Wednesday, November 19, 2025
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सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से दुखी लाखों शिक्षक नहीं मनाएंगे शिक्षक दिवस 2025

ललितपुर, आलोक चतुर्वेदी (वेब वार्ता)। माननीय सुप्रीम कोर्ट के 01 सितंबर 2025 के एक ऐतिहासिक निर्णय ने देशभर के लाखों शिक्षकों के सामने रोजगार का संकट खड़ा कर दिया है। इस फैसले के अनुसार, शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) को सरकारी और संभावित रूप से निजी स्कूलों में अनिवार्य करने का आदेश दिया गया है। इसके तहत, जिन शिक्षकों की सेवा में 5 वर्ष से अधिक समय शेष है, उन्हें 2 वर्ष के भीतर TET पास करना होगा, अन्यथा उनकी सेवाएं समाप्त हो सकती हैं। इस निर्णय से प्रभावित होने वाले सरकारी शिक्षकों की संख्या 10 लाख से अधिक बताई जा रही है, और यदि यह निजी स्कूलों पर भी लागू हुआ, तो यह आंकड़ा करोड़ों में पहुंच सकता है। इस फैसले ने शिक्षकों में चिंता और असंतोष की लहर पैदा कर दी है, जिसके चलते कई शिक्षक संगठनों ने इस वर्ष शिक्षक दिवस (5 सितंबर 2025) को न मनाने का फैसला किया है।

शिक्षकों का दर्द: सम्मान या अपमान?

हर साल 5 सितंबर को देश और विभिन्न राज्य सरकारें मंच सजाकर चुनिंदा शिक्षकों को सम्मानित करती हैं। लेकिन इस बार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने शिक्षकों के मन में एक सवाल खड़ा कर दिया है: “क्या ऐसी विषम परिस्थितियों में मिलने वाला सम्मान मन से स्वीकार किया जा सकता है?” उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ, ललितपुर के जिलाध्यक्ष राजेश लिटौरिया और जिला मंत्री अरुण गोस्वामी ने संयुक्त बयान में कहा, “यह निर्णय शिक्षकों के वर्षों के अनुभव और समर्पण का अपमान है। जब नौकरी पर तलवार लटक रही हो, तो मंचीय सम्मान का कोई अर्थ नहीं रह जाता।”

उन्होंने आगे कहा, “हम माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री से अनुरोध करते हैं कि शिक्षकों के साथ न्याय करें। उनकी घोषणा ही शिक्षकों के लिए सच्चा सम्मान होगी।” शिक्षक संगठनों का कहना है कि यह फैसला न केवल शिक्षकों के लिए, बल्कि ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था के लिए भी नुकसानदायक हो सकता है, जहां पहले से ही शिक्षकों की कमी है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: क्या है पूरा मामला?

1 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) को अनिवार्य करने का फैसला सुनाया। इस फैसले के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

  • नए शिक्षकों के लिए: कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सभी नए शिक्षकों के लिए TET पास करना अनिवार्य होगा।

  • वर्तमान शिक्षकों के लिए: जिन शिक्षकों की सेवा में 5 वर्ष से अधिक समय शेष है, उन्हें 2 वर्ष के भीतर TET पास करना होगा, अन्यथा उनकी सेवाएं समाप्त हो सकती हैं।

  • 5 वर्ष से कम सेवा वाले शिक्षक: जिनके पास 5 वर्ष से कम सेवा बची है, उन्हें TET से छूट दी जाएगी, लेकिन प्रमोशन के लिए TET अनिवार्य रहेगा।

  • अल्पसंख्यक संस्थान: अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर यह नियम लागू होगा या नहीं, इस पर फैसला 7 जजों की बड़ी बेंच करेगी।

यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) के 2010 के दिशानिर्देशों और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 23 पर आधारित है, जो शिक्षण में न्यूनतम योग्यता मानकों को सुनिश्चित करता है।

शिक्षकों का विरोध: “अनुभव का अपमान”

