नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। छत्तीसगढ़ का कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान अपनी अनूठी जैव विविधता के साथ भारत का नया यूनेस्को धरोहर दावेदार बन गया है और इस उद्यान को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल किया गया है।
छत्तीसगढ़ के पर्यटन के लिए यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह सफर आसान नहीं था, लेकिन कांगेर घाटी की खूबसूरती और ऐतिहासिक महत्त्व ने इसे इस मुकाम तक पहुंचाया। दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस अद्भुत स्थल को वैश्विक पहचान दिलाने की योजना बनाई। विशेषज्ञों ने इसकी जैव विविधता, पुरातात्विक धरोहर और अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का गहराई से अध्ययन किया और फिर इसका नाम यूनेस्को की अस्थायी सूची में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा गया।
यह पहली बार है जब छत्तीसगढ़ का कोई स्थल इस प्रतिष्ठित सूची में शामिल हुआ है और आने वाले वर्षों में इसे स्थायी विश्व धरोहर का दर्जा भी मिल सकता है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा, “यह सफलता हमारी कठोर मेहनत और प्रतिबद्धता का परिणाम है। कांगेर घाटी का यूनेस्को टेंटेटिव लिस्ट में शामिल होना राज्य के गौरव का विषय है, जिससे पर्यटन एवं रोजगार में नई संभावनाएं खुलेंगी। हम भविष्य में भी अपनी धरोहरों के संरक्षण के लिए मिलकर प्रयास करते रहेंगे।”
कांगेर घाटी सिर्फ जंगल नहीं है, यह एक जादुई दुनिया है। यहां 15 से ज्यादा रहस्यमयी गुफाएं हैं, जैसे कोटमसर, कैलाश और दंडक गुफाएं, जो किसी रहस्यलोक से कम नहीं लगतीं। यहां 15 से ज्यादा चूना पत्थर की गुफाएं हैं—कोटमसर, कैलाश, दंडक—जो न सिर्फ भूवैज्ञानिक चमत्कार हैं, बल्कि पुरातात्विक कहानियां भी समेटे हुए हैं। इस उद्यान में उदबिलाव, माउस डियर, जायंट गिलहरी, लेथिस सॉफ्टशेल कछुआ और जंगली भेड़िया जैसे दुर्लभ प्राणी बसते हैं। वहीं 200 से ज्यादा पक्षी प्रजातियों का नृत्य और धरती पर 900 से अधिक वनस्पतियों का रंग-बिरंगा कालीन इस घाटी की शोभा बढ़ाते हैं। कुल मिलाकर, यह जंगल किसी परीकथा की दुनिया जैसा लगता है।
यूनेस्को की टेंटेटिव लिस्ट एक खास सूची होती है, जिसमें दुनिया के वो स्थान शामिल किए जाते हैं, जिन्हें भविष्य में विश्व धरोहर घोषित किया जा सकता है। यह पहला और सबसे अहम कदम होता है। कांगेर घाटी ने भी यह पहला पड़ाव पार कर लिया है। आगे चलकर अगर यह स्थायी सूची में शामिल हो जाती है, तो छत्तीसगढ़ का यह हरा-भरा जंगल पूरे विश्व में अपनी खास पहचान बना लेगा।
इस उपलब्धि से सिर्फ जंगल को नहीं, बल्कि आसपास के गांवों को भी फायदा होगा। यहां के धुर्वा और गोंड जनजातियों के लिए यह जंगल सिर्फ एक जंगल नहीं, बल्कि उनकी संस्कृति और जीवन का हिस्सा है। अब जब दुनिया के लोग कांगेर घाटी को देखने आएंगे, तो इन गांवों को भी पहचान मिलेगी। साथ ही, पर्यटन बढ़ने से लोगों के लिए नए रोजगार के अवसर भी खुलेंगे।