श्रीनगर, (वेब वार्ता)। जम्मू-कश्मीर के हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिन्ह को तोड़े जाने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मामले में अब तक 56 लोगों को हिरासत में लिया है, लेकिन अभी तक कोई औपचारिक गिरफ्तारी नहीं हुई है। सीसीटीवी फुटेज और अन्य सबूतों के आधार पर जांच तेज कर दी गई है, और दरगाह के आसपास सुरक्षा व्यवस्था को कड़ा कर दिया गया है। इस घटना ने राजनीतिक विवाद को भी जन्म दिया है, जिसमें सत्तारूढ़ और विपक्षी दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
घटना का विवरण
5 सितंबर 2025 को हजरतबल दरगाह में जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड द्वारा स्थापित एक नवीकरण पट्टिका पर अंकित अशोक चिन्ह को शुक्रवार की नमाज के बाद अज्ञात लोगों ने तोड़ दिया। यह पट्टिका दरगाह के हालिया नवीकरण कार्य के उद्घाटन के लिए लगाई गई थी, जिसे वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी ने उद्घाटित किया था। दरगाह में पैगंबर मुहम्मद की पवित्र अवशेष (मोए-मुबारक) होने के कारण यह स्थान मुस्लिम समुदाय के लिए अत्यंत पवित्र है। कुछ भक्तों ने अशोक चिन्ह को इस्लामी एकेश्वरवाद (तौहीद) के सिद्धांत के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध किया, जिसके बाद यह तोड़फोड़ हुई।
पुलिस कार्रवाई और जांच
श्रीनगर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है और सीसीटीवी फुटेज व मोबाइल वीडियो की जांच के बाद 56 लोगों को हिरासत में लिया है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा:
“अभी तक कोई औपचारिक गिरफ्तारी नहीं हुई है, लेकिन हिरासत में लिए गए लोगों से पूछताछ जारी है। हम मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं।”
पुलिस ने दरगाह के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी है ताकि कोई और अप्रिय घटना न हो। महिला संदिग्धों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी, लेकिन नाबालिगों को छूट दी गई है।
राजनीतिक विवाद
इस घटना ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और बीजेपी नेता दरख्शां अंद्राबी ने इस तोड़फोड़ को आतंकी कृत्य करार देते हुए पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने कहा:
“यह राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है। यह सुनियोजित साजिश थी, और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”
वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), पीडीपी, और सीपीआई(एम) ने अशोक चिन्ह को धार्मिक स्थल पर लगाने को उत्तेजक और इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ बताया। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने वक्फ बोर्ड से माफी मांगने की मांग की और कहा:
“राष्ट्रीय प्रतीक सरकारी कार्यों के लिए है, न कि धार्मिक स्थलों के लिए। यह गलती थी।”
पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने इसे ब्लासफेमी करार देते हुए कहा:
“हजरतबल पैगंबर से जुड़ा है। इस तरह का कोई कृत्य मुसलमानों के लिए स्वीकार्य नहीं।”
बीजेपी ने विपक्ष पर राष्ट्र-विरोधी तत्वों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील शर्मा ने कहा:
“यह राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान है और भारत की संप्रभुता पर हमला है।”
सामाजिक और धार्मिक प्रभाव
इस घटना ने कश्मीर में धार्मिक संवेदनशीलता और राष्ट्रीय प्रतीकों के उपयोग को लेकर बहस छेड़ दी है। कुछ लोगों का मानना है कि धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक लगाना इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ था, जबकि अन्य इसे राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
आगे की कार्रवाई
पुलिस ने जांच को तेज कर दिया है और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर दोषियों की पहचान की जा रही है। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए हैं। वक्फ बोर्ड और प्रशासन से इस मामले में संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है ताकि धार्मिक भावनाएं आहत न हों और राष्ट्रीय प्रतीक का सम्मान भी बना रहे।