देशभर के शिक्षक संगठनों ने इस फैसले का कड़ा विरोध शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ, ललितपुर सहित अन्य संगठनों जैसे अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ और ऑल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन ने इसे “अनुभव का अपमान” करार दिया है। उनका तर्क है:

  • दशकों से पढ़ा रहे शिक्षकों को एक नई परीक्षा की कसौटी पर कसना उनके समर्पण और योगदान को नजरअंदाज करना है।

  • ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत शिक्षकों के लिए TET की तैयारी और संसाधन एक बड़ी चुनौती हैं।

  • इस फैसले से स्कूलों में शिक्षकों की कमी और बढ़ सकती है, जिसका असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ेगा।

ललितपुर के शिक्षक विजय कुमार ने कहा, “20 साल से पढ़ाने के बाद अब हमें साबित करना होगा कि हम योग्य हैं? यह हमारे आत्मसम्मान पर चोट है।” शिक्षक संगठनों ने 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के बजाय “काला दिवस” मनाने की घोषणा की है और लखनऊ, पटना, मुंबई, और चेन्नई में बड़े आंदोलनों की तैयारी कर रहे हैं।

शिक्षकों की मांगें

उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ, ललितपुर ने सरकार और सुप्रीम कोर्ट से निम्नलिखित मांगें रखी हैं:

  • अनुभवी शिक्षकों को TET से पूर्ण छूट दी जाए।

  • ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विशेष प्रशिक्षण और सरल परीक्षा पैटर्न लागू किया जाए।

  • प्रमोशन में TET को अनिवार्य न किया जाए।

संघ के जिलाध्यक्ष राजेश लिटौरिया ने कहा, “हमारी मांगें न केवल शिक्षकों के हित में हैं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए भी हैं। यदि सरकार हमारी बात नहीं मानती, तो हम मजबूरन सड़कों पर उतरेंगे।”

शिक्षक दिवस 2025: उत्सव या शोक?

हर साल शिक्षक दिवस पर स्कूलों और सरकारी मंचों पर शिक्षकों का सम्मान होता है। लेकिन इस बार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इस उत्सव पर ग्रहण लगा दिया है। ललितपुर सहित उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, और अन्य राज्यों के शिक्षक संगठनों ने घोषणा की है कि वे इस बार शिक्षक दिवस नहीं मनाएंगे। इसके बजाय, वे विरोध प्रदर्शन, धरना, और हड़ताल की योजना बना रहे हैं।

अरुण गोस्वामी ने कहा, “जब हमारी नौकरी खतरे में है, तो सम्मान समारोह का क्या मतलब? हम चाहते हैं कि सरकार और कोर्ट हमारे अनुभव को महत्व दें।” शिक्षकों का मानना है कि यह फैसला ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था को और कमजोर करेगा, जहां पहले से ही शिक्षकों की कमी है।

सरकार से अपील: शिक्षकों के साथ न्याय करें

शिक्षक संगठनों ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की है कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करें। उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री से इस फैसले पर पुनर्विचार करने और शिक्षकों के लिए राहत पैकेज की घोषणा करने की मांग की है। उनकी मांग है कि अनुभवी शिक्षकों को TET से छूट दी जाए और ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।

ललितपुर के शिक्षकों ने कहा, “हमारी मेहनत और अनुभव को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। सरकार का एक सकारात्मक कदम ही शिक्षक दिवस का सच्चा सम्मान होगा।”

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता बढ़ाने की दिशा में एक कदम हो सकता है, लेकिन इसके तात्कालिक प्रभाव ने लाखों शिक्षकों के सामने अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया है। शिक्षक दिवस 2025, जो शिक्षा के प्रति समर्पण का प्रतीक है, इस बार विरोध और चिंता के साये में मनाया जाएगा। शिक्षक संगठनों की मांग है कि सरकार और न्यायपालिका उनके अनुभव को सम्मान दे और इस फैसले पर पुनर्विचार करे।

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