ग्वालियर, मुकेश शर्मा (वेब वार्ता)। श्रावण मास की पवित्र बेला में भारत तिब्बत सहयोग मंच – युवा विभाग ने “कैलाश मुक्ति संकल्प अभियान” का राष्ट्रव्यापी आरंभ किया है। यह अभियान न केवल धार्मिक आस्था की रक्षा का संकल्प है, बल्कि चीन के दमनकारी नियंत्रण से कैलाश मानसरोवर जैसे पवित्र स्थल को मुक्त कराने की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहल है।
अभियान की शुरुआत
नई दिल्ली स्थित मुख्यालय से राष्ट्रीय संगठन महामंत्री पंकज गोयल ने श्रावण संकल्प पत्र का विमोचन कर ‘गूगल डिजिटल हस्ताक्षर अभियान’ और ‘ऑनलाइन श्रावण संकल्प सर्टिफिकेट’ लॉन्च कर अभियान की विधिवत शुरुआत की। यह अभियान 16 जुलाई से 16 अगस्त 2025 तक विशेष श्रावण कार्यक्रम के तहत देशभर में आयोजित किया जा रहा है।
बोरेश्वर महादेव से जागरण का संदेश
मध्यप्रदेश के अटेर में स्थित प्राचीन बोरेश्वर महादेव धाम में शिव महापुराण कथा के माध्यम से अभियान की चेतना को धार्मिक श्रद्धा से जोड़ा गया। वहां कथावाचक श्री प्रशांत तिवारी ने कहा,
“कैलाश कोई भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि संपूर्ण सनातन संस्कृति की आत्मा है।”
“चुप रहना, शिव का अपमान है”
युवा विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्पित मुदगल ने इस अभियान को ‘धर्मयुद्ध’ करार देते हुए कहा,
“कैलाश यात्रा परमिट की नहीं – परमात्मा से मिलने की यात्रा है। कैलाश के लिए चुप रहना, शिव के अपमान में भागी होना है।”
उन्होंने कहा कि चीन द्वारा कैलाश पर लगाए गए धार्मिक प्रतिबंध, आर्थिक शोषण, डिजिटल सेंसरशिप और सीमित प्रवेश – सभी भारत के सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन हैं।
चीन के नियंत्रण पर सवाल
1959 में तिब्बत पर कब्जा करने के बाद चीन ने कैलाश मानसरोवर को भी राजनीतिक नियंत्रण में ले लिया। भारतीय श्रद्धालुओं को वहां जाने के लिए तिब्बत ट्रैवल परमिट की आवश्यकता होती है। यात्रा पर धार्मिक क्रियाओं जैसे रुद्राभिषेक, मंत्रोच्चार और जल अर्पण पर पाबंदियाँ लगाई जाती हैं। सीसीटीवी निगरानी, प्रशासनिक बहाने, और अचानक यात्रा निरस्तीकरण आम हो चले हैं।
विशेष श्रावण कार्ययोजना
16 जुलाई से 16 अगस्त तक अभियान में निम्न प्रमुख गतिविधियाँ शामिल हैं:
डिजिटल संकल्प अभियान
“मैं कैलाश के साथ हूँ” जनसंपर्क यात्रा
कांवड़ यात्राओं में कैलाश संकल्प
दीप यज्ञ और कथा प्रवचन
ज़ूम मीटिंग्स व सोशल मीडिया विमर्श
16 अगस्त को जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपना
शांतिपूर्ण, सांस्कृतिक, राष्ट्रीय आंदोलन
अर्पित मुदगल ने यह स्पष्ट किया कि यह संघर्ष सरकार या दल के विरुद्ध नहीं, बल्कि धार्मिक अधिकारों के लिए चीन की तानाशाही नीतियों के विरोध में है।
“यह युद्ध तलवार से नहीं, संकल्प और विवेक से लड़ा जाएगा।”