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संस्कार-संगम की शिक्षक दिवस पर परिचर्चा: शिक्षक हैं सभ्यता और संस्कृति की नींव

कुशीनगर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में परंपरागत मूल्यों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्यरत अखिल भारतीय सांस्कृतिक संस्था संस्कार-संगम ने शिक्षक दिवस के अवसर पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया। यह परिचर्चा नगर के चित्रतुली मोहल्ले में डॉ. अंबरीश विश्वकर्मा के आवास पर आयोजित हुई, जिसमें शिक्षकों की समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की गई। कार्यक्रम में वक्ताओं ने शिक्षकों को सभ्यता और संस्कृति की नींव बताते हुए उनके योगदान को रेखांकित किया।

दीप प्रज्वलन और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ शुरुआत

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुआ, जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति सम्मान को दर्शाता है। इस अवसर पर उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों ने शिक्षक दिवस के महत्व को समझाया और शिक्षकों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।

शिक्षक ज्ञान के साथ संस्कारों की शिक्षा देते हैं: सुरेश प्रसाद गुप्ता

मुख्य अतिथि, अवकाश प्राप्त प्रवक्ता सुरेश प्रसाद गुप्ता ने अपने संबोधन में शिक्षकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा:

“शिक्षक हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं। वे केवल किताबी ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि संस्कारों की शिक्षा देकर समाज को समृद्ध और सुसंस्कृत बनाते हैं। एक शिक्षक के मार्गदर्शन से ही व्यक्ति समाज में अपनी पहचान बनाता है।”

उन्होंने शिक्षकों को समाज का आधार बताते हुए उनके योगदान को अपरिहार्य बताया।

शिक्षकों पर टिकी है सभ्यता और संस्कृति: दिनेश भोजपुरिया

लब्धप्रतिष्ठित कवि दिनेश तिवारी ‘भोजपुरिया’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा:

“शिक्षक समाज की वह नींव हैं, जिन पर सभ्यता और संस्कृति टिकी हुई है। उनके बिना समाज की प्रगति असंभव है। शिक्षक न केवल ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं, बल्कि नैतिकता और मूल्यों को भी अगली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं।”

उनके इस कथन ने उपस्थित लोगों में शिक्षकों के प्रति सम्मान की भावना को और गहरा किया।

गुरु का स्थान सर्वोच्च: डॉ. अंबरीश विश्वकर्मा

कार्यक्रम के मेजबान डॉ. अंबरीश विश्वकर्मा ने शिक्षक दिवस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा:

“शिक्षक दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि शिक्षक केवल शिक्षक नहीं, बल्कि समाज के निर्माता हैं। उनके बिना समाज की प्रगति और संस्कृति का संरक्षण असंभव है।”

गुरु का सम्मान समाज का कर्तव्य: श्रीमती किरण जायसवाल और कृष्णमुरारी धर द्विवेदी

श्रीमती किरण जायसवाल ने अपने उद्बोधन में गुरु के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा:

“गुरु का स्थान सबसे ऊँचा है। वे हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं और समाज को सही दिशा प्रदान करते हैं।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कृष्णमुरारी धर द्विवेदी ने कहा:

“गुरुजनों का सम्मान करना समाज का परम कर्तव्य है। शिक्षक समाज को जोड़ने और उसे प्रगति के पथ पर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”

समापन: सामूहिक गुरु वंदना

कार्यक्रम का संचालन शिक्षक राजू मद्धेशिया ने किया, जिन्होंने सभी वक्ताओं और उपस्थित लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया। समारोह का समापन सामूहिक गुरु वंदना के साथ हुआ, जिसने शिक्षकों के प्रति सम्मान और श्रद्धा की भावना को और प्रबल किया।

उपस्थित गणमान्य व्यक्ति

इस अवसर पर राम नारायण जायसवाल, रमेश मद्धेशिया, अमित मिश्रा, पवन गुप्ता, धीरज जायसवाल, मनोज सिंह, विवेक विश्वकर्मा, सुभाष मद्धेशिया सहित कई गणमान्य व्यक्ति और स्थानीय निवासी उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में शिक्षकों के योगदान को सराहा और उनके सम्मान में अपने विचार व्यक्त किए।

संस्कार-संगम का उद्देश्य

संस्कार-संगम एक अखिल भारतीय सांस्कृतिक संस्था है, जो भारतीय परंपराओं, मूल्यों और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए कार्यरत है। इस तरह के आयोजन समाज में सांस्कृतिक जागरूकता और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षक दिवस पर आयोजित यह परिचर्चा इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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वेब वार्ता समाचार एजेंसी

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