भिंड, (वेब वार्ता)। श्रावण मास की पावन बेला में भिंड के ऐतिहासिक बोरेश्वर धाम से कैलाश मानसरोवर मुक्ति अभियान का शंखनाद हुआ। यह आयोजन न केवल धर्मिक भावनाओं का संगम रहा, बल्कि इसमें राष्ट्र चेतना, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और सनातन अस्मिता की अद्भुत गूंज सुनाई दी।
कार्यक्रम के दौरान सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भगवान भोलेनाथ के समक्ष शपथ ली कि वे कैलाश मानसरोवर को चीन के कब्जे से मुक्त कराने हेतु हर संभव प्रयास करेंगे। इस संकल्प ने बोरेश्वर धाम को “हर हर महादेव”, “जय कैलाश”, “जय भारत”, और “जय तिब्बत” के नारों से गुंजायमान कर दिया।
📜 श्रावण संकल्प में शिवभक्ति और राष्ट्रीय गौरव का संगम
अभियान के संयोजक अर्पित मुदगल ने श्रद्धालुओं को कैलाश मुक्ति हेतु संकल्प दिलाया। सभी ने हाथ जोड़कर एक स्वर में घोषणा की कि वे भगवान शिव के दिव्य धाम की मुक्ति के लिए तन-मन-धन से योगदान देंगे। अर्पित मुदगल ने कहा:
“मैं पवित्र श्रावण मास में भगवान शंकर का ध्यान करते हुए यह संकल्प लेता हूँ कि भगवान शिव के निवास स्थान कैलाश मानसरोवर को चीन के अधिपत्य से मुक्त कराने हेतु यथासक्ति प्रयास करूँगा। अतः इस दिशा में कृत्य जाने वाले सभी प्रयासों में हर संभव सहयोग करूँगा। भगवान शंकर मेरे इस संकल्प को पूर्ण करने की शक्ति प्रदान करें।”
“कैलाश केवल पर्वत नहीं, यह सनातन चेतना का केंद्र है। इसकी मुक्ति राष्ट्र की आत्मा की मुक्ति है।”
🧘♂️ ब्राह्मण समाज का एकजुट धर्म-संकल्प
इस ऐतिहासिक अवसर पर ब्राह्मण महासभा एवं सवर्ण आर्मी सहित विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
बाबा भगवानदास सेंथिया, सतीश जोशी, ओमप्रकाश पुरहेत, तथा अन्य नेताओं ने कहा कि ब्राह्मण समाज न केवल शास्त्रों का ज्ञाता है, बल्कि वह राष्ट्र की आत्मा का भी रक्षक है।
“संघर्ष, सेवा और संगठन से कैलाश की मुक्ति तक यह प्रयास जारी रहेगा।” – सतीश जोशी
📖 शिवमहापुराण कथा में आचार्य परंपरा का सम्मान
बोरेश्वर धाम के सत्संग प्रांगण में आयोजित शिवमहापुराण कथा के दौरान विद्वानों का सामूहिक सम्मान किया गया। प्रमुख आचार्यगणों में शामिल थे:
आचार्य प्रशांत तिवारी
पं. कुलदीप शास्त्री
पं. दिनेश शास्त्री
पं. रामकुमार शास्त्री
पं. मनीष पाराशर शास्त्री
पं. बृजनारायण भारद्वाज आदि।
सभी विद्वानों को शॉल, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उनके योगदान हेतु सम्मानित किया गया।
✊ “यह आंदोलन नहीं, महायज्ञ है” – ब्राह्मण महासभा
कार्यक्रम के समापन पर वक्ताओं ने कहा कि यह अभियान अब केवल एक मांग नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, धर्म और राष्ट्रीय अस्मिता की पुनर्स्थापना का महायज्ञ है।
“हमारा कैलाश हमें वापस चाहिए!”
“कैलाश मुक्ति नहीं, तो चैन नहीं!”
“कैलाश धर्म का है, भारत का है!”