Wednesday, March 12, 2025
Homeराज्यमणिपुर : फ़ेल हुई 'डबल इंजन 'की सरकार

मणिपुर : फ़ेल हुई ‘डबल इंजन ‘की सरकार

-निर्मल रानी-

08 फ़रवरी को जब दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे और भाजपा के साथ ही देश का मीडिया भी भाजपा की जीत के क़सीदे बांचने में लगा था। देश को यह बताया जा रहा था कि दिल्ली से ‘आप’ दा जा चुकी है। ठीक उसी समय भाजपा हाईकमान द्वारा निर्देशित भाजपा की मणिपुर की सबसे ‘आपदा ग्रस्त’ डबल इंजन सरकार के मुख्यमंत्री नोंगथोम्बम बीरेन सिंह को त्यागपत्र देने हेतु निर्देशित किया जा चुका था। जिसे दिल्ली जीत के जश्न से ठीक अगले दिन यानी 9 फ़रवरी को अमल में लाया गया। पिछले छह महीनों से मैतेई, कुकी और नागा विधायक एक साथ मिलकर मुख्यमंत्री बीरेन को पद से हटाने के लिए केंद्रीय नेताओं से बात कर रहे थे। ख़बरों के अनुसार गत 3 फ़रवरी को ही मणिपुर के 33 विधायकों ने, जिनमें 19 विधायक भाजपा के भी बताये जा रहे हैं, दिल्ली पहुंचकर प्रधानमंत्री व गृह मंत्री से मिलकर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की जानकारी दे दी थी।

बल्कि यह भी बता दिया था कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्तव आने की स्थिति में भाजपा विधायक भी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। इसीलिये भाजपा नेतृत्व को भारतीय राजनीति के इतिहास के सबसे अकुशल, असफल व अकर्मण्य व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। हाँ मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के त्याग पात्र के बावजूद यह सवाल हमेशा बना रहेगा कि इतनी व्यापक व दीर्घकालिक अनियंत्रित हिंसा होने के बावजूद आख़िर भाजपा नेतृत्व ने किन परिस्थितियों में उन्हें मुख्यमंत्री पद से पहले क्यों नहीं हटाया? इतना ही नहीं बल्कि बीरेन सिंह पर जातीय हिंसा के दौरान पक्षपात करने का भी आरोप है। बीरेन सिंह स्वयं मैतेई समुदाय से आते हैं। कुकी जनजाति के एक व्यक्ति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर यह आरोप लगाया गया था कि मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने राज्य में हिंसा भड़काई है। याचिकाकर्ता ने इससे सम्बंधित एक ऑडियो टेप भी अदालत में सबूत के तौर पर जमा कराया है। प्रयोगशाला ‘ट्रुथ लैब्स’ ने इस बात की पुष्टि भी की है कि इस ऑडियो टेप में 93 प्रतिशत आवाज़ बीरेन सिंह की आवाज़ से मेल खाती है। गोया बीरेन सिंह ‘राजधर्म का पालन’ न करने के भी खुले दोषी हैं।

इतिहास इस बात का साक्षी रहेगा कि बावजूद इसके कि देश के और भी कई राज्य समय समय पर किसी न किसी मुहिम या आंदोलन वश हिंसा, अशांति व अव्यवस्था के शिकार रहे हैं। परन्तु भाजपा शासित इस राज्य में 3 मई 2023 से मैतेयी व कुकी समुदायों के बीच छिड़े जातीय हिंसक संघर्ष में जिस स्तर की हिंसा व अशांति देखनी पड़ी उसकी दूसरी मिसाल देश में कहीं भी देखने को नहीं मिलती। हिंसा, आगज़नी, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार यहाँ तक कि हिंसक भीड़ द्वारा युवतियों की नग्न परेड कराने जैसी शर्मनाक घटनाएं घटीं। मंत्रियों, विधायकों व अन्य नेताओं के घरों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस थाने आग की भेंट चढ़े, यहाँ तक कि शस्त्रागार के हथियार तक उपद्रवी छीन ले गये। सैकड़ों लोग इस संघर्ष में मारे गये जबकि हज़ारों लोग विस्थापित भी हुये। परन्तु मणिपुर का ‘डबल इंजन’ मूक दर्शक बना रहा। क़ानून व्यवस्था की यह स्थिति राज्य में उस समय पैदा हुई थी जबकि मणिपुर की 60 सदस्यीय विधानसभा में एन डी ए के पास 52 सीटें हैं जिसमें अकेली भाजपा के पास 37 सीटें हैं। राज्य सरकार के लिये इससे बेहतर बहुमत और क्या हो सकता था?

