लखनऊ, (वेब वार्ता)। सितंबर का पहला शनिवार दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस के रूप में मनाया गया। इस वर्ष 6 सितंबर को आयोजित इस दिवस का उद्देश्य गिद्धों के पारिस्थितिक महत्व को उजागर करना और उनके संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना था। गिद्ध, जो प्रकृति के सफाई कर्मचारी के रूप में जाने जाते हैं, पर्यावरण को स्वच्छ रखने और घातक बीमारियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
गिद्ध: प्रकृति के सफाई कर्मचारी
गिद्ध एकमात्र स्थलीय कशेरुकी प्राणी हैं जो लगभग पूरी तरह से मृत पशुओं के शवों को खाते हैं। ये पक्षी न केवल पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं, बल्कि हैजा, रेबीज और प्लेग जैसी घातक बीमारियों को फैलने से रोकने में भी मदद करते हैं। उनके बिना पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा हो सकता है, जिससे जंगली और आवारा जानवरों की आबादी बढ़ने का खतरा होता है।
अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस के बारे में
उद्देश्य: गिद्धों के संरक्षण और उनके पारिस्थितिक महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
शुरुआत: सितंबर 2009 में दक्षिण अफ्रीका और यूनाइटेड किंगडम में शुरू हुआ।
महत्व: यह दिवस गिद्धों के संरक्षण में किए जा रहे कार्यों को दुनिया के सामने लाता है।
भूमिका: गिद्ध मृत पशुओं के शवों को खाकर पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं और बीमारियों को नियंत्रित करते हैं।
यूपी सरकार का योगदान: मंत्री अरुण कुमार सक्सेना
उत्तर प्रदेश के वन्य एवं पर्यावरण मंत्री अरुण कुमार सक्सेना ने गिद्ध जागरूकता दिवस के अवसर पर लोगों से इन पक्षियों के संरक्षण की अपील की। उन्होंने कहा:
“आज गिद्ध जागरूकता दिवस है। गिद्ध प्रकृति के सफाई कर्मचारी हैं। इन पक्षियों को बचाने की जरूरत है, क्योंकि ये हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।”
मंत्री ने गिद्धों की घटती आबादी पर चिंता जताई और बताया कि डाइक्लोफेनाक जैसी दवाओं के उपयोग और आवास नष्ट होने से गिद्धों की प्रजातियां खतरे में हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश में गिद्ध संरक्षण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों, जैसे वulture safe zones और breeding programs, पर भी प्रकाश डाला।
गिद्धों का संकट: भारत में स्थिति
भारत में 1990 के दशक से गिद्धों की आबादी में भारी कमी आई है। गिद्ध जटायु संरक्षण केंद्र जैसे प्रयासों के बावजूद, कई प्रजातियां, जैसे लंबी चोंच वाला गिद्ध (Long-billed Vulture) और सफेद पीठ वाला गिद्ध (White-backed Vulture), विलुप्त होने के कगार पर हैं। प्रमुख कारणों में शामिल हैं:
डाइक्लोफेनाक का उपयोग: पशुओं में दर्द निवारक दवा डाइक्लोफेनाक का उपयोग, जो गिद्धों के लिए घातक है।
आवास विनाश: जंगलों की कटाई और शहरीकरण।
खाद्य संकट: मृत पशुओं की उपलब्धता में कमी।
वैश्विक और स्थानीय प्रयास
दुनियाभर में गिद्ध संरक्षण के लिए कई संगठन, जैसे वुल्चर कंजर्वेशन फाउंडेशन और साउथ अफ्रीकन वुल्चर प्रोग्राम, सक्रिय हैं। भारत में बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) और वन विभाग गिद्धों की प्रजातियों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में गिद्धों के लिए सुरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं, और डाइक्लोफेनाक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है।
जनता से अपील
मंत्री सक्सेना ने लोगों से अपील की कि वे गिद्धों के महत्व को समझें और उनके संरक्षण में योगदान दें। उन्होंने कहा कि स्थानीय समुदायों, स्कूलों और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर जागरूकता फैलानी चाहिए।
“गिद्धों के बिना हमारा पर्यावरण अधूरा है। हमें इनके संरक्षण के लिए एकजुट होकर काम करना होगा।”
भविष्य की दिशा
अंतर्राष्ट्रीय गिद्ध जागरूकता दिवस न केवल गिद्धों के महत्व को उजागर करता है, बल्कि हमें यह भी याद दिलाता है कि पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने के लिए हर प्रजाति महत्वपूर्ण है। सरकार, वैज्ञानिकों और जनता के संयुक्त प्रयासों से ही गिद्धों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।




