Sunday, December 22, 2024
Homeलेखइलेक्टोरल बॉन्ड : राष्ट्रवाद की आड़ में रिश्वत और भ्रष्टाचार?

इलेक्टोरल बॉन्ड : राष्ट्रवाद की आड़ में रिश्वत और भ्रष्टाचार?

-तनवीर जाफ़री-

नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा 2017-18 में शुरू की गयी ‘संदिग्ध व विवादास्पद’ इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम को देश के माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की खंडपीठ ने ग़ैर-क़ानूनी क़रार दे दिया है। इस योजना के तहत चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी जा सकती थी। ये फ़ैसला ऐसे समय पर आया है जबकि आगामी अप्रैल- मई में ही देश में लोकसभा के आम चुनाव होने जा रहे हैं। सरकार की इस योजना को अदालत में चुनौती देने वालों का कहना था कि इसमें काला धन को सफ़ेद किए जाने से लेकर, किसी काम को किए जाने के अघोषित समझौते के तहत बड़ी कंपनियों या व्यक्तियों से चंदा लिया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायलय ने यह भी कहा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए मिली धनराशि की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देनी होगी। और चुनाव आयोग को स्टेट बैंक से प्राप्त यह जानकारी 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित भी करनी होगी। इस जानकारी के सार्वजनिक होने पर अब यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि किसने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा और किस राजनैतिक दल को दिया।

सरकार द्वारा “2017 में जब इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को एक वित्तीय विधेयक के भाग के रूप में लाया गया था, उस समय भी न केवल कई विपक्षी दलों ने बल्कि चुनाव आयोग ने भी उस प्रस्तावित विधेयक के प्रति जो चिंताएं व्यक्त की थीं, अदालत ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में उन सभी बिंदुओं को संबोधित किया है। अब जबकि सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के बाद यह ‘ख़ुफ़िया ‘ इलेक्टोरल बॉन्ड्स योजना समाप्त हो जाएगी और कॉरपोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों को जो पैसा दिया जाता था, जिसके बारे में आम लोगों को कुछ भी पता नहीं होता था, वो बिल्कुल ही समाप्त हो जाएगा। और इस मामले में जो पारदर्शिता इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम ने ख़त्म की थी वो 2017 की पूर्व स्थिति में वापस आ जाएगी। दरअसल इस योजना में चंदा देने वालों का नाम छिपा सकने की इतनी अधिक संभावना थी कि राजनीतिक दलों और उन्हें दान देने वालों को इससे बहुत अर्थ लाभ हुआ। इससे पारदर्शिता तो क़तई नहीं बढ़ी परन्तु इसका एकदम विपरीत असर ज़रूर हुआ। ” इतना ही नहीं बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि चंदा देने वाले व्यक्ति या कंपनी का नाम न बताने का क़ानून सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। इस अदालती निर्णय के बाद कई उत्साहित विपक्षी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस्तीफ़े तक की मांग करने लगे हैं।

सत्तधारी भारतीय जनता पार्टी को इस योजना से क्या लाभ पहुंचा है, इसे लेकर इलेक्टोरल बॉन्ड से सम्बंधित माननीय सर्वोच्च न्यायलय फ़ैसला आने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया एक्स पर जो लिखा है वही इलेक्टोरल बॉन्ड के पीछे छुपी सरकार की मंशा को समझने के लिये काफ़ी है। राहुल गांधी ने लिखा है कि ”सस्ते में एयरपोर्ट बेचो, इलेक्टोरल बॉन्ड लो, सस्ते में माइन्स बेचो, इलेक्टोरल बॉन्ड लो, सस्ते में ज़मीन बेचो, इलेक्टोरल बॉन्ड लो। ”, मैं देश नहीं बिकने दूंगा का नारा देने वाले नरेंद्र मोदी चुनावी चंदे के लिए देश का हर संसाधन बेचने को तैयार हैं। मगर किसान अपनी फ़सल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य भी न मांगे, क्योंकि किसान इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं देता है। अजीब विडंबना है। ” राहुल की इस टिप्पणी में बहुत कुछ छिपा हुआ है। वैसे भी अगले लगभग तीन सप्ताह में यह जानकारी सार्वजनिक करने के बाद यह और भी साफ़ हो जायेगा कि किसने कितनी क़ीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे और किस राजनैतिक दल को चंदे के रूप में दिये। तभी पता चलेगा कि क्या ‘यह सब कुछ पाने के एवज़ में कुछ देना हुआ’ और किस से कितना लिया और लेने वाले ने उनके (देने वाले के लिये ) लिए क्या “उपकार “किया।”

