-सुनील कुमार महला-
दिल्ली में प्रदूषण की समस्या एक बड़ी व प्रमुख समस्या रही है, फिर चाहे वह वायु प्रदूषण हो अथवा यमुना नदी में जल प्रदूषण की समस्या हो। गौरतलब है कि भारत की प्रमुख यमुना नदी का प्रदूषण तो कुछ समय पहले दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी एक अहम् और महत्वपूर्ण मुद्दा बना रहा। पाठकों को बताता चलूं कि यमुना नदी का उद्गम स्थल, उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित यमुनोत्री ग्लेशियर है और यह ग्लेशियर, बंदरपूंछ चोटियों के दक्षिण-पश्चिमी ढलानों पर स्थित है। यमुना नदी की लंबाई 1, 376 किलोमीटर है और यमुना नदी का कुल जलग्रहण क्षेत्र 36, 220 वर्ग किलोमीटर में फैला है। यह नदी आगरा, मथुरा और दिल्ली सहित कई महत्वपूर्ण शहरों से निकलती है और प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में बहती है, जहाँ यह पवित्र गंगा नदी से मिलती है। भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक ग्रंथों में जहां जल में ईश का वास माना गया है, वहीं नदियों को देवी तथा मां तक का संबोधन दिया गया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि पौराणिक कथाओं कहीं किसी नदी का उल्लेख किसी की पुत्री, तो किसी का किसी की बेटी, बहन अथवा अर्धांगिनी के रूप में आया है, लेकिन आज देश की नदियों के संरक्षण की आवश्यकता महत्ती है, क्यों कि आज बहुत सी नदियों को प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है। बहरहाल, आज यमुना भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में एक प्रदूषित नदी है।
वास्तव में, यमुना नदी के प्रदूषण का प्रमुख कारण क्रमशः शहरों से निकलने वाले अथाह सीवेज और औद्योगिक कचरा व गंदा पानी, कृषि अपशिष्ट, प्लास्टिक प्रदूषण, भारी धातु संदूषण, विभिन्न नालों से निकलने वाला गंदा पानी, नदी में डाला जाने वाला घरेलू कचरा आदि हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार यमुना में डाले जाने वाले कुल कचरे में घरेलू कचरा दो तिहाई से ज़्यादा होता है। एक अन्य उपलब्ध जानकारी के अनुसार ओखला बैराज और वजीराबाद के बीच यमुना का 22 किलोमीटर का हिस्सा पूरी तरह से प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है, जो नदी के 80% हिस्से के लिए जिम्मेदार है। जानकारी मिलती है कि नोएडा और पूर्वी दिल्ली से निकलने वाला मलबा शाहदरा नाले से बहकर नदी में आता है और बैराज के नीचे की ओर जाकर नदी में मिल जाता है। हालाँकि, कई अन्य कारक भी हैं, लेकिन दिल्ली का अपशिष्ट उत्पादन यमुना नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण है। गौरतलब है कि यमुना बेसिन का 12% हिस्सा जंगल से घिरा है, 27% बंजर भूमि है, 53% कृषि भूमि है और शेष 95% कस्बों, गांवों और शहरों से बना है। 53% कृषि भूमि पर कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जो सीधे यमुना प्रदूषण में योगदान करते हैं। इतना ही नहीं, यमुना नदी बेसिन की कृषि भूमि प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। यह भी उल्लेखनीय है कि यमुना नदी बेसिन के पास भूस्खलन का एक और प्रभाव जल प्रदूषण है। आमतौर पर, यह तब होता है जब बारिश होती है। नदी के किनारे पर फेंकी गई सारी मिट्टी और ठोस कचरा, जब जल स्तर अधिक होता है, तो पानी के साथ बह जाता है।
पाठकों को यह भी बताता चलूं कि 18 बड़े नालों के जरिये 350 लाख लीटर से अधिक गंदा पानी और सीवेज सीधे यमुना में गिरता है। शायद यही कारण भी है कि आज यमुना न केवल उत्तर भारत में बल्कि पूरे देश में सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है। गौरतलब है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यमुना किनारे टूरिज्म कॉरिडोर के विकास का वादा किया था। बीजेपी की जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए हमारे देश के पीएम ने जिस तरह यमुना की सफाई को लेकर प्रतिबद्धता जताई तथा, यमुना मैया की जय का नारा लगाया, उससे अब यह उम्मीद जताई जा सकती है कि यमुना फिर से साफ, शुद्ध और निर्मल हो सकेगी। ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि दिल्ली में यमुना 22 किलोमीटर हिस्से में बहती है। यह पूरी यमुना का महज दो प्रतिशत है और यमुना का सबसे प्रदूषित हिस्सा है। