गोरखपुर, (वेब वार्ता)। गोरक्षपीठ में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 56वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 11वीं पुण्यतिथि पर जारी साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह गुरुवार (11 सितंबर) को संपन्न हो जाएगा। आश्विन कृष्ण चतुर्थी को वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के विराट व्यक्तित्व का स्मरण कर उन्हें शब्दों और भावों की श्रद्धांजलि दी जाएगी। सामाजिक समरसता को आजीवन ध्येय मानने वाले श्रीराम मंदिर आंदोलन के नायक महंत अवेद्यनाथ का स्मरण एक ऐसे संत के रूप में होता है, जिनमें समूचे राष्ट्र के सनातनियों की आस्था थी।
श्री गोरखनाथ मंदिर में ‘सप्त दिवसीय पुण्यतिथि समारोह’ के अंतर्गत आयोजित ‘श्रीमद्भागवत महापुराण कथा ज्ञान-यज्ञ’ का सप्तम दिवस व कथा विश्राम… https://t.co/LUslZg6BMm
— Shri Gorakhnath Mandir (@GorakhnathMndr) September 10, 2025
नाथपंथ और सामाजिक समरसता के प्रतीक
महंत अवेद्यनाथ ने नाथपंथ की लोक कल्याण की परंपरा को धर्म के साथ-साथ राजनीति से भी जोड़ा। उन्होंने पांच बार मानीराम विधानसभा (1962, 1967, 1969, 1974, 1977) और चार बार गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र (1970, 1989, 1991, 1996) का प्रतिनिधित्व किया। श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए हुए आंदोलन को निर्णायक मोड़ देने वाले इस राष्ट्रसंत को युगों-युगों तक याद किया जाएगा।
18 मई 1919 को उत्तराखंड के गढ़वाल जिले के ग्राम कांडी में जन्मे महंत अवेद्यनाथ का बचपन से ही धर्म और अध्यात्म के प्रति गहरा झुकाव था। नाथपंथ के विश्वविख्यात गोरक्षपीठ में महंत दिग्विजयनाथ के सानिध्य में उनके इस झुकाव को विस्तृत आयाम मिला। 8 फरवरी 1942 को उनकी विधिवत दीक्षा हुई और 1969 में महंत दिग्विजयनाथ की चिर समाधि के बाद 29 सितंबर को वे गोरखनाथ मंदिर के महंत व पीठाधीश्वर बने। योग और दर्शन के मर्मज्ञ के रूप में उन्होंने अपने गुरुदेव के लोक कल्याणकारी और सामाजिक समरसता के आदर्शों को और विस्तार दिया। यह सिलसिला 2014 में आश्विन कृष्ण चतुर्थी को उनके चिर समाधिस्थ होने तक अनवरत जारी रहा।
श्रीराम मंदिर आंदोलन में योगदान
अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों का योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। महंत दिग्विजयनाथ ने अपने जीवनकाल में मंदिर आंदोलन में क्रांतिकारी नवसंचार किया, जिसकी कमान बाद में महंत अवेद्यनाथ ने संभाली। 1980 के दशक में उनके नेतृत्व में श्रीराम मंदिर आंदोलन ने समग्र और व्यापक रूप लिया। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति और श्रीराम जन्मभूमि निर्माण उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष के रूप में संतों, राजनीतिज्ञों और आमजन को एकसूत्र में पिरोया। आंदोलन की ज्वाला गांव-गांव तक पहुंची। सुखद संयोग है कि पांच सदी के इंतजार के बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ की देखरेख में हुआ।
सामाजिक समरसता के लिए अभियान
महंत अवेद्यनाथ वास्तविक अर्थों में धर्माचार्य थे, जिन्होंने सामाजिक समरसता को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। उन्होंने हिंदू समाज से छुआछूत और ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने के लिए व्यापक अभियान चलाया। अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बरहपंथ योगी महासभा के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने देशभर के संतों को इस अभियान से जोड़ा।
1981 में दक्षिण भारत के मीनाक्षीपुरम में दलित समाज के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से वे बहुत व्यथित हुए। उत्तर भारत में ऐसी स्थिति न बने, इसके लिए उन्होंने धर्म के साथ राजनीति की राह चुनी। उनका ध्येय हिंदू समाज की कुरीतियों को दूर कर एकजुट करना था। इसके लिए उन्होंने दलित बस्तियों में सहभोज अभियान शुरू किया, जहां सभी लोग जातिगत भेदभाव से परे एक पंगत में भोजन करते थे। काशी में डोमराजा के घर संत समाज के साथ भोजन कर उन्होंने सामाजिक समरसता का देशव्यापी संदेश दिया। राम मंदिर के भूमिपूजन की पहली ईंट भी उन्होंने दलित कामेश्वर चौपाल के हाथों रखवाकर समरसता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
प्रभु श्रीराम और देवी दुर्गा से प्रेरणा
महंत अवेद्यनाथ सामाजिक समरसता को मजबूत करने के लिए प्रभु श्रीराम और देवी दुर्गा के उदाहरणों का सहारा लेते थे। वे लोगों को समझाते थे कि प्रभु श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए, निषादराज को गले लगाया, गिद्धराज जटायु का अंतिम संस्कार अपने हाथों किया और वनवासियों से मित्रता की, जो समरस समाज की स्थापना का प्रतीक था। इसी तरह, वे कहते थे कि देवी दुर्गा की आठ भुजाएं समाज के चारों वर्णों से दो-दो भुजाओं की प्रतीक हैं। यदि समाज के ये चारों वर्ण एकजुट हो जाएं, तो वह देवी दुर्गा की तरह सशक्त होगा और किसी भी शक्तिशाली पर नियंत्रण पा सकेगा, जैसे दुर्गा शेर पर सवारी करती हैं।
राजनीति में अनूठा रिकॉर्ड
महंत अवेद्यनाथ का राजनीतिक जीवन भी प्रेरणादायक रहा। उन्होंने अखिल भारतीय हिंदू महासभा के उपाध्यक्ष व महासचिव के रूप में भी ख्याति अर्जित की। उनकी स्पष्ट सोच और सामाजिक समरसता के प्रति समर्पण ने उन्हें संत समाज में अति सम्माननीय बनाया।
श्रद्धांजलि समारोह
गोरखनाथ मंदिर में चल रहा श्रद्धांजलि सप्ताह समारोह 4 से 11 सितंबर तक आयोजित किया गया। इस दौरान श्रीमद्भागवत कथा, संगोष्ठी और अन्य आयोजन हुए। समापन समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित देशभर के संत-महंत शामिल होंगे। समारोह का लाइव प्रसारण गोरखनाथ मंदिर के फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल पर किया जाएगा।




