नई दिल्ली, (वेब वार्ता) दिल्ली हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुष्कर्म के एक गंभीर मामले में दिल्ली पुलिस की लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस अधिकारी ऐसे गंभीर मामलों की जांच को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
यह मामला तब सामने आया जब आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई हो रही थी। सुनवाई के दौरान, जांच अधिकारी अदालत में उपस्थित नहीं हुए और न ही उन्होंने सरकारी वकील को मामले से जुड़ी कोई जानकारी दी।
जस्टिस गिरीश कथपालिया की बेंच ने इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा:
“ऐसा लगता है जैसे जांच अधिकारी और अभियोजक आरोपी की जमानत का विरोध ही नहीं करना चाहते।”
अदालत का निर्णय
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए। पीड़िता की गवाही और मामले की गंभीरता को देखते हुए अदालत ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी।
पुलिस आयुक्त को आदेश
अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में जांच अधिकारियों को सुनवाई से पहले सभी दस्तावेज़ और जानकारी सरकारी वकील को दे देनी चाहिए और खुद भी अदालत में उपस्थित रहना चाहिए।
बार-बार के निर्देशों के बावजूद ऐसा न होने पर कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को मामले की जांच का आदेश दिया।
मामले का संदर्भ
यह मामला भलस्वा डेरी थाना क्षेत्र का है। अगस्त 2024 में 13 वर्षीय किशोरी के साथ दुष्कर्म हुआ था, जिसके बाद वह गर्भवती हो गई। आरोपी नवंबर 2024 से न्यायिक हिरासत में है और उसने सुधार का हवाला देते हुए जमानत मांगी थी।
विश्लेषण
यह टिप्पणी पुलिस की गंभीर मामलों में उपेक्षा को उजागर करती है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि जांच और अभियोजन में लापरवाही पीड़िता के न्याय को प्रभावित कर सकती है।
पुलिस और अभियोजक की जिम्मेदारी केवल गिरफ्तारी तक सीमित नहीं है; उन्हें न्याय प्रक्रिया में सक्रिय और पारदर्शी भूमिका निभानी होती है।