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार यमुना नदी के प्रदूषण स्तर को कम करने के लिए वर्ष 2017-2021 के बीच 6500 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, लेकिन अनाधिकृत कॉलोनियों से निकलने वाले सेप्टेज और सीवेज सिस्टम की कमी अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, लेकिन अच्छी बात यह है कि अब इस प्राकृतिक जल स्रोत(यमुना) की सफाई के लिए प्रयास शुरू हो गए हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावी बयानबाजी में एक-दूसरे दल के खिलाफ खूब आरोप-प्रत्यारोप हुए। यदि राजनीतिक लाभ-हानि को दरकिनार करें, तो आम जनता को इससे यह एक बड़ा फायदा हुआ कि यमुना का प्रदूषण चुनावों के दौरान एक प्रमुख मुद्दा बन गया। भारत जैसे देश में तो नदियों की पूजा की जाती रही है और यमुना भारत की एक पवित्र नदी थी, आज यह प्रदूषित जरूर हो गई है, लेकिन आज भी लोगों में इसके प्रति विशेष श्रद्धा है।
कहना ग़लत नहीं होगा कि नदियां हमेशा-हमेशा से हमारी सभ्यता-संस्कृतियों के फलने-फूलने का विशेष केंद्र बिंदु रहीं हैं। नदियों का जल जहां पीने के लिए काम आता है, वहीं दूसरी ओर खेती समेत अन्य कार्यों के लिए भी नदियों का जल धरती के सभी प्राणियों, वनस्पतियों तक के लिए महत्वपूर्ण है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि अब तक यमुना नदी की साफ-सफाई के लिए सरकार द्वारा बहुत पैसा खर्च किया जा चुका है। मसलन, वर्ष 1993 में यमुना एक्शन प्लान शुरू हुआ, इसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के 21 शहर शामिल थे। वर्ष 2002 तक इसमें कुल खर्च 682 करोड़ रुपये था। इसके बाद वर्ष 2012 में यमुना एक्शन प्लान चरण (दो) के तहत इस पर 1, 514.70 करोड़ रुपये, एक्शन प्लान चरण तीन के तहत कुल 1, 656 करोड़ रुपये अनुमानित खर्च रहा। गौरतलब है कि इस चरण में दिल्ली में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और ट्रंक सीवर का पुनर्वास आदि शामिल किया गया था। इसी तरह से वर्ष 2015 से वर्ष 2023 तक केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए दिल्ली जल बोर्ड को(नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के अंतर्गत)कुल 1, 000 करोड़ रुपये और यमुना एक्शन प्लान-तीन के अंतर्गत 200 करोड़ रुपये दिए गए थे। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की साफ-सफाई पर खर्च किया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 11 परियोजनाओं के लिए जल शक्ति मंत्रालय ने 2361.08 करोड़ रुपये दिए। इसमें यमुना भी शामिल थी। इतना ही नहीं, वर्ष 2018 से 2021 के बीच 200 करोड़ रुपये आवंटित हुए।
पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि सरकार यमुना की सफाई के लिए 1665 करोड़ के बजट के साथ ‘यमुना एक्शन प्लान’ को वित्तपोषित कर रही है और इस कार्ययोजना को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए भारत सरकार को जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन से सहायता मिल रही है। इस रणनीति को लागू करने के लिए दिल्ली जल बोर्ड को नोडल एजेंसी बनाया गया है। कार्ययोजना के चरण-दर-चरण क्रियान्वयन के लिए दिल्ली को तीन खंडों क्रमशः ओखला, रिठाला और कंडाली में बांटा गया है। बहरहाल, अगर हमें अपने पर्यावरण को साफ और अपने जीवन जीने लायक बनाना है तो हमें निश्चित ही नदियों की सफाई पर विशेष ध्यान देना होगा। हमें यह याद रखना चाहिए कि देश के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का आधार नदियां ही हैं। औद्योगीकरण और बढ़ते शहरीकरण, विकास के कारण नदियों पर संकट कहीं न कहीं अधिक बढ़ा है। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि पृथ्वी की सतह पर जो पानी की उपलब्धता है उसमें से 97 प्रतिशत सागरों और महासागरों में है, जो कि नमकीन या खारा है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह पानी पीने योग्य नहीं है।
केवल तीन प्रतिशत जल ही पीने योग्य है, जिसमें से 2.4 प्रतिशत पानी ग्लेशियरों और उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में बर्फ के रूप में है। केवल 0.6 प्रतिशत पानी नदियों, झीलों और तालाबों में है, जिसे इस्तेमाल किया जा सकता है। इस हिसाब से हमें नदियों का संरक्षण करना चाहिए। आज कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने, खुद नहाने, प्लास्टिक का बेतहाशा इस्तेमाल करने, उसे नदियों में फेंकने इत्यादि सभी कार्यों की वजह से नदियों का जल लगातार प्रदूषित हो रहा है। यह बहुत ही दुखद है कि कल-कारखानों से निकलता हुआ कचरा, कूड़ा-करकट, विभिन्न रासायनिक पदार्थों, गंदगी आदि को नदियों के जल में बिना सोचे-समझे प्रवाहित किया जा रहा है। इससे नदियों का जल बुरे तरीके से प्रदूषित व गंदा हो रहा है। यदि हमें हमारी नदियों को संरक्षित करना है, तो हमे कचरे को नदियों में फेंकना बंद करना होगा। कल-कारखानों को कचरा, रासायनिक पदार्थों आदि को नदियों में कदापि नहीं डालना चाहिए, क्यों कि ऐसा करने से पानी में रहने वाले लाभदायक जीव मर जाते हैं। यह बहुत ही बड़ी बात है कि आज औधोगिक कचरे को बिना उपचारित किए ही नदियों में डाल दिया जाता है। फैक्ट्रियों को जितना व जहां तक संभव हो सके कचरे को नदियों में डालने से बचना चाहिए।
