Monday, December 22, 2025
व्हाट्सएप पर हमसे जुड़ें

संसद में चौथे दिन भी गतिरोध जारी: विपक्ष के तेवर तीखे, सरकार के रुख में सख्ती

मतदाता सूची पुनरीक्षण और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर घमासान, लोकतंत्र की गरिमा खतरे में

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। संसद के मानसून सत्र का चौथा दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। विपक्षी दलों ने बिहार में चल रही “मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR)” और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के मुद्दों पर सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। सदन की कार्यवाही दिनभर बाधित रही, जिससे न तो प्रश्नकाल संपन्न हो सका, न ही कोई विधेयक पारित हो पाया। लोकतंत्र के इस सर्वोच्च मंच पर लगातार जारी गतिरोध पर चिंतन आवश्यक हो गया है।

राज्यसभा: लगातार तीसरे दिन ठप रही कार्यवाही

गुरुवार को राज्यसभा की कार्यवाही जैसे ही सुबह 11 बजे शुरू हुई, विपक्षी सांसदों ने नारेबाजी शुरू कर दी। कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), तृणमूल कांग्रेस (TMC), आम आदमी पार्टी (AAP) और वाम दलों ने आसन के समीप आकर ‘बिहार में मतदाता सूची की गड़बड़ियों’ और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर बहस की मांग करते हुए शोर मचाया।

पीठासीन उपसभापति भुवनेश्वर कलिता ने कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने का प्रयास किया, लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते प्रश्नकाल शुरू ही नहीं हो सका। दोपहर बाद सदन की कार्यवाही पुनः आरंभ हुई तो ‘समुद्र द्वारा मालवहन विधेयक 2025’ पर चर्चा प्रस्तावित थी, लेकिन विपक्षी सांसदों के विरोध के चलते कार्यवाही दोबारा स्थगित कर दी गई।

राज्यसभा में विदाई:
इस दिन छह निवृत्त हो रहे सांसदों को सदन में विदाई दी गई, जिनमें पी. विल्सन, अंबुमणि रामदास, वाइको, एम. चंद्रशेखरन, एम. शनमुगम और एम. मोहम्मद अब्दुल्ला शामिल रहे। इन नेताओं ने अपने कार्यकाल के अनुभव साझा किए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गरिमा को बचाए रखने की अपील की।

लोकसभा: तख्तियों के साथ प्रदर्शन, सदन नहीं चला एक मिनट भी सुचारू

लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी सांसदों ने तख्तियां और पोस्टर लेकर नारेबाजी शुरू कर दी। बिहार में चुनाव आयोग द्वारा की जा रही SIR प्रक्रिया पर विपक्षी सांसदों ने सवाल उठाया कि यह राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित है और निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कई बार शांत रहने की अपील की और कहा, “यह सदन जनप्रतिनिधियों की गरिमा का मंच है, इसे हंगामे का स्थान न बनाएं।” कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल और अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी बार-बार समझाने का प्रयास किया गया, लेकिन हंगामा रुकने का नाम नहीं ले रहा था। अंततः सदन की कार्यवाही पहले 2 बजे तक और फिर दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई।

अर्जुन मेघवाल का पलटवार:
विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि, “आप अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की बात करते हैं, लेकिन जब उनके हित में विधेयक आता है तो आप हंगामा करते हैं। यह दोहरा रवैया नहीं चलेगा।”

विवाद के केंद्र में क्या है SIR और ‘ऑपरेशन सिंदूर’?

SIR (Special Intensive Revision):

बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण चलाया जा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया राज्य सरकार की मिलीभगत से कराई जा रही है, जिससे सामाजिक रूप से वंचित वर्गों को मतदाता सूची से हटाया जा सके। हालांकि चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक नियमित और वैधानिक प्रक्रिया है।

ऑपरेशन सिंदूर:

हाल ही में मीडिया में रिपोर्ट्स आईं कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुछ संवेदनशील समुदायों के बीच प्रभाव बढ़ाने के लिए रणनीतिक कार्रवाइयां कर रही है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास है, और इस पर विस्तृत चर्चा होनी चाहिए।

जनता के मुद्दे पीछे छूटे, संसद की कार्यक्षमता पर सवाल

देश में महंगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाढ़, जल संकट जैसे अनेक ज्वलंत मुद्दे हैं, जिन पर जनता उम्मीद करती है कि उसके प्रतिनिधि संसद में आवाज उठाएंगे। लेकिन मानसून सत्र के चार दिन बीतने के बाद भी एक भी प्रमुख विधेयक पर विस्तार से चर्चा नहीं हो सकी। इससे संसद की कार्य कुशलता (Legislative Productivity) पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा होता है।

2023 के मानसून सत्र में उत्पादकता:
पिछले साल मानसून सत्र की उत्पादकता लोकसभा में 45% और राज्यसभा में 28% रही थी। अगर यह सिलसिला जारी रहा तो 2025 का मानसून सत्र अब तक का सबसे कम उत्पादक सत्र हो सकता है।

नेताओं की प्रतिक्रियाएँ

  • कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी: “सरकार बहस से भाग रही है, हम जनहित के मुद्दों पर चर्चा चाहते हैं।”

  • भाजपा नेता निर्मला सीतारमण: “विपक्ष सिर्फ हंगामा चाहता है, न ही समाधान और न ही रचनात्मक बहस।”

  • राजद सांसद मनोज झा: “बिहार के कमजोर वर्गों को सूची से हटाना लोकतंत्र का अपमान है। हम चुप नहीं बैठेंगे।”

संपादकीय टिप्पणी: लोकतंत्र को चाहिए संवाद, न कि टकराव

संसद एक ऐसा मंच है जहाँ मतभेद के बावजूद समाधान की तलाश होती है। परंतु लगातार हो रहे हंगामे और राजनीतिक कटुता से न केवल विधायी प्रक्रिया बाधित हो रही है, बल्कि आमजन का लोकतंत्र से भरोसा भी डगमगाने लगता है।
यह आवश्यक हो गया है कि सरकार विपक्ष की आशंकाओं को गंभीरता से ले और विपक्ष अपने विरोध का तरीका गरिमामयी बनाए। दोनों पक्षों को सार्थक संवाद और रचनात्मक विमर्श की ओर लौटना होगा।

निष्कर्ष:
संसद में जारी यह गतिरोध सिर्फ सरकार और विपक्ष का नहीं, यह 140 करोड़ भारतीयों के विश्वास और उम्मीदों का संकट बनता जा रहा है। आवश्यक है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों संसदीय गरिमा को बहाल करें और जनहित को प्राथमिकता दें।

Author

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisement -spot_img

Latest

More articles