नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। देशभर में लोगों की ज़िंदगियों से खिलवाड़ कर रहे नकली दवाओं के एक अंतरराज्यीय गिरोह का पर्दाफाश करते हुए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने एक बड़ी सफलता हासिल की है। गिरोह के छह सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है जो जॉनसन एंड जॉनसन, जीएसके, एल्केम जैसी नामी दवा कंपनियों की नकली जीवन रक्षक दवाओं के निर्माण, पैकेजिंग और वितरण में संलिप्त थे।
गिरफ्तार आरोपियों के पास से अल्ट्रासेट, ऑगमेंटिन 625, पैन-40 और बेटनोवेट-एन स्किन क्रीम जैसी नकली दवाओं का भारी स्टॉक जब्त किया गया है। पुलिस ने हरियाणा के जींद और हिमाचल प्रदेश के बद्दी में चल रही दो अवैध फैक्ट्रियों का भी भंडाफोड़ किया है।
सोशल मीडिया से बनता था संपर्क
गिरोह के सदस्य सप्लायरों से फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए संपर्क करते थे। मोहम्मद आलम और मोहम्मद जुवैर जैसे डीलरों की पहचान अरुण (महाराजगंज), कोमल (करनाल), सुमित (गोरखपुर) जैसे आपूर्तिकर्ताओं से की गई। यह लोग नकली दवाएं भेजते थे जिन्हें आगे मेडिकल स्टोर्स और झोलाछाप डॉक्टरों के माध्यम से बेचा जाता था।
कैसे हुआ पर्दाफाश?
30 जुलाई को पुलिस को सूचना मिली थी कि एक वैगनआर कार (UP21-ET-3620) से नकली दवाओं की सप्लाई की जा रही है। सिविल लाइंस स्थित HP CNG पेट्रोल पंप के पास वाहन को रोका गया और उसमें से नकली दवाओं की खेप बरामद हुई।
मौके पर मौजूद जॉनसन एंड जॉनसन और GSK के प्रतिनिधियों ने पुष्टि की कि बरामद दवाओं की पैकिंग असली नहीं है। लैब जांच में भी यह नकली साबित हुईं।
गिरफ्तार किए गए आरोपी और उनकी भूमिका
राजेश मिश्रा – इस रैकेट का सरगना। फार्मा इंडस्ट्री का पूर्व अनुभव होने के कारण नकली उत्पादन की योजना बनाई।
परमानंद (जींद) – ‘महा लक्ष्मी’ नामक यूनिट में नकली दवाओं का निर्माण करता था।
नेहा शर्मा और पंकज शर्मा – खाली पैकेजिंग बॉक्स की व्यवस्था करते थे।
गोविंद मिश्रा (बद्दी) – फॉयल और डाई सप्लाई करता था।
मोहम्मद आलम और मोहम्मद सलीम – सप्लाई चैन के ग्राउंड लेवल डीलर।
कैसे होता था ट्रांजेक्शन?
भुगतान मोबाइल वॉलेट, बारकोड स्कैन, या रिश्तेदारों के खातों के माध्यम से किया जाता था। इसमें मीना, उमेश और दीपांकर शुक्ला जैसे नाम सामने आए हैं। नकली दवाएं ट्रेन से गोरखपुर भेजी जाती थीं और फिर वहां से वितरित की जाती थीं।
क्या कहा पुलिस ने?
क्राइम ब्रांच का कहना है कि यह रैकेट देश भर में फैला हुआ है और यह गिरफ्तारियां केवल एक शुरुआत हैं। अब तक जो मोबाइल डेटा और दस्तावेज मिले हैं, उनसे यह भी पता चल रहा है कि इस नेटवर्क की जड़ें कई राज्यों में फैली हुई हैं। आने वाले दिनों में और गिरफ्तारियां संभव हैं।