Saturday, October 4, 2025
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मीरवाइज उमर फारूक का केंद्र से आग्रह — ‘दिल की दूरी’ बातचीत से मिटे, बल से नहीं

श्रीनगर, (वेब वार्ता)। हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से नई दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बीच ‘दिल की दूरी’ को संवाद और सहमति से मिटाने की अपील की। उन्होंने कहा कि हिंसा, टकराव या बल प्रयोग से समस्याओं का समाधान नहीं निकल सकता।

मीरवाइज ने यह बयान श्रीनगर स्थित ऐतिहासिक जामिया मस्जिद में जुमे की नमाज़ के दौरान एकत्र हुए श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए दिया।


🗣️ ‘दिलों को जोड़ने का एकमात्र रास्ता बातचीत’

मीरवाइज उमर फारूक ने कहा:

“नई दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के बीच सिर्फ ज़मीनी नहीं, बल्कि दिलों की दूरी है। और इस दूरी को केवल संवाद, समझदारी और न्याय के रास्ते से ही मिटाया जा सकता है।”

उन्होंने कहा कि बल से कभी किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हुआ, और कश्मीर का मसला भी इससे अलग नहीं है।


🧵 संसद में पहलगाम हमले के बाद की बहस पर प्रतिक्रिया

मीरवाइज ने हाल ही में संसद में हुई भारत-पाकिस्तान युद्ध पर बहस का जिक्र करते हुए कहा:

“ज्यादातर सांसदों ने युद्ध के उद्देश्य, उपलब्धियों और असफलताओं पर चर्चा की, लेकिन बहुत कम लोगों ने इसकी मानवीय कीमत और जम्मू-कश्मीर पर प्रभाव को लेकर कोई बात की।”

उन्होंने कहा कि इससे भारत के राजनीतिक नेतृत्व की मनोदशा और प्राथमिकताओं का भी पता चलता है।


🧑‍⚖️ कश्मीर के सांसदों की एकजुटता की सराहना

मीरवाइज ने संसद में जम्मू-कश्मीर से निर्वाचित सांसदों — मियां अल्ताफ, इंजीनियर राशिद और आगा रूहुल्लाह — के एकजुट रुख की तारीफ़ की। उन्होंने कहा कि इन तीनों ने,

कश्मीरियों के अधिकारों के हनन, उनकी भावनाओं और पीड़ा को संसद में पूरी संजीदगी के साथ रखा।”

उन्होंने कहा कि यह देखकर राहत मिली कि कश्मीर की असलियत और दर्द को संसद में आवाज़ मिली है।


🇮🇳 ‘हमेशा संवाद की वकालत की है’ — मीरवाइज

मीरवाइज ने कहा कि उन्होंने हमेशा गैर-हिंसक तरीकों, संविधान के भीतर समाधान, और भारत-पाकिस्तान के बीच वार्ता की वकालत की है। उन्होंने फिर दोहराया कि,

“कश्मीर कोई सुरक्षा या प्रशासनिक मुद्दा नहीं है, यह राजनीतिक और मानवीय मुद्दा है, जिसे संवेदनशीलता और सच्चे संवाद से ही सुलझाया जा सकता है।”


🔁 राजनीतिक हल और स्थायी शांति की मांग

हुर्रियत नेता ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह कश्मीर को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की दृष्टि से नहीं, बल्कि ‘राष्ट्रीय एकता और मानव अधिकारों’ की दृष्टि से देखे। उन्होंने कहा कि,

“स्थायी शांति तभी संभव है, जब यहां के लोगों को सुनवाई, गरिमा और अधिकारों के साथ जोड़ा जाए।”


🧾 निष्कर्ष

मीरवाइज उमर फारूक के इस बयान को जम्मू-कश्मीर की मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप माना जा सकता है। उन्होंने जहां शांति और संवाद की बात की, वहीं संसद में कश्मीरी नेताओं की आवाज़ की भी सराहना की। आने वाले समय में केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया से तय होगा कि यह संवाद की शुरुआत बनेगा या एक और उपेक्षित प्रयास।

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