Friday, September 13, 2024
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CAG ने 2,604 करोड़ रुपये के वित्तीय नुकसान को लेकर रेलवे को दिये निर्देश, जल्द GST की हो वसूली

नई दिल्ली, (वेब वार्ता)। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भारतीय रेलवे की 2,604.40 करोड़ रुपये के वित्तीय घाटे को लेकर खिंचाई की है। रेलवे को यह घाटा कर्ज और माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की वसूली नहीं होने से जुड़े मामलों के अध्ययन, किराये के अलावा अन्य स्रोतों से आय सृजित करने के लिए अनुचित निर्णय, गलत तरीके से छूट अनुदान तथा बेमतलब के खर्च के कारण हुआ है। कुल 33 मामलों के अध्ययन में यह बात सामने आई है। कैग के अनुसार, रिपोर्ट में उल्लेखित मामले वे हैं जो 2021-22 की अवधि के लिए परीक्षण ऑडिट और पहले के वर्षों में सामने में आये थे। लेकिन पिछली ऑडिट रिपोर्ट में ये चीजें नहीं आ पाई थीं।

ब्याज में 834.72 करोड़ का नुकसान

इन 33 मामलों में से एक में रेल मंत्रालय को ब्याज में 834.72 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। उसे एक भूमि के विकास के लिए इरकॉन को दिए गए 3,200 करोड़ रुपये के ऋण पर तीसरे पक्ष को भुगतान करने के लिए यह राशि देने को मजबूर होना पड़ा। इसमें कहा गया है कि इरकॉन ने ब्याज सहित कर्ज का भुगतान किया लेकिन जमीन का कोई विकास नहीं किया गया। कैग ने इस भारी नुकसान की जिम्मेदारी तय करने और व्यवहार्यता अध्ययन किये बिना वित्त वर्ष के अंत में गैर-किराया राजस्व उत्पन्न करने के निर्णय से बचने की भी सिफारिश की है। एक अन्य मामले में यह पाया गया कि रेलवे ने इंजन की ‘शंटिंग’ गतिविधि के लिए शुल्क नहीं लगाया। इसके परिणामस्वरूप पूर्वी तट रेलवे को 2018 से 2022 तक 149.12 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ।

जल्द जीएसटी वसूली करने को कहा

साइडिंग मालिकों को रेलवे द्वारा प्रदान की गई सेवाओं पर जीएसटी लगाने के संबंध में माल और सेवा कर प्रावधानों का अनुपालन न करने का एक मामला भी सामने लाया है। इससे साइडिंग मालिकों से 13.43 करोड़ रुपये का संग्रह नहीं हो पाया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने रेलवे से सरकारी खजाने को होने वाले नुकसान से बचने के लिए साइडिंग मालिकों से बकाया जीएसटी की जल्द से जल्द वसूली करने और जीएसटी अधिसूचना के प्रावधानों को लागू न करने के लिए उचित स्तर पर जिम्मेदारी तय करने को कहा है। कैग ने भारतीय रेलवे में स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन का भी ऑडिट किया। इसमें जोनल रेलवे के अस्पतालों में मेडिकल और पैरा मेडिकल कर्मचारियों की कमी की बात कही गयी है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के अनुसार, “आईपीएचएस (भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक) मानदंडों के संदर्भ में मशीनों/चिकित्सा उपकरणों की उपलब्धता में भी कमी पायी गयी।

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