Saturday, July 27, 2024
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चुनावी काल में अशान्ति का दावानल

-डा. रवीन्द्र अरजरिया-

देश को अशान्त करने के लिये सीमा पार से निरंतर प्रयास होते रहे हैं। कभी राजनैतिक दलों ने सीधे प्रहार करके वैमनुष्यता के बीज बोये गये तो कभी अधिकारों की दुहाई पर अशान्ति फैलायी गई। छदम्म भेषधारियों की एक बडी फौज राष्ट्र के सीने में खंजर भौंपने का काम कर रही है। वर्तमान समय में लाल सलाम करने वालों ने हंसिया-हथौडा लेकर किसान आन्दोलन के नाम पर जेहाद छेड दिया है। एसी, गद्दे, फर्नीचर, शामयाना, पकवान पकाने के संसाधन, घातक उपकरणों के साथ-साथ धन की खुली थौलियां लेकर आने वालों ने अनेक असामाजिक तत्वों को भी भीड का अंग बना लिया। दिल्ली में अफरातफरी फैलाने के षडयंत्र को अमली जामा पहनाना शुरू हो चुका है। खालिस्तान समर्थकों की एक बडी संख्या भी आन्दोलन का हिस्सा बनकर सरकार विरोधी अभियान में जुट गई। आरोपों में आकण्ठ डूबे अनेक राजनैतिक दलों के संरक्षण में पर्दे के पीछे से चीनी चालें विकराल रूप लेती जा रहीं हैं। पाकिस्तान के रास्ते से आने वाली घातक योजनायें पंजाब में पांव पसारती जा रहीं हैं। खेत पर काम करने वाले किसानों को इस फसली काल में आन्दोलन का विचार सूझना नितांत अप्रासांगिक है। उनके सामने लो लहलहाते पौधे हैं, उनकी परवरिश है और है कमाई का एक अवसर। ऐसे में वास्तविक किसान तो खेतों की मैड पर पसीना बहा रहा है जबकि दिल्ली बार्डर पर सरकार के विरुध्द मोर्चा खोलने वाले किसानों के नाम का सहारा लेकर चुनावी काल में छुपे एजेन्डा पर काम करने में जुटे हैं। स्वादिष्ट भोजन, मनोरंजन के संसाधन, आराम की सुविधाओं का उपभोग करने वाली भीड सरकार पर दबाब बनाकर विदेशी लक्ष्य साधने में लगी है। दूसरी ओर बेलगाम हो चुका बंगाल अब पूरी तरह से मनमानी पर उतर आया है। घुसपैठियों की दम पर हुंकार भरने वाली सरकार की तानाशाही चरम सीमा पर पहुंचती जा रही है।

केन्द्र के सरकारी अमले तक पर आक्रमण की घटनायें सरेआम सामने आ रहीं हैं। आर्थिक विकास के मापदण्डों पर चार कदम आगे चलकर दुनिया में सनातन का परचम फहराने वाले भारत के विकास से पडोसी घबडा रहे हैं। चीन, पाकिस्तान, कनाडा, मालदीप जैसे देश एक जुट होकर भारत में भितरघातियों के कंधों पर हथियार रखकर चलाने में जुटे हैं। लोकसभा चुनावों के आधार पर तय होने वाला भारत का भविष्य एक बार फिर देश के नागरिकों की अग्नि परीक्षा की अग्नि परीक्षा लेने की तैयारी में है। वहीं दुनिया के अनेक मुस्लिम कट्टरपंथी राष्ट्र अब सनातन के मानवतावादी सिध्दान्तों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात के आबूधाबी के बाद अब बहरीन में भी सनातन के प्रेरणालय यानी मंदिर की आधार भूमि तैयार हो गई है। कट्टरपंथी मुस्लिम राष्ट्रों में वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श वाक्य को चरितार्थ करने वाली प्रकृति को स्वीकारोक्ति मिलना सहज नहीं है। भावनात्मक थाथी लेकर सर्वे भवन्तु सुखिन: का शंखनाद करने वालों पर दैत्व आक्रमण होना, आश्चर्य चकित नहीं करता। स्वार्थ, लालच और अहंकार का भण्डार जमा करने की नियत वालों को एकत्रित करके उन्हें सुखद भविष्य की मृग मारीचिका के पीछे दौडाया जा रहा है। पैसों पर जमीर बेचना वालों की भीड चारों ओर बढती जा रही है। घर के भेदिये को ही परिवार का अहसान फरोमोश बनाया जा रहा है। देश में उत्तराखण्ड की हल्व्दानी, बंगाल की संदेशखाली, दिल्ली बार्डर जैसी घटनायें तो सामने आ चुकीं है परन्तु अभी अनेक षडयंत्रों का क्रियान्वयन होना बाकी है।

लोक सभा के चुनावों की घोषणा के ठीक पहले जगह-जगह अशान्ति का वातावरण निर्मित करके मतदाताओं के मस्तिष्क को असत्य से प्रभावित करने की मंशा साफ जाहिर हो रही है। विश्व मंच पर भारत के बढते प्रभाव से बौखलाये देशों ने भारत विरोधियों पर विदेशी पैसों की बरसात करना शुरू कर दी है ताकि धनपिपासु को आकर्षित किया जा सके। चुनावी काल में अशान्ति का दावानल विकराल किया जा रहा है ताकि क्षुधा शान्ति के लिए विदेशों से सामने कटोरा लेकर खडा रहने वाले देश का अतीत एक बार फिर पुनरावृत्ति कर सके। स्वाभिमानी भारत को विश्वगुरु के सिंहासन पर आसीन होने की स्थितियां निर्मित होते ही कलुषित मानसिकता का वीभत्स क्रन्दन शुरू होने लगा है। सियारों की आवाजें रात के अंधेरे में रुदन करने लगती है। अपनों के खून से होली खेलने के लिए लोगों की आंखों पर पट्टियां बांधी जा रहीं हैं। जीवन के बाद के सुनहरे सपने दिखाये जा रहे हैं। चांदी के सिक्कों पर सौदों के महल खडा हो रहे हैं। ऐसे में देश के आम आवाम को स्वयं ही अपने विवेक को जगाना होगा, इतिहास को खंगालना होगा और लेने होंगे राष्ट्रहित में निर्णय ताकि देश की विकास यात्रा को गौरवशाली पथ पर तेजी से आगे बढाया जा सके। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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