नई दिल्ली, 25 जुलाई | वेब वार्ता विशेष
25 जुलाई भारतीय राजनीति और सामाजिक न्याय के इतिहास में एक संघर्षशील अध्याय की याद दिलाता है। इसी दिन वर्ष 2001 में बहुचर्चित और निर्भीक महिला नेता फूलन देवी की दोपहर 1 बजे उनके सरकारी आवास के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। आज, उनकी पुण्यतिथि पर देश उन्हें नारी शक्ति, दलित उभार और सामाजिक प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में याद कर रहा है।
कौन थीं फूलन देवी?
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के शेखपुर गुड्डा गांव में एक मल्लाह (निषाद समुदाय) के गरीब परिवार में हुआ था।
कम उम्र में बाल विवाह,
यौन हिंसा और सामाजिक अपमान,
और फिर बगावत, डकैतों का साथ,
उसके बाद समर्पण, जेल और राजनीति में वापसी—
उनका जीवन एक अत्याचार से संघर्ष और आत्मसम्मान की खोज की कहानी है।
बेहमई हत्याकांड और विवाद
1981 में कुख्यात बेहमई कांड में फूलन देवी का नाम प्रमुखता से सामने आया। इस कांड में उनके गैंग ने 20 ऊंची जाति के लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी, जिन पर फूलन के साथ सामूहिक बलात्कार का आरोप था।
इस घटना ने उन्हें एक ओर ‘डाकू से देवी’, तो दूसरी ओर ‘बदले की प्रतिमा’ के रूप में स्थापित किया।
राजनीति में प्रवेश और संसद तक का सफर
11 साल की जेल यात्रा के बाद 1994 में फूलन देवी को रिहा किया गया।
समाजवादी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया,
और वे 1996 में मिर्जापुर लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं,
1999 में दोबारा निर्वाचित होकर संसद पहुंचीं।
वे दलित और महिलाओं के मुद्दों की प्रखर आवाज़ बनीं।
हत्या और राजनीतिक सन्नाटा
25 जुलाई 2001 को दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर शेर सिंह राणा नामक युवक ने उन्हें गोली मार दी।
राणा ने दावा किया कि यह हत्या बेहमई कांड के “बदले” के रूप में की गई थी।
इस हत्याकांड ने देश को झकझोर दिया। दलित आंदोलनों, महिला संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे लोकतंत्र और न्याय की हत्या करार दिया।
आज का संदर्भ: फूलन देवी की विरासत
दलितों, पिछड़ों और वंचितों की आवाज़
नारी प्रतिरोध और संघर्ष का प्रतीक
राजनीति में हाशिए पर खड़े वर्गों की हिस्सेदारी का उदाहरण
फूलन देवी का जीवन संदेश देता है कि यदि हाशिए पर खड़ी नारी को भी आवाज़ और अवसर मिले, तो वह व्यवस्था को चुनौती दे सकती है।
नेताओं और संगठनों ने दी श्रद्धांजलि
आज फूलन देवी की पुण्यतिथि पर विभिन्न दलों, संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।
समाजवादी पार्टी,
भीम आर्मी,
निषाद समाज,
तथा महिला अधिकार मंचों ने उनके योगदान को याद किया।