कुशीनगर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक बौद्ध स्थल कुशीनगर की जीवनदायिनी और पवित्र नदी हिरण्डयवती, जिसे बौद्ध धर्मावलंबी बौद्धों की गंगा कहते हैं, अब स्वच्छ और निर्मल बनने की ओर अग्रसर है। नगर पालिका कुशीनगर की चेयरपर्सन किरन राकेश जायसवाल के निर्देश पर शनिवार को नदी की सफाई का कार्य शुरू कर दिया गया।
नगर पालिका अध्यक्ष के प्रतिनिधि राकेश कुमार जायसवाल ने बुद्धा घाट और आसपास के क्षेत्रों का निरीक्षण करते हुए सफाई कर्मचारियों को जलकुंभी और गंदगी हटाने के लिए तैनात किया। इस पहल से उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही नदी का जल पुनः साफ़ और स्वच्छ हो जाएगा।
हिरण्डयवती का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
बौद्ध जातक कथाओं और श्रुतियों में हिरण्डयवती नदी को गंगा की तरह ही पवित्र बताया गया है। माना जाता है कि भगवान बुद्ध जब अपने अंतिम समय में कुशीनारा पहुंचे थे, तब उन्होंने इस नदी का जल ग्रहण किया था। उसी शाम उन्होंने नदी किनारे शाल वृक्षों की छाया में विश्राम किया और अगले दिन नदी पार कर अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए।
इसी कारण यह नदी बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए अत्यंत श्रद्धेय है। देश-विदेश से आने वाले तीर्थयात्री और पर्यटक इस नदी के जल को पवित्र मानते हैं और पूर्व में यहां अस्थि-विसर्जन की परंपरा भी रही है।
संरक्षण में उपेक्षा और हालिया प्रयास
संरक्षण के अभाव में वर्षों से यह नदी सिकुड़ती चली गई और जलकुंभी व गंदगी से पट गई। हाल के वर्षों में, नगर पालिका ने बुद्ध वन पार्क, खेल पार्क, उपवन, पाथवे जैसी परियोजनाओं के साथ-साथ नदी संरक्षण और सौंदर्यीकरण के लिए रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट का कार्य शुरू किया है।
नगर पालिका अध्यक्ष ने कहा,
“हिरण्डयवती एक पवित्र नदी है। इसका संरक्षण हमारी प्राथमिकता है। इसे संरक्षित कर न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी बल्कि यहां का प्राकृतिक सौंदर्य भी बढ़ेगा। इससे देश-विदेश के पर्यटक और श्रद्धालु आकर्षित होंगे।”
हिरण्डयवती नदी की सफाई और सौंदर्यीकरण से न केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यह पहल पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगी।