चेन्नई, (वेब वार्ता)। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के अध्यक्ष एम के स्टालिन ने बृहस्पतिवार को कहा कि भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवादी होना नहीं है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि ‘‘असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी ही हिंदी कट्टरपंथी हैं’’ जो मानते हैं कि उनका अधिकार स्वाभाविक है लेकिन विरोध देशद्रोह है।
स्टालिन ने सोशल मीडिया में अपने पोस्ट में कहा, ‘‘जब आप विशेषाधिकार के आदी हो जाते हैं तो समानता उत्पीड़न जैसी लगती है। मुझे याद है जब कुछ कट्टरपंथियों ने हमें तमिलनाडु में तमिलों के उचित स्थान की मांग करने के ‘अपराध’ के लिए अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी करार दिया।’
उन्होंने कहा, ‘‘गोडसे की विचारधारा का महिमामंडन करने वाले लोग उस द्रमुक और उसकी सरकार की देशभक्ति पर सवाल उठाने का दुस्साहस करते हैं, जिसने चीनी आक्रमण, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम और करगिल युद्ध के दौरान सबसे अधिक धनराशि का योगदान दिया, जबकि उनके वैचारिक पूर्वज वही हैं जिन्होंने ‘बापू’ गांधी की हत्या की थी।’’
साथ ही उन्होंने कहा, ‘‘भाषाई समानता की मांग करना अंधराष्ट्रवाद नहीं है। क्या आप जानना चाहते हैं कि अंधराष्ट्रवाद क्या होता है? अंधराष्ट्रवाद 140 करोड़ नागरिकों पर शासन करने वाले तीन आपराधिक कानूनों को एक ऐसी भाषा देना है जिसे तमिल लोग न बोल सकते हैं और न ही पढ़कर समझ सकते हैं। अंधराष्ट्रवाद उस राज्य के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करना है जो देश में सबसे अधिक योगदान देता है और ‘एनईपी’ नामक जहर को निगलने से इनकार करने पर उसे उचित हिस्सा देने से मना किया जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘किसी भी चीज को थोपने से दुश्मनी पैदा होती है, दुश्मनी एकता को खतरे में डालती है। इसलिए, असली अंधराष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी ही हिंदी के कट्टरपंथी हैं जो मानते हैं कि उनका हक स्वाभाविक है लेकिन हमारा विरोध देशद्रोह है।’’