-डॉ. राघवेंद्र शर्मा-
कभी-कभी फिल्में भी हमारे जीवन में व्यापक प्रभाव डाल जाती हैं। हाल ही में प्रदर्शित हुई छावा फिल्म ने भी एक मजबूत पटकथा के चलते भारतीय जनमानस के मन मस्तिष्क को झकझोर कर रख दिया है। इस फिल्म को देखने के बाद देश के वे नागरिक भी मुगल आक्रांताओं की अमानुषिकता से परिचित हुए, जिन्हें किसी कारणवश इतिहास पढ़ने का अवसर नहीं मिला। हालांकि इतिहास के छात्रों और इसमें रुचि रखने वालों को पहले से ही यह मालूम था कि मंगोल से भारत आए लुटेरों ने कैसे सैकड़ो सालों तक इस देश को लूटा। लूटा ही नहीं बल्कि इसे रक्त रंजित भी किया। यह लिखना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि उन वहशी लोगों ने अत्याचारों की सभी सीमाएं लांघीं। देश की जिन विभूतियों ने भी ज्यादती, अमानुषिकता और वहशीपन का विरोध किया, उनके साथ तो इतना बर्बर व्यवहार किया गया कि जो देख ले उसी की रूह कांप जाए। फिर अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के जिन महान सपूतों ने यह सब भुगता उन पर क्या बीती होगी।
लेकिन धन्य है वे माताएं, जिनके सपूतों ने देश का गौरव बचाए रखने के लिए सर तो दे दिए किंतु सार नहीं जाने दिया। जी हां, हम बात कर रहे हैं गुरु तेग बहादुर सिंह जी की। सिखों के नौवें गुरु की जान बच सकती थी। बशर्ते वो मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लेते। तत्कालीन क्रूर शासक औरंगजेब यही तो चाहता था। वह जानता था कि गुरु तेग बहादुर के घुटने टेकते ही वह सारा युद्ध थम जाएगा, जो भारतीय अस्मिता को बचाने के लिए गुरु तेग बहादुर जी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर लड़ा जा रहा था। स्वयं गुरुजी साहब को भी यह आभास था कि यदि वह जरा भी लड़खड़ाए तो हर हाल में आजादी पाने की जो आग भारतीय सपूतों के दिलों में धधक उठी है, वह असमय ही शांत हो जाएगी। अतः उन्होंने धर्म खोना स्वीकार नहीं किया। तब भी जबकि उन्हें बार-बार चेताया गया कि यदि तुम हिंदू धर्म को बचाने की जंग नहीं छोड़ोगे तो वीभत्स मौत के भागी बनोगे। और यदि मुसलमान बन गए तो तुम्हें माफ कर दिया जाएगा। फिर भी गुरु तेग बहादुर अपने धर्म से नहीं डिगे तो बुरी तरह बौखला उठे औरंगजेब ने उनका शीश धड़ से अलग कर दिया।
औरंगज़ेब की यह एकमात्र क्रूर कहानी नहीं है। उसका तो पूरा जीवन ही भारतीय संस्कृति की आत्मा को लहूलुहान करने वाला रहा है। जहां भी उसे सनातन के गौरवशाली चिन्ह दिखाई दिए उन्हें ध्वस्त करता चला गया। इससे भी जी नहीं भरा तो उसने एक ऐसा जजिया कर ईजाद किया जो केवल और केवल हिंदुओं द्वारा ही भरा जाना था। जो ना भर सके, उनमें से किसी को दर्दनाक मौत मिली तो किसी के घर की जवान महिलाओं को उठा लिया गया। यानि उसने हर वह काम किया जिससे भारतवर्ष के असल सपूतों को तकलीफ पहुंचती हो। उसकी इन्हीं ज्यादतियों का विरोध हिंदू हृदय सम्राट वीर शिवाजी ने जमकर किया और औरंगजेब को नाकों चने चबाने को मजबूर करते रहे। इस क्रम को उनके वीर सपूत संभाजी राव ने भी बनाए रखा।
संभाजी राव तो औरंगजेब को इतना आतंकित कर चुके थे कि वह जीवन भर उनका सामना तक करने से बचता रहा। यह हाल भी तब था जब वीर संभाजी राव के पास सैनिक केवल हजारों की तादाद में थे तो औरंगजेब के पास लाखों की सेना उपलब्ध रहा करती थी। फिर भी औरंगजेब सीधे-सीधे संभाजी राव से ना भिड़ सका तो उसने चंद गद्दारों को साथ मिलाकर धोखे से संभाजी राव को बंदी बना लिया। लेकिन उसकी यह उत्कंठा फिर भी धरी की धरी रह गई कि कैद में आने के बाद संभाजी महाराज का सिर उसके नापाक पैरों में झुक जाएगा। इस भारतीय स्वाभिमान से औरंगजेब ऐसा बौखलाया कि उसने संभाजी राव को मोटी-मोटी जंजीरों से बंधवाकर उन्हें मौत का भय दिखाया। यह प्रलोभन भी दिया कि मुसलमान बन जाओ तो जान बख्श देंगे। लेकिन शेर के इस वीर सपूत ने भी गुरु तेग बहादुर और वीर शिवाजी महाराज की तरह मरना पसंद किया। लेकिन भारतीय स्वाभिमान को नहीं झुकने दिया।
