-निर्मल रानी-
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की ज़िम्मेदारी संभालने के जब डॉ.मोहन यादव ने यह कहना शुरू किया था कि राज्य में क़ानून व्यवस्था से कोई समझौता नहीं किया जाएगा उस समय प्रदेशवासियों में यह उम्मीद जगी थी कि प्रदेश को मिला नया नेतृत्व शायद राज्य से भय, आतंक व अराजकता के वातावरण को दुरुस्त कर सकेगा। परन्तु राज्य के हालात क़ानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार तक अभी भी न केवल जस के तस बने हुये हैं बल्कि अपराधियों द्वारा अंजाम दी जाने वाली कुछ घटनाओं से तो ऐसा प्रतीत होने लगा है गोया सत्ता बदलने या मुख्यमंत्री की क़ानून व्यवस्था सम्बन्धी किसी चेतावनी का अपराधियों पर कोई असर ही नहीं। हद तो यह है कि प्रदेश में घटी अनेक बड़ी आपराधिक घटनाओं में सत्तारूढ़ भाजपा के लोगों के शामिल होने के भी प्रमाण मिलते रहे हैं। तभी विपक्ष को भी पूछना पड़ रहा है कि प्रदेश में होने वाली हर बड़ी आपराधिक घटनाओं के पीछे कहीं न कहीं बीजेपी से जुड़े लोग शामिल होते पाए गए हैं। तो क्या सरकार और पार्टी इस दिशा में कोई क़दम उठाने वाली है? विपक्ष यह भी पूछ रहा है कि मध्य प्रदेश सरकार को जंगलराज के टैग से मुक्ति कब मिलेगी? और विशेषकर अनुसूचित जाति जनजाति पर होने वाले अत्याचार कब समाप्त होंगे?
पिछले दिनों मध्य प्रदेश के रीवा ज़िले में इलाहबाद मार्ग पर स्थित मंगावा थाना क्षेत्र के अंतर्गत दबंगों द्वारा अपनी दबंगई का वह प्रदर्शन किया गया जो शायद आजतक उस बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे उन राज्यों में भी नहीं हुआ जहाँ लालू यादव व अखिलेश यादव के राज को ‘जंगल राज ‘ कहकर यही सत्ताधारी भाजपाई आज भी सम्बोधित किया करते हैं। रीवा ज़िले के हिनौता क्षेत्र में हुई इस घटना में गुंडों ने डंपर से बजरी फेंककर दो महिलाओं को ज़िंदा दफ़नाने की कोशिश की। इस घटना में ममता पांडे और आशा पांडे नाम की दो महिलाएं बजरी के ढेर में कमर और गर्दन तक दब गई थीं। जिन्हें स्थानीय लोगों ने फावड़े की सहायता से बजरी के ढेर में से बाहर निकाल कर उनकी जान बचाई। इन महिलाओं को बेहोशी की हालत में इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। यदि स्थानीय लोग मानवता का प्रदर्शन करते हुये उन महिलाओं को समय रहते बजरी के ढेर से बाहर न निकालते तो दोनों महिलाएं ज़िंदा ही दफ़्न हो जातीं। बताया जा रहा है कि इस गांव में एक सड़क निर्माण योजना को लेकर महिलाएं विरोध प्रदर्शन कर रही थीं। उन महिलाओं का दावा है कि चूँकि यह ज़मीन उन्हें सरकार द्वारा पट्टे पर दी गई थी इसीलिये वे उस ज़मीन पर सड़क निर्माण का विरोध कर रही थीं। और जब उन्होंने सड़क निर्माण रोकने की कोशिश की तो उन पर जानलेवा हमला किया गया। पीड़ित महिलाओं ने गौकरण प्रसाद पांडे, महेंद्र प्रसाद पांडे सहित अन्य कई व्यक्तियों पर हमला करने और डंपर चालक पर उन्हें ज़िंदा दफ़नाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।
