Friday, March 14, 2025
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ट्रंप के खुलासों पर मोदी की चुप्पी क्यों?

-शकील अख्तर-

राहुल की असली परीक्षा है यह कि वह जिस ताकत से मोदी से लड़ रहे हैं उतनी ही हिम्मत से पार्टी के अंदर के विभीषणों की पहचान करें। सिर्फ अध्यक्ष खरगे जी से कहने से काम नहीं चलेगा कि खरगे जी चाबुक चलाइए। नाम लिखकर दें। फिर देखिए खरगे जो खुद इस समय बहुत साफ-साफ पार्टी, संगठन के बारे में लगातार बोल रहे हैं वह किस तेजी से सफाई करते हैं।

ट्रंप अच्छी दोस्ती निभा रहे हैं हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी से! माय डियर फ्रेंड कह कह कर रोज नए खुलासे कर रहे हैं। अब चौथी बार 18 मिलियन डालर की बात कही। कहां गया यह पैसा? किसके पास आया यह तो अब सवाल ही नहीं। प्रेसिडेन्ट ट्रंप ने खुद कहा कि माय डियर फ्रेंड मोदी को दिया। मगर मोदी जी ने क्या किया? क्यों लिया? राहुल को बदनाम करने के लिए? राहुल ने खुद कहा कि उन्हें बदनाम करने के लिए भाजपा ने हजारों करोड़ रुपया खर्च किया। कांग्रेस के मीडिया डिपार्टमेंट के चेयरमेन पवन खेड़ा ने कहा कि 2021 से 2024 के बीच अमेरिका से 650 मिलियन डालर ( करीब 600 करोड़ रुपया) भारत आया। और राहुल ने जो बात कही कि कितना पैसा उनके खिलाफ इस्तेमाल किया गया है वह इस बीच कही थी। 2022 में। अपनी भारत जोड़ो यात्रा के आखिरी दौर में।

कांग्रेस ने मोदी सरकार से सही मांग की है कि सरकार को व्हाइट पेपर लाना चाहिए। मतलब सारे तथ्य देश के सामने रखना। यह भारत की छवि के लिए भी जरूरी है। प्रधानमंत्री पद के सम्मान और उसकी गरिमा के लिए भी। कोई चाहे वह अमेरिकी राष्ट्रपति ही क्यों न हो कैसे इस तरह की बात कर सकता है?

सवाल बहुत सारे हैं! लेकिन दो दिन से पूरी तरह चुप्पी है। पवन खेड़ा जो इस मामले में रोज नए सवाल कर रहे हैं, ने बहुत कठोर होकर कहा कि संघी पत्रकार अब क्यों नहीं बोल रहे हैं?

अपनी मेहनत और निडरता से जनता के बीच लोकप्रिय नेता के तौर पर स्थापित हो गए राहुल गांधी के साहसिक सवालों का असर अब पार्टी में दिख रहा है। सब तो नहीं मगर कई नेता हिम्मत के साथ संघ की सच्चाइयां लोगों के सामने लाते हैं। राहुल पर तो संघ और भाजपा के लोगों ने देश भर में दर्जनों मुकदमे लगा रखे हैं। मगर राहुल उनसे डरने के बदले मामलों के सारे तथ्य सामने लाने की मांग कर रहे हैं।

अभी पूना की एक अदालत में सावरकर की मानहानि के मामले में राहुल ने कहा कि सावरकर के मामले में पूरे तथ्य अदालत के सामने आना चाहिए। तथ्य और कानून दोनों के जटिल सवाल हैं। गहन और विस्तृत जिरह की जरूरत है। ऐतिहासिक साक्ष्य हैं। सब सामने लाना है। इसलिए मुकदमे की प्रवृति बदली जाकर इसे समन मामले के रूप में सुना जाए। सावरकर की ऐतिहासिक और अकादमिक जांच हो जाए। संक्षेप में समन मामले में राहुल यह बता सकेंगे कि उन्होंने जो कहा था वह क्यों कहा था। उसके आधार क्या थे। दस्तावेज कौन से हैं। इतिहास, तथ्य क्या कहता है। मतलब राहुल सावरकर के मामले में सारी सच्चाइयां सामने रख कर कह सकते हैं कि मैंने इस आधार पर सावरकर पर बोला था।

यह बहुत साहस का काम है। मुकदमे से डरना नहीं बल्कि उसका सामना करते हुए सारी सच्चाइयां सामने रख देना। यह मौका होगा। मुकदमा करने वाले संघ, भाजपा के लोग भी सावरकर के बारे में तथ्य रखें और राहुल कांग्रेस भी। एक बार अदालत के सामने सावरकर की सारी हकीकत कि कितनी बार उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। उनके लिए काम करने की इच्छा व्यक्त की थी। इसके बदले पेंशन ली। सब सामने आ जाएगा। यह भी कि जो वीर कहते हैं। वह भी सावरकर खुद ही अपने नाम के साथ लिखते थे।

तो राहुल का यह साहस अब पार्टी में दिखने लगा है। अभी कुछ साल पहले तक इसी पार्टी में यह हालत थी कि राहुल विरोधी नेता नेहरू की बात करने पर कह देते थे हम नेहरुवादी नहीं।