अगर हम सब मिलकर नदियों को संरक्षित करने की शपथ लें तो, हम निश्चित तौर पर नदियों को साफ रख पाएंगे। इसके लिए हमें वृक्षों का संरक्षण करना करना चाहिए, क्यों कि वृक्ष होंगे तो वर्षा होगी और अगर वर्षा होगी तो नदियों का जल स्रोत भी कहीं न कहीं अवश्य ही बढ़ेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि नदियों की साफ-सफाई में आम जनता की भागीदारी भी बहुत ही जरूरी व आवश्यक है, लेकिन संसाधनों के मामले में सरकार की जिम्मेदारी बड़ी व महत्वपूर्ण है। वास्तव में, आज जरूरत इस बात की है कि हम विकास परियोजनाओं से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए ठोस व प्रभावी रणनीतियों को अमल में लाएं। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि जलमार्गों की सफाई स्वस्थ जलमार्गों को बढ़ावा देने, संसाधनों का स्थायी व सही प्रबंधन करने और विशेषकर हमारे पर्यावरण की रक्षा करने के लिए बहुत ही अहम् और महत्वपूर्ण है। कहना चाहूंगा कि जल प्रदूषण(विशेषकर नदियों)की सफाई के कई आर्थिक, स्वास्थ्य और शैक्षिक लाभ भी हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि समुद्री जीवन की भी इससे कहीं न कहीं रक्षा होती है। वास्तव में नदियों को साफ रखने के लिए जागरुकता बहुत ही जरूरी है। दूसरे शब्दों में कहें तो स्थानीय लोगों का जागरूक एवं जिम्मेवार होना सबसे ज्यादा आवश्यक है।
वास्तव में, स्थानीय जन समुदाय की भूमिका निगरानी से लेकर सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं, कार्यक्रमों, अभियान इत्यादि में सक्रिय भागीदारी से है। स्थानीय स्तर पर स्वच्छता अभियान आयोजित किया जाने बहुत ही जरूरी है। नदी के किनारों पर लगाए गए पेड़ों की संख्या बढ़ाकर भी नदी बेसिन में भूस्खलन को रोका जा सकता है। भूस्खलन रूकेगा तो नदियों की रक्षा होगी, क्यों कि भूस्खलन से नदियां प्रदूषित होती हैं। प्रदूषित जल के लिए जल उपचार संयंत्रों का प्रयोग एक अच्छा कदम साबित हो सकता है। प्लास्टिक प्रदूषण, सीवेज से नदियों को बचाया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो उद्योगों का अनुपचारित पानी, प्लास्टिक तथा जैविक पदार्थ नदियों में नहीं मिलने देना चाहिए। नदियों में औधोगिक कचरे को डालने वाले लोगों को दंडित किया जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार नदियों के प्रदूषण की रोकथाम के लिए अनेक कानून बना सकती है लेकिन उन कानूनों का पालन आम जनमानस की भागीदारी के बिना अधूरी होगी। सच तो यह है कि नदियों में छोड़े जाने वाले औद्योगिक और घरेलू कचरे व गंदे पानी की निकासी का सही से व पुख्ता इलाज होना चाहिए। बड़े उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित पदार्थों को नदियों में छोडऩा सख्त मना होना चाहिए।
इतना ही नहीं, नदियों में शव बहाना तुरंत बंद होना चाहिए। नदियों को हमें अपनी खुद की संपत्ति समझना चाहिए। कहना चाहूंगा कि नदियां हमारे जीवन का अहम् और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। आज मानवीय हस्तक्षेप के कारण नदियां निरन्तर प्रदूषित हो रही हैं। हमें जिम्मेदार नागरिक की तरह कूड़े-करकट, पॉलिथीन जैसे पदार्थ नदियों में नहीं डालना चाहिए। हमें यह चाहिए कि हम नदियों में रहने वाले जीवों का शिकार नहीं करें, क्योंकि ये जीव नदी को प्रदूषित होने से रोकते हैं। भू-जल स्तर, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता को स्थिर रखने के लिए, इन पवित्र नदियों के प्रवाह क्षेत्र को अतिक्रमण से बचाना व प्रदूषण मुक्त रखना बेहद जरूरी है। शासन-प्रशासन व आमजन की दृढ़ इच्छाशक्ति, निगरानी एवं नियंत्रण द्वारा ही प्रदूषित हो चुकी नदियों को बचाया जा सकता है। यदि हमारे देश की नदियां सुरक्षित रहेंगी तो हमारे देश का पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र सही रहेंगे। जीव-जंतुओं और वनस्पति की रक्षा हो सकेगी। देश में पर्यटन के अवसर भी बढ़ेंगे और इससे देश को आय भी होगी। स्वच्छ नदी से स्वस्थ पारिस्थितिकी और जैव-विविधता को भी बढ़ावा मिलेगा।