नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। ईद मिलादुन्नबी, पैगंबर हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जन्मदिवस का पवित्र उत्सव, आज पूरी दुनिया में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबीउल अव्वल के 12वें दिन मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल पैगंबर साहब के जीवन और शिक्षाओं की याद दिलाता है, बल्कि उनके द्वारा दी गई सहिष्णुता, शांति, और मानवता की शिक्षाओं को अपनाने का अवसर भी प्रदान करता है।
पैगंबर मोहम्मद: सहिष्णुता और सौहार्द के प्रतीक
पैगंबरे-इस्लाम हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को रहमतुल्लिल आलमीन (समस्त विश्व के लिए रहमत) कहा जाता है। उनका जीवन सत्य, सद्भावना, और धार्मिक सहिष्णुता का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने मोहब्बत का पैगाम दिया और बुग्ज (कपट), गीबत (चुगली), और फसाद (दंगा) को सख्ती से नकारा। उनके शब्दों और आचरण में अम्नो-सुकून (शांति और चैन) की भावना झलकती थी।
“मानवता की मिसाल और मोहब्बत की महक का नाम है मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम),” – लेखक।
पैगंबर साहब का व्यक्तित्व सत्य और सद्भावना का संस्कार था, और उनका कृतित्व इस संस्कार को व्यवहार में उतारने का प्रतीक था। कुरआन-ए-पाक में अल्लाह का फरमान है:
“ला युहिब्बुल्लाहिल मुफसेदीन” (अल्लाह फसाद करने वालों से मोहब्बत नहीं करता)।
“व मय्युहिब्बुल्लाहिल मोहसेनीन” (अल्लाह सौहार्द बढ़ाने वालों से मोहब्बत करता है)।
धार्मिक सहिष्णुता का ऐतिहासिक प्रमाण
पैगंबर मोहम्मद की धार्मिक सहिष्णुता को दो ऐतिहासिक दृष्टांत स्पष्ट करते हैं:
मीसाके-मदीना: पैगंबर साहब ने मदीना का संविधान (मीसाके-मदीना) तैयार करवाया, जो उस दौर का पहला लिखित संविधान था। इस दस्तावेज की 45 धाराओं में से शुरुआती 15 धाराएं धार्मिक सहिष्णुता को समर्पित थीं, जिसमें मुसलमानों, यहूदियों, और अन्य धर्मों के अनुयायियों को अंतःकरण और विश्वास की स्वतंत्रता दी गई। यह दस्तावेज आज भी सामाजिक सौहार्द और अंतर-धार्मिक एकता का प्रतीक है।
सूरे काफेरून की आयत: कुरआन-ए-पाक के तीसवें पारे में सूरे काफेरून की आयत “लकुम दीनोकुम वलियदीन” (तुम्हें तुम्हारा धर्म मुबारक, मुझे मेरा धर्म मुबारक) धार्मिक सहिष्णुता का स्पष्ट संदेश देती है। पैगंबर साहब ने इस आयत को अपने आचरण में उतारकर अंतर-धार्मिक सम्मान का उदाहरण प्रस्तुत किया। यह आयत श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय के 21वें श्लोक और जैन दर्शन के स्याद्वाद सिद्धांत के साथ समानता रखती है, जो सभी धर्मों में सहिष्णुता की एकरूपता को दर्शाता है।
मोहम्मद साहब का जीवन: मानवता का प्रकाश
हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का जन्म 570 ईसवीं में मक्का (सऊदी अरब) में हुआ। उस दौर में अरब समाज में हिंसा, जहालत, और सामाजिक बुराइयां व्याप्त थीं। औरतों और बच्चों की सुरक्षा खतरे में थी, कबीलों में हिंसा आम थी, और बेटियों को जिंदा दफन करने की कुप्रथा प्रचलित थी। ऐसे समय में पैगंबर साहब ने मानवता, समानता, और शांति का संदेश दिया।
बचपन और युवावस्था: पैगंबर साहब के पिता अब्दुल्लाह का निधन उनके जन्म से पहले हो गया था, और मां आमिना का देहांत छह वर्ष की आयु में हुआ। उनके दादा अब्दुल मुत्तलिब और चाचा अबू तालिब ने उनका पालन-पोषण किया। कम उम्र में ही उनकी ईमानदारी और सच्चाई ने उन्हें अल-अमीन (भरोसेमंद) और अल-सादिक (सच्चा) का खिताब दिलाया।