मोहन यादव सरकार से पहले शिवराज चौहान सरकार में भी इस राज्य में मानवता को शर्मसार करने वाली दबंगई की कई शर्मनाक घटनायें हो चुकी हैं। गत वर्ष जुलाई माह में मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर बिकौरा गांव में पंचायत के लिए नाली का निर्माण कार्य चल रहा था। उस समय रामकृपाल पटेल नामक व्यक्ति पास के एक हैंडपंप पर नहा रहा था। बताया जाता है कि उसी समय दलित समुदाय के एक व्यक्ति दशरथ अहिरवार ने हंसी मज़ाक़ के माहौल में ग्रीस लगे हाथ से आरोपी रामकृपाल पटेल को छू लिया। तभी ग़ुस्साया पटेल नहाने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे मग में पास में पड़ा मानव मल भर लाया और इसे दशरथ अहिरवार के सिर और चेहरे सहित पूरे शरीर पर भी लगा दिया। पीड़ित दलित दशरथ अहिरवार ने यह भी आरोप लगाया कि पटेल ने इस दौरान उसे जाति के आधार पर अपमानित भी किया। और जब उसने मामले की सूचना पंचायत को दी और बैठक बुलाई। तो पंचायत ने उल्टे उसी पर 600 रुपये का जुर्माना भी लगा दिया।
यह वही मध्य प्रदेश राज्य है जहाँ गत वर्ष जुलाई में सीधी से भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत प्रवेश शुक्ला नामक एक युवक ने एक आदिवासी युवक के मुंह व चेहरे पर पेशाब करते अपनी वीडियो बनवाई थी। बाद में आरोपी प्रवेश शुक्ला के विरुद्ध बहारी थाने में भारतीय दंड संहिता की धाराओं 294 (अश्लील हरकतें), 504 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। साथ ही आरोपी के विरुद्ध एनएसए की कार्रवाई भी शुरू की गई थी। मानवता को आहात करने वाली इस घटना ने पूरे मध्य प्रदेश को शर्मसार कर दिया था। इस घटना की वीडिओ भी वायरल हुई थी। इस घटना का ज़िक्र विदेशी मीडिया ने भी किया था। वैसे भी मध्य प्रदेश पूरे देश में दलितों के साथ अपराध के मामलों में तीसरे स्थान पर है।
एक दो दशक पहले के ख़ासकर उत्तर प्रदेश व बिहार में अन्य दलों के शासन को आज भी गुंडा राज कहकर याद करने वाली भाजपा के शासन में आख़िर कौन सा अपराध नहीं हो रहा है? पुलिस कस्टडी में लोगों की संदिग्ध अवस्था में हत्यायें हो जाना क्या अराजकता की निशानी नहीं? गैंग रेप, अपहरण दलितों व अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म क्या यह बेहतर क़ानून व्यवस्था के लक्षण हैं? जेल में गैंगवार और हत्यायें बेहतर क़ानून व्यवस्था की परिचायक तो हरगिज़ नहीं? दरअसल भाजपा नेताओं व सरकार की प्राथमिकतायें कुछ और ही हैं। छोटे मोटे अपराधों को लेकर समुदाय विशेष के लोगों के घरों व व्यवसायिक ठिकानों पर बुलडोज़र चलाकर दूसरे समुदाय के लोगों की वाहवाही लूटना यानी एक की बर्बादी दिखाकर दूसरों को ख़ुश करना यही इनकी लोकप्रियता का शार्ट कट है। अन्यथा डंपर से बजरी फ़ेंक कर दो महिलाओं को ज़िंदा दफ़्न करने से बड़ा अपराध और क्या हो सकता है? देश के तमाम मीडिया ने इस घटना को ‘तालिबानी कृत्य ‘ का नाम दिया। यहाँ आख़िर बुलडोज़र क्यों नहीं चला? यदि इस तरह के दुस्साहसिक गुंडा राज के दौर को भी सुशासन बताने की कोशिश की जाये फिर आख़िर जंगल राज किसे कहा जाये?