नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को सुधारने के लिए बनाई गई बस रूट पुनर्निर्धारण योजना फिलहाल अधर में अटकी हुई है। इसका मुख्य कारण फंड की कमी है। दिल्ली परिवहन विभाग ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए तीन करोड़ रुपये से अधिक की अतिरिक्त राशि की मांग की है। जब तक यह फंड जारी नहीं होता, तब तक योजना ठप ही रहेगी।
योजना का उद्देश्य और महत्व
दिल्ली में यात्री संख्या के अनुसार बस रूटों का पुनर्गठन बेहद जरूरी माना जा रहा था। फिलहाल कई रूट ऐसे हैं जहां यात्रियों को घंटों तक बस का इंतजार करना पड़ता है, जबकि कुछ रूटों पर एक साथ कई बसें पहुंच जाती हैं और वे खाली चलती हैं। इस असंतुलन को खत्म करने के लिए ही यह योजना बनाई गई थी।
दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (डीटीसी) ने बस रूटों के सर्वे और पुनर्निर्धारण का काम आईआईटी दिल्ली को सौंपने का निर्णय लिया था। इस सर्वे का उद्देश्य दिल्ली के प्रमुख ट्रांजिट सेंटरों जैसे आनंद विहार, कश्मीरी गेट, बदरपुर, मंडी हाउस और कनॉट प्लेस पर यात्रियों की भीड़ के अनुसार रूट तय करना है।
फंडिंग में रुकावट बनी बड़ी चुनौती
इस योजना को लागू करने के लिए भुगतान परिवहन विभाग की सहयोगी संस्था डीटीआईडीसी (दिल्ली ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) के माध्यम से होना था। लेकिन फंड की कमी सबसे बड़ी अड़चन बन गई है। परिवहन मंत्री डॉ. पंकज सिंह का कहना है कि “इसमें कोई देरी नहीं है, सभी प्रक्रिया पूरी की जा रही है। जल्द ही फंड जारी कर दिया जाएगा और योजना पर काम शुरू होगा।”
दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन की मौजूदा स्थिति
दिल्ली में वर्तमान समय में सार्वजनिक परिवहन पहले से ही अव्यवस्थित है। बसों की संख्या कम होने के साथ-साथ रूट निर्धारण में भी भारी खामियां हैं। दिल्ली में करीब 37 प्रतिशत लोग सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करते हैं और औसत यात्रा दूरी 11.2 किलोमीटर है। रिपोर्ट के अनुसार, बदरपुर बॉर्डर पर पीक आवर में प्रति घंटा 1382 लोग बसों से सफर करते हैं, जबकि कश्मीरी गेट पर यह संख्या 480, मंडी हाउस में 408, पालिका केंद्र में 380 और मंगलापुरी टर्मिनल पर 327 है।
योजना के ठप होने के नुकसान
अगर यह योजना समय पर लागू नहीं होती है तो दिल्ली में ट्रैफिक जाम और प्रदूषण की समस्या और भी बढ़ सकती है। रूट पुनर्निर्धारण से यात्रियों को बेहतर सुविधा मिलने के साथ-साथ बसों का उपयोग भी अधिक प्रभावी तरीके से हो सकता है।
निष्कर्ष
परिवहन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर फंड जारी कर दिया जाए तो इस योजना को छह महीने के भीतर लागू किया जा सकता है। इससे दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में बड़ा बदलाव आएगा और लोगों को राहत मिलेगी।