इंदौर (मध्यप्रदेश), 21 मई (वेब वार्ता) इंदौर के कुटुम्ब न्यायालय ने अहम फैसले में 55 वर्षीय महिला को आदेश दिया है कि वह अपनी 78 साल की मां को हर महीने गुजारा भत्ते के तौर पर तीन हजार रुपये अदा करे।
विधवा महिला ने अपनी इकलौती संतान के खिलाफ कुटुम्ब न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए आरोप लगाया था कि उसकी विवाहित बेटी ने उसकी जमा-पूंजी हड़पने के बाद उसे कोविड-19 की तालाबंदी के दौरान प्रताड़ित करके घर से बाहर निकाल दिया था।
अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश माया विश्वलाल ने 78 वर्षीय महिला की याचिका मंजूर करते हुए 17 मई को फैसला सुनाया। कुटुम्ब न्यायालय ने फैसले में कहा, ‘‘प्रार्थी (बुजुर्ग महिला) की ओर से पेश साक्ष्य के आधार पर प्रमाणित है कि प्रतिप्रार्थी (बुजुर्ग महिला की बेटी) अपने मकान में स्थित दुकान में अपने पुत्र के साथ व्यवसाय करती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रतिप्रार्थी इस दुकान के जरिये व्यवसाय करके आमदनी अर्जित करती है और अपनी माता का भरण-पोषण करने में सक्षम है। बुजुर्ग महिला ने कुटुम्ब न्यायालय को बताया कि उसकी बेटी घर में साड़ियों की दुकान चलाती है और हर महीने 20,000 रुपये से 22,000 रुपये तक कमा लेती है। बुजुर्ग महिला के पति राज्य सड़क परिवहन निगम में चालक के तौर पर पदस्थ थे और उनका 2001 में निधन हो गया था। महिला के मुताबिक उनके पति के निधन के बाद उनकी विवाहित बेटी ने उन्हें बहला-फुसला कर उनका पुश्तैनी मकान बिकवा दिया और उन्हें अपने परिवार के साथ रहने के लिए बुला लिया था।
बुजुर्ग महिला ने याचिका में आरोप लगाया कि उनकी बेटी ने उनके दिवंगत पति की भविष्य निधि की राशि और पुश्तैनी मकान की बिक्री से मिली रकम बैंक खाते से यह झांसा देते हुए धीरे-धीरे निकलवा ली कि वह उन्हें अपने घर में रखकर उनकी पूरी देखभाल करेगी।
बुजुर्ग महिला का आरोप है कि उनकी जमा-पूंजी हासिल करने के बाद उनकी बेटी ने उन्हें प्रताड़ित करना शुरू कर दिया और बिना किसी उचित कारण के मार्च 2020 में घर से उस वक्त निकाल दिया, जब कोविड-19 के प्रकोप के कारण सरकार के आदेश पर तालाबंदी की गई थी।
याचिकाकर्ता की अधिवक्ता शैल राजपूत ने बताया, ‘‘हमने कुटुम्ब न्यायालय के सामने मुख्य तौर पर यह तर्क रखा कि जब कोई महिला अपने माता-पिता की संपत्ति पर बराबर के अधिकार का दावा कर सकती है तो यह उस महिला का कर्तव्य भी है कि वह अपने बुजुर्ग माता-पिता की पूरी देखभाल करे।