Monday, October 20, 2025
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हरदोई की कलौली पुलिया बनी मौत का जाल, टूटी रेलिंग और गहरे गड्ढों से हर समय हादसे की आशंका

हरदोई, लक्ष्मीकान्त पाठक (वेब वार्ता)। उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद में कछौना-गौसगंज मार्ग पर स्थित शारदा नहर (लखनऊ ब्रांच) की कलौली पुलिया वर्षों से जर्जर हालत में है। टूटी रेलिंग, गहरे गड्ढे और मिट्टी के कटाव से यह पुलिया किसी भी दिन बड़े हादसे का कारण बन सकती है। बावजूद इसके सिंचाई विभाग और PWD की घोर लापरवाही अब तक जारी है।

संकरी पुलिया और गहरी नहर का खतनाक संयोजन

यह पुलिया तेज मोड़ और झाड़ियों के बीच स्थित है, जिससे बड़े वाहनों जैसे एंबुलेंस, स्कूल बस, ट्रैक्टर, ट्रक आदि को गुजरने में भारी कठिनाई होती है। रेलिंग पूरी तरह टूट चुकी है, और किनारों की मिट्टी कटकर गहरे गड्ढे बना चुकी है। पुलिया के नीचे डबल नहर बहती है, जिससे किसी भी समय वाहन के फिसलने या गिरने की आशंका बनी रहती है

जनप्रतिनिधि भी दिखा चुके हैं मुख्यमंत्री को आइना

कलौली, नारायण देव, बबुरहा, बालामऊ, कुरसठ सहित दर्जनों गांवों को जोड़ने वाली यह पुलिया हजारों लोगों के दैनिक जीवन का हिस्सा है। स्थानीय नागरिकों ने विधायक रामपाल वर्मा और एमएलसी अशोक अग्रवाल को ज्ञापन देकर समस्या को मुख्यमंत्री और जिलाधिकारी तक पहुंचाया, परंतु केवल चेतावनी पट्ट (Warning Board) लगाकर कार्यवाही की इतिश्री कर दी गई।

पुनर्निर्माण की आवश्यकता — मात्र मरम्मत काफी नहीं

क्षेत्रीय नागरिकों का स्पष्ट कहना है कि यह पुलिया अब किसी मरम्मत से नहीं सुधर सकती, इसे पूरी तरह पुनर्निर्मित किए जाने की आवश्यकता है। पुलिया की चौड़ाई ग्रामीण सड़क की बढ़ती यातायात मांगों के अनुरूप नहीं है और दृश्यता भी झाड़ियों के कारण काफी कम हो गई है।

विभागों की जिम्मेदारी तय — फिर भी उदासीनता

यह पुलिया सिंचाई विभाग की है जबकि सड़क का रख-रखाव लोक निर्माण विभाग (PWD) बिलग्राम खंड के अधीन आता है। जब इस मुद्दे पर अवर अभियंता से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि मामला संज्ञान में है और शीघ्र समाधान होगा। लेकिन अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है।

क्या किसी बड़ी दुर्घटना के बाद जागेगा प्रशासन?

स्थानीय जनता का कहना है कि जब तक कोई बड़ी जनहानि नहीं होती, तब तक प्रशासन की आंखें नहीं खुलतीं। क्या जिम्मेदार अधिकारी किसी त्रासदी का इंतजार कर रहे हैं?

हरदोई की कलौली पुलिया सिर्फ एक जर्जर संरचना नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता का जीवंत प्रतीक बन गई है। यदि शीघ्र और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह पुलिया किसी दिन बहुमूल्य जनजीवन को निगल सकती है। अब यह देखना महत्वपूर्ण है कि सरकार और विभाग कब अपनी नींद से जागते हैं।

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