कुशीनगर, ममता तिवारी (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में बड़ी गंडक नदी का जल स्तर एक बार फिर चिंता का विषय बन गया है। नदी के घटते-बढ़ते स्तर ने जवहीं दयाल के मुसहर टोली के लगभग 30 परिवारों को भयभीत कर दिया है। यह परिवार पिछले 20 वर्षों से ए.पी. तटबंध के पुराने बंधे पर रह रहे हैं, लेकिन नदी की लगातार कटान उनके घर और जमीन को निगलने पर आमादा है।
🌊 कटान से बढ़ा खतरा
गांव के लोगों के अनुसार, नदी ने पुराने बंधे के नोज और अप साइड में दोबारा कटान शुरू कर दिया है। फिलहाल डिस्चार्ज 90 हजार से एक लाख क्यूसेक के बीच है, जिससे कटान की गति धीमी है। लेकिन आशंका यह है कि यदि जलस्तर बीते वर्ष की तरह दो लाख क्यूसेक से ऊपर चला गया, तो मुसहर परिवारों के सामने फिर से विस्थापन का संकट खड़ा हो जाएगा।
इसी तरह, ततवा टोला के समीप भी कृषि भूमि में बोई गई फसलें कटान की चपेट में आ रही हैं। नदी का बहाव बांध के करीब पहुंच गया है, जिससे किनारे बसे परिवारों की चिंता बढ़ गई है।
🛑 प्रशासन और विभाग की कार्रवाई
कटान रोकने के लिए विभाग ने लतवा टोला और मुसहर टोली के बीच परक्यूपाइन लगाए हैं, लेकिन इन प्रयासों के बावजूद कटान जारी है। बीते वर्ष, इसी कटान के चलते छह फूस-निर्मित घर नदी में समा गए थे। उस समय प्रशासन ने रातों-रात मुसहर परिवारों को प्राथमिक विद्यालय में शिफ्ट कर दिया था, लेकिन सुबह होते ही सभी परिवार फिर बंधे पर लौट आए थे।
तत्कालीन एसडीएम विकास चंद ने इन परिवारों के स्थायी पुनर्वास के लिए दोमाठ और दुदही विकास खंड के खानगी और बांसगांव में पट्टे की भूमि का आवंटन कराया था, लेकिन मुसहर परिवारों ने बंधे पर ही रहना जारी रखा।
📣 ग्रामीणों की चिंता
ग्रामीणों का कहना है कि यदि कटान नहीं रुका, तो बांध के किनारे बसे गांवों के लोग भूमिहीन हो जाएंगे। कई परिवार पहले ही अपनी कृषि भूमि खो चुके हैं और अब उनके घर भी खतरे में हैं।
🏗️ विभाग का बयान
इस संबंध में एसडीओ दीप रतन सिंह ने बताया,
“मुसहर टोली के पास कटान रोकने के लिए बोल्डर का रिवेटमेंट बनाया जा रहा है। फिलहाल वहां पानी का दबाव कम है। कृषि योग्य भूमि के कटान की जिम्मेदारी विभाग की नहीं है, हमारा कार्य केवल बांध को बचाना है।”
⚠️ निष्कर्ष
बड़ी गंडक नदी की कटान से प्रभावित यह इलाका पिछले कई वर्षों से संकट झेल रहा है। प्रशासन और विभाग की ओर से अस्थायी उपाय किए जाते रहे हैं, लेकिन स्थायी समाधान न होने के कारण मुसहर टोली और आसपास के ग्रामीण हर मानसून में इस भय के साए में जीने को मजबूर हैं।