राहुल गांधी का इशारा सीधे तौर पर मोदी सरकार द्वारा अडानी ग्रुप को लाभ पहुँचाने व इसके बदले में सत्ताधारी भाजपा के लिये अकूत धनराशि हासिल करने की तरफ़ है। दरअसल अडानी व मोदी की मित्रता तो 2012-13 से ही उस दौरान नज़र आने लगी थी जबकि नरेंद्र मोदी अडानी का निजी विमान लेकर पूरे देश में चुनाव प्रचार करते फिर रहे थे। अडानी का यह ‘उपकार’ उस समय और भी फली भूत होते दिखाई दिया जब 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी अपने साथ विदेश यात्राओं पर अडानी-अम्बानी जैसे उद्योगपतियों को अपने साथ ले जाने लगे और विदेशों में कई जगह उन्हें व्यावसायिक लाभ पहुँचाने लगे। उसके बाद देश में वही खेल शुरू हुआ जिसका इशारा राहुल गांधी ने किया। यानी रेल, तेल, गैस एयरपोर्ट, बंदरगाह, माइन्स, विद्युत, तमाम ज़मीनें आदि अनेक संसाधन अडानी व कुछ अन्य मित्र उद्योगपतियों के हवाले कर दिये गये। यहाँ तक कि दो वर्ष पूर्व लाया गया कृषि क़ानून भी कथित तौर पर ऐसे ही उद्योगपति मित्रों के हितों के मद्देनज़र लाया गया था। अनेक उद्योगपतियों का लाखों करोड़ का क़र्ज़ मुआफ़ करना भी सरकार की पूंजीवादी नीति और पूंजीवादियों को संरक्षण देने का ही द्योतक है।

चुनावी और राजनीतिक सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एसोसिएशन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने पिछले दिनों अपनी एक रिपोर्ट में जो आंकड़े पेश किए हैं उनके अनुसार भी 2022-23 में भारतीय जनता पार्टी को लगभग 720 करोड़ रुपये का इलेक्टोरल डोनेशन (चुनावी चंदा) मिला। यह आंकड़ा चार अन्य राष्ट्रीय दलों- कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, सीपीआई-एम और नेशनल पीपुल्स पार्टी को प्राप्त कुल चुनावी चंदे से पांच गुना अधिक है। यह आंकड़े स्वयं यह बताते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम का सबसे अधिक लाभ भारतीय जनता पार्टी को ही मिला है। यदि स्टेट बैंक आगामी कुछ ही दिनों में सर्वोच्च न्यायलय के निर्देशानुसार इलेक्टोरल बॉन्ड्स के सभी लेन देन संव्यवहार से पर्दा हटा देगा तो और भी दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। साथ ही यह भी पता चल सकेगा कि राहुल गांधी ने जिन सत्ता मित्र उद्योगपतियों की ओर इशारा किया है उसमें भी कितनी सच्चाई है। जो भी हो, चुनावी चंदे को लेकर लेन देन में बरती जाने वाली गोपनीयता अपने आप में इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफ़ी है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना संभवतः और कुछ नहीं बल्कि सत्ता द्वारा राष्ट्रवाद की आड़ में खेला जाने वाला रिश्वत और भ्रष्टाचार का एक बड़ा खेल था?

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

हमारे बारें में

वेब वार्ता समाचार एजेंसी

संपादक: सईद अहमद

पता: 111, First Floor, Pratap Bhawan, BSZ Marg, ITO, New Delhi-110096

फोन नंबर: 8587018587

ईमेल: webvarta@gmail.com

सबसे लोकप्रिय

Recent Comments