तिरुवनंतपुरम, (वेब वार्ता)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि भारत अब सपेरों का देश नहीं रहा, बल्कि यह पूरी दुनिया को अपनी क्षमता से आकर्षित कर रहा है।
श्री धनखड़ ने आज यहां भारतीय विचारकेन्द्रम की ओर से आयोजित ‘लोकतंत्र, जनसांख्यिकी, विकास और भारत का भविष्य’ विषय पर चौथे पी. परमेश्वरन स्मारक व्याख्यान में यह बात कही। हाल के दशक में भारत की विकासपरक उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “जन-केंद्रित नीतियों और पारदर्शी जवाबदेह शासन के जरिए पारिस्थितिकी तंत्र में उछाल आया है। करीब 1.4 अरब की आबादी वाले देश में ग्रामीण क्षेत्र में आये परिवर्तनकारी बदलाव को देखें। हर घर में शौचालय है, बिजली कनेक्शन है, पानी का कनेक्शन आने वाला है, गैस कनेक्शन है… कनेक्टिविटी, इंटरनेट , सड़क, रेल , स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सहायता करने वाली नीतियां हैं। ये हमारी विकास पथ को परिभाषित करती हैं। यह आर्थिक पुनर्जागरण, जो कुछ वर्ष पहले कल्पना , चिंतन या सपनों से परे था, ने हमारे सनातन धर्म का सार, समावेशिता, गैर-भेदभावपूर्ण और समान विकास के परिणाम सभी के लिए सृजित किये हैं।”
उन्होंने जोर दिया कि किसी भी योग्यता, जाति, धर्म, जाति, रंग के बावजूद यह प्रयास किया गया है कि लाभ अंतिम पंक्ति में रहने वाले लोगों तक पहुँचना चाहिए और यह बड़ी सफलता के साथ किया जा रहा है।
पी. परमेश्वरन के योगदान को याद करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय मूल्यों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता, भारतीय लोकाचार की उनकी गहरी समझ और राष्ट्रीय एकता के लिए उनका अथक प्रयास पीढ़ियों को प्रेरित करता रहता है। एक आत्मनिर्भर भारत, सांस्कृतिक रूप से निहित और आध्यात्मिक रूप से जागृत भारत के लिए उनका दृष्टिकोण पूरे देश में गहराई से गूंजता है। वह इस सदी में हिंदू विचार प्रक्रिया के विचारकों और विचारकों की अग्रणी पंक्ति में हैं। उन्होंने कहा , “हम इस व्याख्यान के माध्यम से सामाजिक कार्य के लिए प्रतिबद्ध बेहतरीन बुद्धिजीवियों में से एक का जश्न मना रहे हैं। एक सभ्यता को केवल एक बुनियादी विचार से जाना जाता है। क्या यह वास्तव में अपने महान बेटों का सम्मान करती है? और पिछले कुछ वर्षों में यही विषय रहा है। हमारे भूले हुए नायक, गुमनाम नायक, बहुत कम देखे गए नायक, हमने उन्हें याद किया है।”
देश में राजनीतिक रूप से विभाजनकारी माहौल पर विचार करते हुए उन्होंने कहा, “हम कुछ पहलुओं पर चिंताजनक रूप से चिंताजनक परिदृश्यों से घिरे हुए हैं। राजनीति ध्रुवीकृत हो गयी है। ऊर्ध्वाधर रूप से विभाजनकारी हो गयी है। मुख्य राष्ट्रीय मूल्य और सभ्यतागत मूल्य केंद्रीय विषय नहीं हैं। इस देश में जहां विविधता एकता में परिलक्षित होती है, यह देश जो समावेशिता के अपने सनातन मूल्यों पर गर्व करता है, हम इन मुख्य मूल्यों से दूर होने और ध्रुवीकृत, विभाजनकारी गतिविधियों में शामिल होने का जोखिम नहीं उठा सकते। जैसे-जैसे सार्थक संवाद खत्म होते हैं, वैसे-वैसे सहयोग, सहभागिता और आम सहमति के स्तंभ भी खत्म होते जाते हैं।”
संवाद और विचार-विमर्श के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे आपके साथ अपनी पीड़ा और दर्द साझा करना चाहिए। संसद को लोगों के लिए एक आदर्श होना चाहिए। यह लोगों की आकांक्षाओं को वास्तविकता में बदलने का एक मंच है। इसे संवाद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श का अभेद्य गढ़ होना चाहिए और इन पहलुओं का उदाहरण संविधान सभा द्वारा दिया गया था जिसने 18 सत्रों में लगभग तीन साल तक काम किया था। और आज हम क्या देखते हैं।” उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, “क्या इससे अधिक गंभीर अपवित्रता हो सकती है, जब लोकतंत्र के मंदिर व्यवधान और अशांति से तबाह हो रहे हों? हमारे लोकतंत्र को जीवित रहना है और पहली परीक्षा संसदीय कार्यप्रणाली है। हम ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं, जहां राष्ट्रीय हित को दरकिनार कर दिया जाता है। राष्ट्र विरोधी आख्यान हवा में उड़ रहे हैं। हम बहुत खतरनाक समय में जी रहे हैं। राष्ट्रवाद की कीमत पर पक्षपातपूर्ण और व्यक्तिगत हित को बढ़ावा देने वाली राजनीतिक असहिष्णुता और लापरवाह रुख को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।”