सोनीपत में न्याय युद्ध मंच के संयोजक देवेन्द्र गौतम ने मेडिकल बोर्ड की निष्पक्षता पर उठाए गंभीर सवाल, पीड़ित परिवार अब भी न्याय की राह देख रहा
सोनीपत, राजेश आहूजा (वेब वार्ता)। सोनीपत के नागरिक अस्पताल और PGIMS रोहतक की कथित लापरवाही के कारण जान गंवाने वाली मासूम प्रासिता के मामले ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। न्याय युद्ध मंच के संयोजक देवेन्द्र गौतम ने प्रेस वार्ता में आरोप लगाया कि इस मामले में गठित जिला मेडिकल बोर्ड में निष्पक्षता की भारी कमी है, क्योंकि इसकी अगुवाई वही मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी (CMO) कर रही हैं, जिनके विभाग पर लापरवाही का सीधा आरोप है।
गौतम ने कहा कि पीड़ित परिवार रक्षाबंधन के अवसर पर अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश में था और उन्होंने फोन व व्हाट्सऐप के माध्यम से बोर्ड को अपनी अनुपस्थिति की सूचना दे दी थी, लेकिन बोर्ड की कार्यवाही पर पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल हैं।
गंभीर आरोप और निष्पक्षता पर संदेह
देवेन्द्र गौतम ने CMO पर निशाना साधते हुए कहा –
“क्या दूध की रखवाली बिल्ली करेगी? जिनके अस्पताल में मासूम की जान गई, क्या वे खुद अपने ऊपर लगे आरोपों की निष्पक्ष जांच कर पाएंगे?”
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मासूम की मौत के बाद CMO का मीडिया में दिया गया बयान अमानवीय और संवेदनहीन था, और आज तक न तो खेद व्यक्त किया गया और न ही परिवार से माफी मांगी गई।
स्थानीय विरोध और समर्थन
स्थानीय सामाजिक संगठनों, महिला आयोग प्रतिनिधियों और कई वकीलों ने इस जांच में निष्पक्षता की मांग का समर्थन किया है। कई नागरिक संगठनों ने सोशल मीडिया पर #JusticeForPrasita अभियान शुरू कर दिया है, जो ट्विटर (X) और फेसबुक पर ट्रेंड कर रहा है।
कानूनी प्रक्रिया और अगला कदम
पीड़ित परिवार ने वकीलों के माध्यम से राज्य स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन को लिखित शिकायत भेजी है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यदि जांच में टकराव की स्थिति है, तो जिला स्तर से हटाकर राज्य स्तर पर मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए।
गौतम ने सुझाव दिया कि बोर्ड का नेतृत्व वरिष्ठ डॉक्टर एस.के. धत्तरवाल या किसी अन्य जिले के CMO को सौंपा जाए, ताकि जांच पर किसी का दबाव न हो।
सरकार और प्रशासन से मांगें
मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को तत्काल जांच से हटाया जाए।
मेडिकल बोर्ड में सोनीपत नागरिक अस्पताल से जुड़े किसी भी डॉक्टर को शामिल न किया जाए।
निष्पक्ष जांच के लिए दूसरे जिले के वरिष्ठ चिकित्सकों को जिम्मेदारी दी जाए।
न्याय की लड़ाई जारी
देवेन्द्र गौतम का कहना है कि यह सिर्फ एक मासूम की मौत का मामला नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की असफलता का उदाहरण है।
“अगर आज प्रासिता को न्याय नहीं मिला, तो भविष्य में न जाने कितनी मासूम जानें ऐसे ही व्यवस्था की बलि चढ़ जाएंगी।”