Wednesday, July 23, 2025
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जब धनखड़ को हटाने के लिए विपक्ष लाया नोटिस, इतिहास के एकमात्र ऐसे उपराष्ट्रपति; क्या हुआ तब

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा सुर्खियों में है। इस्तीफा देने से पहले धनखड़ राज्यसभा के सभापति की भूमिका का कुशलतापूर्वक निर्वहन कर रहे थे। जगदीप धनखड़ का कार्यकाल कई मायनों में काफी चर्चित रहा। वह इतिहास के एकमात्र उपराष्ट्रपति रहे, जिन्हें हटाने के लिए विपक्ष ने नोटिस लेकर आया। हालांकि उस वक्त यह नोटिस खारिज हो गया था। इसके अलावा विपक्ष ने उन्हें कई बार निशाने पर भी लिया। आइए जानते हैं धनखड़ के खिलाफ विपक्ष की नोटिस मामले में क्या हुआ था।

विपक्ष ने क्यों दिया था नोटिस

साल 2024 के मॉनसून सत्र के दौरान विपक्ष गौतम अडाणी के खिलाफ जेपीसी की मांग कर रहा था। यह मांग पूरी नहीं हो रही थी। तब कांग्रेस ने धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाया था। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा था कि संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में कहा था कि जब तक विपक्ष अडानी का मुद्दा उठाएगा हम सदन चलने नहीं देंगे। इसको लेकर जयराम रमेश ने कहा कि सभापति धनखड़ भी इसमें शामिल हैं। इसके बाद 10 दिसंबर 2024 को इंडिया गठबंधन के 60 सांसदों ने जगदीप धनखड़ को राज्यसभा के सभापति पद से हटाने की नोटिस दी थी। हालांकि उस नोटिस को उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया था।

तब धनखड़ की क्या थी प्रतिक्रिया

इस नोटिस को लेकर धनखड़ ने बड़े दिलचस्प अंदाज में टिप्पणी की थी। तब उन्होंने इस नोटिस को एक जंग लगा सब्जी काटने वाला चाकू बताया, जिसे बाईपास सर्जरी के लिए इस्तेमाल किया गया। धनखड़ ने राज्यसभा में व्यवधान से लेकर बिना चर्चा के विधेयक पारित होने के आरोपों तक, कई मुद्दों पर विपक्ष को आड़े हाथों लिया। उन्होंने खास तौर पर उन शीर्ष वकीलों पर निशाना साधा, जो विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्यसभा सदस्य भी हैं। पेशे से वकील, धनखड़ ने न्यायपालिका पर भी निशाना साधा, खासकर शक्तियों के पृथक्करण के मुद्दे पर।

2022 में बने थे उपराष्ट्रपति

धनखड़ 2022 के उपराष्ट्रपति चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उम्मीदवार थे। उपराष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) उम्मीदवार के रूप में उनका नाम घोषित करते हुए, भाजपा ने उन्हें किसान पुत्र बताया था। राजनीतिक हलकों में यह कदम राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जाट समुदाय तक पहुंच बनाने के उद्देश्य से देखा गया था, जिसने जून 2020 में शुरू किए गए कृषि सुधार उपायों के खिलाफ साल भर चले किसानों के प्रदर्शन में बड़ी संख्या में भाग लिया था।

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