बहरहाल मई 2023 से लेकर अभी तक जारी हिंसा के बीच लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गाँधी जहां तीन बार मणिपुर का दौरा कर हिंसा पीड़ितों के बीच जाकर वहां के लोगों से मिलकर हालात का जायज़ा ले चुके हैं वहीँ प्रधानमंत्री ने अभी तक एक बार भी हिंसाग्रस्त मणिपुर का दौरा करना मुनासिब नहीं समझा। हद तो यह है कि राहुल गाँधी व विपक्ष के तमाम प्रयासों के बावजूद सदन में मणिपुर पर चर्चा को भी टालने की कोशिशें हुईं। सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा मणिपुर की शर्मनाक घटनाओं को कांग्रेस शासित राज्यों से जोड़कर मणिपुर घटनाओं पर लीपापोती करने की कोशिश की गयी। निःसंदेह राहुल गाँधी देश के अकेले ऐसे नेता हैं जो लगातार मणिपुर हिंसा के विषय को उठाते रहे हैं। और भाजपा पर यह दबाव इतना बढ़ा कि मणिपुर विधानसभा में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव आने से पहले ही पार्टी ने आख़िरकार उनसे त्याग पत्र ले ही लिया।

बीरेन सिंह के त्यागपत्र के बाद मणिपुर में भाजपा के लिये राजनैतिक संकट खड़ा होना तो निश्चित है ही साथ ही अब यह भी प्रमाणित हो चुका है कि बीरेन सिंह पूरी तरह से मणिपुर हिंसा को नियंत्रित कर पाने में असफल रहे हैं। अन्यथा क्या कारण था कि 3 मई 2023 से लेकर अब तक हिंसा पर पूर्ण नियंत्रण हासिल नहीं किया जा सका? इसी दीर्घकालिक हिंसा के कारण भाजपा के ही अधिकांश विधायक बीरेन नेतृत्व के विरुद्ध होते जा रहे थे। और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की तैयारी भाजपा विधायकों द्वारा ही की जा रही थी। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना थी कि कहीं मणिपुर बीजेपी के हाथ से निकल न जाये। क्योंकि राज्य में हिंसा की भेंट चढ़े लंबा समय बीत चुका है और समाधान के नाम पर कुछ भी सामने नज़र नहीं आ रहा। ऐसे में प्रदेश बीजेपी के अंदर ही काफ़ी मतभेद शुरू हो गए थे.”बीजेपी के लोग ही मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहे थे। आगामी 10 फ़रवरी से विधानसभा सत्र शुरू होते ही मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी। इसीलिये भाजपा नेतृत्व द्वारा दिल्ली चुनाव परिणाम के जश्न के बीच ही बीरेन सिंह से त्यागपत्र लेने का फ़ैसला किया गया।

देखना होगा कि बंगाल सहित अन्य ग़ैर भाजपा शासित राज्यों को ‘जंगल राज’ व ‘आपदा ग्रस्त’ सरकार बताने वाली भाजपा, मणिपुर में महा ‘आपदा’ के रूप में विराजमान रहे मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने के बाद जातीय हिंसा में सुलगते मणिपुर के लोगों को भयमुक्त करने व उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाने के लिये क्या क़दम उठती है। और देश की इस बात पर भी नज़र रहेगी कि मणिपुर में ‘डबल इंजन ‘की सरकार के बुरी तरह से फ़ेल होने का प्रभाव भविष्य में पूर्वोत्तर की भाजपा की राजनीति पर क्या पड़ेगा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

हमारे बारें में

वेब वार्ता समाचार एजेंसी

संपादक: सईद अहमद

पता: 111, First Floor, Pratap Bhawan, BSZ Marg, ITO, New Delhi-110096

फोन नंबर: 8587018587

ईमेल: webvarta@gmail.com

सबसे लोकप्रिय

Recent Comments

Webvarta

FREE
VIEW