मध्य प्रदेश के बुधनी से मानवता को झकझोर देने वाली खबर सामने आई है, रेलवे लाइन निर्माण कार्य के दौरान हुई दुर्घटना में डिंडोरी जिले के 25 वर्षीय मजदूर अमित यादव की मौत के बाद बुधनी सिविल अस्पताल में शव पैकिंग के नाम पर परिजनों से 600 रुपये वसूले गए।
जानकारी के अनुसार, मृतक अपनी पत्नी के साथ रेलवे लाइन के पास मजदूरी कर रहा था, तभी ट्रेन की चपेट में आने से उसकी मौत हो गई। हादसे के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए बुधनी सिविल अस्पताल लाया गया, जहां परिजनों का आरोप है कि पोस्टमार्टम के दौरान शव पैकिंग के नाम पर सेवानिवृत्त पोस्टमार्टम सहायक ने 600 रुपये लिए। जब इस संबंध में उनसे पूछा गया तो उन्होंने सफाई दी कि शव को लंबी दूरी, यानी डिंडोरी तक भेजा जाना था, इसलिए अच्छी पैकिंग और सुगंधित स्प्रे के लिए पैसे लिए गए।
सवाल उठता है कि जब अस्पताल शासकीय है, तो शव पैकिंग जैसी प्रक्रिया के लिए परिजनों से पैसे क्यों वसूले गए? स्वास्थ्य विभाग के दिशा-निर्देश स्पष्ट कहते हैं कि सरकारी अस्पतालों में पोस्टमार्टम निशुल्क होता है। शव पैकिंग करके उसे सौंपने की पूरी जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन की होती है। ऐसे में किसी कर्मचारी या सेवानिवृत्त व्यक्ति द्वारा पैसे लेना न केवल नियमों का उल्लंघन है बल्कि प्रशासन की संवेदनहीनता को भी उजागर करता है।
वहीं, दूसरी ओर हादसे के वक्त मृतक जिस रेलवे निर्माण कार्य में लगा था, उसमें सुरक्षा और बीमा की जिम्मेदारी ठेकेदार की मानी जाती है। ऐसे मामलों में ठेकेदार को परिवार को आर्थिक सहायता और बीमा क्लेम की प्रक्रिया कराना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि गरीब मजदूर की मौत के बाद अस्पताल में शव पैकिंग के नाम पर वसूली यह बड़ा सवाल छोड़ जाती है क्या अब गरीब की मौत पर भी सरकारी सिस्टम का रेट कार्ड तय हो गया है।