कांग्रेस ऐसे ही बरबाद नहीं हुई है। यूएसएड के जरिए अमेरिका से आने वाला डालर मनमोहन सिंह सरकार को अस्थिर करने के लिए भी खर्च किया गया था। कांग्रेस यह तो कहती है कि वह पैसा अन्ना हजारे, संघ, भाजपा के नेताओं, केजरीवाल को मिला।

मगर इस सवाल का जवाब उसके पास क्या है कि सरकार तो उसकी थी। पैसा आया कैसे? बंटा कैसे? उसकी सरकार और नेता क्या कर रहे थे? क्या राहुल विरोध उस समय से शुरू नहीं हो गया था? क्या कुछ राहुल विरोधी कांग्रेस के बड़े नेता भी अंदर से अन्ना हजारे के आंदोलन के समर्थक थे? इन सवालों से कांग्रेस को घबराना नहीं चाहिए। अगर नई कांग्रेस बनाना है तो उन नामों की निशानदेही करना होगी जिन्होंने कांग्रेस और यूपीए सरकार में रहकर मनमोहन सिंह सरकार को कमजोर किया।

राहुल की असली परीक्षा है यह कि वह जिस ताकत से मोदी से लड़ रहे हैं उतनी ही हिम्मत से पार्टी के अंदर के विभीषणों की पहचान करें। सिर्फ अध्यक्ष खरगे जी से कहने से काम नहीं चलेगा कि खरगे जी चाबुक चलाइए। नाम लिखकर दें। फिर देखिए खरगे जो खुद इस समय बहुत साफ-साफ पार्टी, संगठन के बारे में लगातार बोल रहे हैं वह किस तेजी से सफाई करते हैं।

यह ऐतिहासिक मौका है। इस समय भी अगर राहुल और खरगे ने ऊपर-ऊपर ही काम किया तो पार्टी इससे मजबूत नहीं होगी। दोनों काम साथ करना होंगें। पार्टी को नुकसान पहुंचाने वालों को दरवाजे के बाहर तक ले जाकर छोड़ना होगा। और मजबूत विचारधारा के मौका न पाए नेता कार्यकर्ताओं को ढूंढकर संगठन में लाना होगा।

इतना पिटने के बाद भी आज कांग्रेसी गांव-गांव मोहल्ले-मोहल्ले में है। वह नहीं डरता। नेहरू-गांधी की विचारधारा से जुड़ा है। और इस गांधी-नेहरू परिवार से। यही कांग्रेस की ताकत है और कोई पार्टी होती तो अभी तक खत्म हो जाती। बड़े नेताओं ने तो कोई कसर छोड़ी नहीं। अभी भी शशि थरूर जैसे लोग जिन्हें पार्टी ने सब कुछ दिया। मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बनाया। जहां वे खर्च कम करने के लिए मंत्रियों को जहाज के सामान्य क्लास में बैठने की बात की ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं कि यह सामान्य क्लास तो कैटल क्लास (ढोरों का बाड़ा) है। केरल से पार्टी जिताती है। जो केरल की राजनीति नहीं जानते उनके लिए कि वहां कोई अपनी हैसियत से नहीं जीत सकता। पार्टी का संगठन ही उस पढ़े-लिखे राज्य में महत्वपूर्ण है। मेट्रो मेन कहलाने वाले श्रीधरन वहां हार गए थे। क्योंकि जिस पार्टी से लड़े थे भाजपा से उसकी जमीन नहीं है। थरूर को पार्टी जिताती है।

तो थरूर जैसे नेता जो ज्यादा उड़ते हैं चाहे जब मोदी की तारीफ करने लगते है उनसे कांग्रेस को डरना छोड़ना पड़ेगा। अमेरिका से आए डालर पर कांग्रेस सही सवाल उठा रही है। हर बात पर मोदी का बचाव करने आ जाते मीडिया वालों के पास ट्रंप के खुलासों का कोई जवाब नहीं है। रास्ता बस एक ही कि ट्रंप से लड़ जाएं! मगर इतनी हिम्मत न मीडिया में और न मोदी में है। यह तो इन्दिरा गांधी में थी। और उस समय की स्वतंत्र प्रेस में थी। तब के राष्ट्रपति निक्सन घबरा गए थे। कुंठित होकर गालियां बड़बड़ाने लगे थे।

कांग्रेस के कुछ लोग इस समय सही ट्रेक पर हैं। कहा कि जेपी आंदोलन के जरिए इन्दिरा को हटाने की साजिश इसीलिए अमेरिका ने की थी। इन्दिरा गांधी से बांग्लादेश बनाने का बदला लेने के लिए। कांग्रेस में जेपी आन्दोलन के समर्थक भी लोग हैं। लोहिया के भी जो हिन्दू महासभा की तरह अलग थलग पड़ी जनसंघ (भाजपा का पुराना नाम) को मुख्यधारा में लाए। केवल अपने अंध नेहरू विरोध के कारण।

डालर का मामला और ऐसे कई मामले अभी आते रहेंगे। कांग्रेस अगर मजबूत है तो जनता में इनका असर होगा। मैसेज जाएगा। नरेटिव (कहानी) बदलेगा। कांग्रेस को दोनों मोर्चों पर साथ लड़ना होगा। मोदी वाले पर तो राहुल खरगे और कुछ दूसरे कांग्रेसी मजबूती से डटे हुए हैं। अंदर वाले पर कमजोरी है। अंदर के विभीषणों को कोई बाहर नहीं कर पा रहा है। वह बहुत जरूरी है। राहुल-खरगे की असली परीक्षा वही है।

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