इससे बुरी तरह बौखलाए औरंगजेब ने पूरे 40 दिनों तक पाश्विक अत्याचार का नंगा नाच किया। संभाजी महाराज का ऐसा कोई अंग नहीं बचा जिसे हथियारों से बींधा ना गया हो। आंखें फोड़ दी गईं, खाल खींच ली गई, जीभ निकाल दी गई, नाखूनों को एक-एक करके उखाड़ा गया। इतना सब करने पर भी औरंगजेब संभाजी महाराज के झुके हुए सिर को देखने की लालसा पूरी न कर पाया और इस जद्दोजहद में खुद कायराना मौत का शिकार बन गया।
यह जानकर आश्चर्य होता है कि ऐसे पाश्विक कृत्य के आदी औरंगजेब की हिमायत करने वाले हमारे देश में ही मौजूद हैं और पूरी बेशर्मी के साथ टेलीविजन चैनलों पर उसे रहम दिल, हिंदुओं के मंदिर बनवाने वाला और धर्मनिरपेक्ष शासक साबित करने में जुटे हुए हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह लोग औरंगजेब को मुसलमानियत से जोड़कर पेश कर रहे हैं। उस औरंगजेब को, जिसने राजगद्दी हासिल करने के लिए अपने पिता शाहजहां को कैदखाने में मरने के लिए छोड़ दिया और उसे एक-एक बूंद पानी के लिए तरसा कर रख दिया। इसे शैतानियत नहीं तो और क्या कहेंगे कि औरंगजेब ने अपने भाई का सिर कलम करके उसे थाली में सजाकर पिता के सामने पेश कर दिया। आखिर ऐसे व्यक्ति को कोई मुसलमान अथवा इंसान भी कैसे मान सकता है। लेकिन यह शर्मनाक हरकत अवसरवादी नेता और मुस्लिम जमात के कुछ स्वयंभू ठेकेदार डंके की चोट पर कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है, औरंगजेब का महिमा मंडन करने से मुसलमान खुश हो जाएंगे और उन्हें अपने पक्ष में एक मजबूत वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा।
अपवाद छोड़ दें तो आम मुस्लिम समाज की ओर से ऐसी बेजा हरकतों का स्पष्ट विरोध तक नहीं होता। इससे हिंदुओं का भय दिखाकर मुसलमानों को बरगलाने वाले कट्टरवादियों की हिम्मत बढ़ती चली जाती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि मुसलमान भाइयों को भी गलत को गलत कहने की शुरुआत करनी चाहिए। उन्हें यह समझना होगा कि उनके तुष्टिकरण की आड़ में उन्हीं की जमात के कुछ ठेकेदार सत्ता लोलुप तथा कथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं के साथ मिलकर दलाली कमाने में लगे हुए हैं। जबकि उनका मुसलमानों की भलाई से कोई लेना-देना नहीं है। सोचने वाली बात है – बाप को सड़ सड़ कर मरने के लिए कैद खाने में डालने और सगे भाई का सिर कलम करके पिता के सामने पेश करने वाले दुष्ट का गुणगान करने वालों का मुसलमानियत से भला क्या वास्ता? यदि वास्तव में औरंगजेब का गुणगान करने वाले लोग मुसलमानों के सच्चे खिदमतगार हैं, तो फिर यह सवाल भी उठना लाजमी है कि आजादी के बाद से लेकर अभी तक अधिकांश समय वही लोग सरकार पर काबिज बने रहे, जिन्होंने हमेशा खुद को मुसलमानों का रहनुमा बताया। मुस्लिम समाज के वे स्वयंभू ठेकेदार भी सत्ता की चाशनी में नहाते रहे, जो मुसलमान को औरंगजेब जैसे क्रूर शासकों से जोड़कर उन्हें बदनाम करने की साजिशें रचते रहे हैं और आज भी रच रहे हैं। इन सभी के सरकार में बने रहने के बाद भी आर्थिक, शैक्षणिक दृष्टि से मुस्लिम समाज पिछड़े पन का शिकार क्यों बना रहा?
लिखने का आशय यह है कि मुसलमान भाइयों को औरंगजेब जैसे क्रूर शासकों की खुली मुखालफत करते हुए विकास की मुख्य धारा में शामिल हो जाना चाहिए। मुसलमानों के नाम पर सत्ता लोलुप नेताओं और राजनीतिक दलों के बीच दलाली करने वाले उन सजातीय दलालों को बहिष्कृत करने का समय भी आ गया है, जो केवल अपने फायदे के लिए मुसलमानों को औरंगजेब जैसे क्रूर शासकों का वंशज बताने का पाप कर रहे हैं। जबकि दुनिया भर में देश का नाम गौरवान्वित करने वाले मोहम्मद शमी जैसे खिलाड़ी उनकी आंखों में किरकिरी बनकर खटकते रहते हैं। इन्हीं समाज कंटकों के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अकारण ही तनाव पैदा होने के हालात उत्पन्न होते रहते हैं। ऐसे ही लोगों की वजह से अनेक देशों में मुसलमानों को पिछड़ेपन का दंश झेलना पड़ रहा है। यही वह लोग हैं जो दुनिया भर में विभिन्न समुदाय के लोगों से अकारण झगड़ा और युद्ध मोल लेते रहते हैं, जबकि भुगतना पड़ता है पूरे मुसलमान समाज को। अंततः तो इन विषमताओं से छुटकारा पाने के लिए स्वयं मुसलमान को ही पहल करनी होगी।