीछे एक दक्षिणपंथी चरमपंथी समूह की साजिश थी।
⚖️ कानूनी लड़ाई का लंबा सफर
जनवरी 2009: एटीएस ने 11 आरोपियों के खिलाफ मकोका, यूएपीए और IPC की धाराओं में चार्जशीट दाखिल की।
जुलाई 2009: विशेष अदालत ने मकोका को हटाया, लेकिन जुलाई 2010 में हाईकोर्ट ने फिर से इसे लागू किया।
2016: एनआईए ने मकोका हटाने का फैसला किया और 7 आरोपियों को क्लीन चिट दी।
2017-2021: सभी आरोपी ज़मानत पर बाहर आए, कुछ को विशेष अदालत ने बरी भी कर दिया।
📜 आखिरी चरण: सुनवाई और फैसला
3 दिसंबर 2018 को मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई और 14 सितंबर 2023 तक अभियोजन पक्ष के 323 गवाहों की गवाही ली गई।
23 जुलाई 2024 को बचाव पक्ष की गवाही पूरी हुई।
19 अप्रैल 2025 को अंतिम सुनवाई हुई।
31 जुलाई 2025 को विशेष एनआईए अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
🏛️ अदालत का फैसला: सबूत नहीं, संदेह का लाभ
विशेष एनआईए जज ए. के. लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि,
“अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोप संदेह से परे साबित करने में असफल रहा है। कोर्ट के सामने प्रस्तुत गवाहों और सबूतों में पर्याप्त स्पष्टता नहीं थी।”
👥 बरी हुए आरोपी
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित
रमेश उपाध्याय
समीर कुलकर्णी
अजय राहिरकर
सुधाकर द्विवेदी
सुधाकर चतुर्वेदी
🔍 मालेगांव केस क्यों था इतना संवेदनशील?
यह केस इसलिए खास रहा क्योंकि इसमें पहली बार एक सेना अधिकारी और कथित दक्षिणपंथी संगठनों को आतंकी घटना से जोड़ा गया। इससे देश में राजनीतिक ध्रुवीकरण और वैचारिक टकराव की लहर दौड़ गई।
📊 2008 से 2025 तक का घटनाक्रम एक नजर में
तिथि | घटना |
---|---|
29 सितंबर 2008 | मालेगांव में बम विस्फोट |
अक्टूबर 2008 | साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित गिरफ़्तार |
2009 | चार्जशीट दाखिल, मकोका लगाया गया |
2011 | एनआईए ने जांच संभाली |
2016 | एनआईए ने मकोका हटाया, 7 आरोपियों को क्लीन चिट |
2018 | मुकदमे की शुरुआत |
2023 | अभियोजन पक्ष की गवाही समाप्त |
2024 | बचाव पक्ष की गवाही समाप्त |
31 जुलाई 2025 | सभी आरोपी बरी |
🧭 क्या यह न्याय है या न्याय में देरी?
इस निर्णय से एक ओर जहां आरोपियों को राहत मिली है, वहीं पीड़ितों के परिवारों में निराशा भी देखी जा रही है। यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली की जटिलताओं, जांच एजेंसियों की भूमिका और राजनीतिक दबाव के सवालों को एक बार फिर सतह पर ले आया है।