नई दिल्ली, (वेब वार्ता) — भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक हाई-प्रोफाइल एलिमनी केस में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह मामला उस समय चर्चा में आया जब एक महिला ने अपनी 18 महीने चली शादी के एवज में 18 करोड़ रुपये और मुंबई की पॉश सोसाइटी में एक फ्लैट की एलिमनी की मांग की।
🧑⚖️ मुख्य न्यायाधीश का स्पष्ट रुख
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा:
“आपकी शादी महज़ 18 महीने चली और आप 18 करोड़ की मांग कर रही हैं, यानी हर महीने के बदले एक करोड़? क्या यह तर्कसंगत है?”
📍 क्या कहा गया अदालत में?
महिला ने कोर्ट से 12 करोड़ रुपये और एक फ्लैट मांगा।
कोर्ट ने पूछा, “आप कितनी पढ़ी-लिखी हैं?”
महिला ने कहा, “मैं MBA हूं और आईटी सेक्टर में कार्य कर चुकी हूं।”
इस पर CJI ने कहा:
“आप बेंगलुरु या हैदराबाद जैसे शहरों में अच्छी नौकरी कर सकती हैं। फिर क्यों नहीं करतीं?”
💼 पति की संपत्ति पर दावा नहीं
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि:
“महिला उस संपत्ति पर अधिकार नहीं मांग सकती जो पति की न होकर उसके पिता की है।”
💸 कोर्ट का प्रस्ताव
पति की आयकर विवरणी देखने के बाद कोर्ट ने दो विकल्प दिए:
महिला मुंबई के फ्लैट को एलिमनी में स्वीकार कर ले।
या फिर एकमुश्त 4 करोड़ रुपये में समझौता करे।
👩🎓 मुख्य टिप्पणी:
“जो लोग नौकरी करने योग्य हैं, वे जानबूझकर बेरोजगारी का सहारा लेकर मोटी एलिमनी की मांग नहीं कर सकते। सम्मानजनक जीवन के लिए खुद पर आत्मनिर्भर होना जरूरी है।”
🧾 न्यायिक संकेत:
यह फैसला भविष्य के ऐसे मामलों में नज़ीर बन सकता है, जहां विवाह की अल्पावधि के बाद अत्यधिक एलिमनी की मांग की जाती है। कोर्ट ने साफ किया है कि पढ़े-लिखे और कार्यक्षम व्यक्तियों को आत्मनिर्भरता अपनानी चाहिए, केवल विवाह के आधार पर अनावश्यक आर्थिक लाभ नहीं मांगा जा सकता।