Saturday, March 15, 2025
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आशा कार्यकर्ताओं का पारिश्रमिक ‘विडंबना’: न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन

नई दिल्ली,  (वेब वार्ता)। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन ने आशा कार्यकर्ताओं के पारिश्रमिक में सुधार के मुद्दे को एक “विडम्बना” बताते हुए कहा है “कई बार जो सबसे अधिक योगदान करते हैं उन्हें सबसे कम मिलता है।” उन्होंने केंद्र और राज्यों से इसका समाधान निकालने को कहा है। न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यन शुक्रवार को यहां आशा कार्यकर्ताओं के विषय में आयोग द्वारा आयोजित कोर समूह की एक बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं की इस शिकायत का उल्लेख किया कि उनका पारिश्रमिक समाज में उनके योगदान के अनुपात में नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘विडंबना यह है कि कई बार जो सबसे अधिक योगदान देते हैं, उन्हें सबसे कम मिलता है, जो हाशिए पर पड़े लोगों की देखभाल करते हैं, वे खुद हाशिए पर चले जाते हैं।”उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं की कार्य स्थितियों और जीवन स्तर में सुधार के लिए ठोस नीति और कार्यान्वयन योग्य उपाय करने का भी आह्वान किया।

एनएचआरसी, भारत के सदस्य न्यायमूर्ति (डॉ) बिद्युत रंजन सारंगी ने कहा कि आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं और बच्चों से संबंधित किसी भी संकट के लिए चिकित्सक से परामर्श करने से पूर्व ही ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे पहले पहुंचती हैं। इसलिए, कार्यकर्ता के रूप में उनकी भूमिका को पर्याप्त प्रोत्साहन, प्रतिपूर्ति और सुरक्षा के साथ बेहतर ढंग से पहचाना जाना चाहिए ताकि उनके सम्मान के साथ जीवन-यापन के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके।

इससे पहले, बैठक का एजेंडा निर्धारित करने के साथ-साथ पृष्ठभूमि प्रदान करते हुए, महासचिव श्री भरत लाल ने तीन तकनीकी सत्रों के विषय के बारे में बताया। इनमें ‘आशा कार्यकर्ताओं के सामने आने वाली चुनौतियों की उभरती प्रकृति’, ‘अधिकारों के संरक्षण और उनके संवर्धन में सरकार की भूमिका’ के साथ-साथ ‘भविष्य की योजनाएं: आशा कार्यकर्ताओं के लिए सम्मान के साथ कार्याधिकार को सुनिश्चित करना शामिल है। उन्होंने कहा कि सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं लेकर आई है और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में आशा कार्यकर्ताओं के योगदान को देखते हुए, उनके कम मानदेय, अत्यधिक कार्यभार और अपर्याप्त संसाधनों जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कोविड-19 के दौरान फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के रूप में उनकी अनुकरणीय भूमिका की भी सराहना की जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी स्वीकार किया है।

बैठक के दौरान मुख्य वक्ताओं में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री सौरभ जैन, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री पल्लवी अग्रवाल, झिपिगो इंडिया की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. श्वेता खंडेलवाल, राष्ट्रीय महिला गठबंधन (एनएडब्ल्यूओ) की अध्यक्ष सुश्री रूथ मनोरमा, जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र की प्रोफेसर और निदेशक डॉ सबीहा हुसैन, महिला और बाल विकास मंत्रालय की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. वैशाली बरुआ, राष्ट्रीय समन्वयक, यूएन महिला भारत; सुश्री दीपा सिन्हा, विजिटिंग प्रोफेसर, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय; सुश्री सुरेखा सचिव, आशा कार्यकर्ता और भारत के सुविधा प्रदाता महासंघ (एडब्ल्यूएफएफआई); सुश्री सुनीता, आशा कार्यकर्ता, हरियाणा, एनएचआरसी, भारत डीजी (अन्वेषण), आर प्रसाद मीना, रजिस्ट्रार (विधि), जोगिंदर सिंह, निदेशक, लेफ्टिनेंट कर्नल वीरेंद्र सिंह आदि शामिल थे।

बैठक के दौरान हुए विचार-विमर्श में निम्नलिखित सुझाव दिए गए;

  • आशा कार्यकर्ताओं को निश्चित मासिक पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा, पेंशन, सवेतन अवकाश आदि के साथ औपचारिक कार्यकर्ता का दर्जा देने पर विचार करने की आवश्यकता;
  • राज्यों में मानदेय/मजदूरी का मानकीकरण, यह सुनिश्चित करना कि मानदेय न्यूनतम मजदूरी नियमों के अनुरूप हो;
  • प्रोत्साहन-आधारित भुगतान संरचना को एक निश्चित राशि और प्रदर्शन-आधारित लाभ के साथ बदला जाए;
  • आशा कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और दुर्घटना कवरेज प्रदान किया जाए;
  • क्षेत्र के दौरे के दौरान निशुल्क व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई), परिवहन भत्ते और स्वच्छ-सुगम क्षेत्रों तक पहुंच सुनिश्चित की जाए;
  • उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ सख्त नीतियां लागू करते हुए सभी क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षित कार्य स्थितियां सुनिश्चित की जाएं;
  • बाल देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल और आशा कल्याण के लिए भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम से अप्रयुक्त निधियों में से 49,269 करोड़ रुपये (2022 तक) का उपयोग किया जाए;
  • प्रारंभिक बचपन देखभाल और स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों के प्रशिक्षण को मजबूत करने की दिशा में 70,051 करोड़ रुपये के स्वास्थ्य क्षेत्र अनुदान आवंटित किए जाएं;
  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक केंद्रों पर राज्य-वित्त पोषित क्रच स्थापित किए जाएं ताकि आशा कार्यकर्ताओं को समर्थन दिया जा सके जो घर पर प्राथमिक देखभालकर्ता भी हैं;
  • आशा कार्यकर्ताओं के लिए उच्च-भुगतान वाली स्वास्थ्य देखभाल भूमिकाओं जैसे नर्सिंग, दाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन में व्यवस्थित करियर का मार्ग सुनिश्चित किया जाए;
  • रोग से बचाव, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया में नियमित कौशल वृद्धि प्रशिक्षण प्रदान किया जाए;
  • औपचारिक स्वास्थ्य देखभाल भूमिकाओं के लिए आशा कार्यकर्ताओं को प्रमाणित करने के लिए मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के सहयोग से ब्रिज पाठ्यक्रमों का शुभारंभ किए जाए;
  • कार्यस्थल बाल देखभाल समाधान की पेशकश करने वाले नियोक्ताओं के लिए कर लाभ के साथ, बाल देखभाल और बुजुर्ग देखभाल बुनियादी व्यवस्था में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहन दिया जाए;
  • आशा कार्यकर्ताओं के पास वेतन और कार्य स्थितियों पर निर्णय लेने की शक्ति सुनिश्चित करने के लिए सेवा मॉडल जैसे सहकारी मॉडल को बढ़ावा दिया जाए; और
  • किफायती समुदाय-आधारित देखभाल सेवाओं का विस्तार करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देते हुए आशा कार्यकर्ताओं के लिए अच्छे रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाए।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग इन सुझावों पर आगे चर्चा करने के साथ-साथ इनके बारे में अतिरिक्त जानकारी लेते हुए आशा कार्यकर्ताओं का कल्याण सुनिश्चित करने हेतु इस मामले पर विचार-विमर्श करेगा।

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