विवाह और सामाजिक संदेश: 25 वर्ष की आयु में पैगंबर साहब ने 40 वर्षीय विधवा हजरत खदीजा से विवाह किया, जिससे विधवा विवाह को सामाजिक स्वीकृति देने का संदेश दिया। यह कदम उस समय की रूढ़ियों को तोड़ने वाला था।
नुबुव्वत और कुरआन: 610 ईसवीं में, 40 वर्ष की आयु में, गार-ए-हिरा गुफा में जिब्राइल फरिश्ते के माध्यम से पैगंबर साहब को नुबुव्वत (पैगंबरी) का संदेश मिला। इसके बाद कुरआन-ए-पाक की आयतें 23 वर्षों में पूरी हुईं, जो आज भी मानवता को नैतिकता, शांति, और भाईचारे का मार्ग दिखाती हैं।
हिजरत और मदीना: 622 ईसवीं में पैगंबर साहब ने मक्का से मदीना की हिजरत की, जिससे हिजरी कैलेंडर की शुरुआत हुई। मदीना में उन्होंने एक आदर्श समाज की स्थापना की, जहां विभिन्न कबीलों और धर्मों के लोग समानता के साथ रहते थे।
आखिरी हज और निधन: 632 ईसवीं में पैगंबर साहब ने अपनी अंतिम हज यात्रा की और उसी वर्ष 8 जून को 63 वर्ष की आयु में मदीना में उनका निधन हुआ।
ईद मिलादुन्नबी: उत्सव और संदेश
ईद मिलादुन्नबी (मौलिद-उन-नबी) का अर्थ है पैगंबर का जन्मदिन। यह उत्सव रबीउल अव्वल के 12वें दिन मनाया जाता है, जो पैगंबर साहब के जन्म और निधन दोनों की तारीख है। इस दिन सीरत (पैगंबर का जीवन-चरित्र) और नात (पैगंबर की प्रशंसा में कविताएं) पढ़ी जाती हैं। यह उत्सव शांति, भाईचारा, और नैतिकता को बढ़ावा देता है।
दुनिया भर में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है:
अरबी: मौलिद-उन-नबी, यौम-उन-नबी
उर्दू: ईद मिलादुन्नबी
दक्षिण भारत: नबी जयंती
तुर्की: मेवलिद-ए-शरीफ
मलय: मौलिदुर-रसूल
पैगंबर की शिक्षाएं: आज भी प्रासंगिक
पैगंबर साहब की शिक्षाएं आज भी सामाजिक सौहार्द और मानवता के लिए प्रासंगिक हैं:
महिलाओं का सम्मान: उन्होंने औरतों को सम्मान और सुरक्षा का अधिकार दिया और बेटी को किस्मत का तोहफा बताया।
समानता और भाईचारा: जातिगत भेदभाव को नकारते हुए सभी को समान माना।
ईमानदारी और सादगी: अल-अमीन और अल-सादिक के रूप में उनकी सच्चाई और सादगी ने लोगों को प्रेरित किया।
शांति और सहिष्णुता: मीसाके-मदीना और सूरे काफेरून के माध्यम से उन्होंने अंतर-धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा दिया।
“मोहम्मद साहब ने इंसान को दुनियावी और दीनी तालीम देते हुए हक के रास्ते पर चलने की नसीहत दी,” – लेखक।
सामाजिक और वैश्विक प्रभाव
पैगंबर साहब के आदर्शों ने न केवल अरब समाज को बदला, बल्कि पूरी दुनिया में नैतिकता और मानवता का संदेश फैलाया। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, पैगंबर साहब ने मात्र 23 वर्षों में इतिहास का रुख बदल दिया। लेखिका लेस्ली हेजलटन ने अपनी पुस्तक द फर्स्ट मुस्लिम में उनके जीवन को मानवता का प्रकाश बताया।
निष्कर्ष
ईद मिलादुन्नबी 2025 का यह पवित्र अवसर हमें पैगंबर हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के शांति, सहिष्णुता, और मानवता के संदेश को अपनाने की प्रेरणा देता है। उनके द्वारा स्थापित मीसाके-मदीना और कुरआन की आयतें आज भी हमें अंतर-धार्मिक सद्भाव और सामाजिक एकता की राह दिखाती हैं। यह उत्सव हमें उनके आदर्शों को जीवन में उतारने और शांति व भाईचारे को बढ़ावा देने का अवसर देता है।
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