-डा. वरिंदर भाटिया-
बसंत बहार और फाल्गुन के महीने फरवरी ने दुनियाभर में शेयर मार्केट निवेशकों का ब्लड प्रैशर अनियंत्रित कर दिया था। पैसों के शेयर मार्केट में निवेश को लेकर भारतीय शेयर बाजार में लगातार गिरावट से लाखों निवेशकों का लाखों करोड़ों रुपया डूबना चिंताजनक रहा है। इसमें हमारे आसपास शेयर मार्केट के नौकरीपेशा, छोटे व्यापारी इत्यादि लाखों रीटेल निवेशक भी शामिल हैं, जो अपनी कीमती बचत और मेहनत की कमाई को शेयर मार्केट में लगाते हैं। इस 28 फरवरी को भारतीय शेयर बाजार में मार्केट खुलते ही निवेशकों के 5.8 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रुपए डूब गए। सितंबर में जब बाजार अपने चरम पर था तब से अब तक निवेशकों की वेल्थ में भारी गिरावट आई है। बीएसई लिस्टेड कंपनियों का कुल मार्केट कैप 85 लाख करोड़ रुपए घटकर 393 लाख करोड़ रुपए रह गया था। दलाल स्ट्रीट यानी कि शेयर मार्केट क्यों लाल हो रही है इसकी कुछ चुनिन्दा वजह बताई जा सकती हैं जिनमें जीडीपी के आंकड़े आने से पहले घबराहट, टैरिफ के मुद्दे पर ट्रंप का अस्पष्ट रुख, आईटी सेक्टर के शेयरों पर दबाव, डॉलर का चढऩा और विदेशी संस्थागत निवेश यानी एफआईआई की बिकवाली का जारी रहना शामिल है। 27 फरवरी को अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि कनाडा और मैक्सिको से आने वाले उत्पादों पर 25 फीसदी टैरिफ दो अप्रैल नहीं बल्कि चार मार्च से प्रभावी हो जाएंगे। ट्रंप ने चीन से आने वाले उत्पादों पर भी 10 फीसदी अतिरिक्त शुल्क लगाने की बात कही। ट्रंप के इन बयानों ने दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड वॉर के तेज होने की आशंकाओं को हवा दे दी है। ऐसे लगता है कि इकोनॉमी के मुकाबले भारतीय बाजार अभी काफी ओवरवैल्यूड हैं और स्टॉक्स काफी महंगे हैं। इस बीच सबसे ज्यादा हैरानी की बात तो यह है कि बीते 4 महीनों से जारी गिरावट के चलते कई स्टॉक्स 50 फीसदी से ज्यादा तक गिर चुके हैं।
अनेक रिपोर्ट बताती हैं कि एक जनवरी से अब तक सभी सेक्टरों के शेयरों में कम से कम 20 से 25 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। इनमें बैंक, आईटी, डिफेंस, ऑटो, पावर, एफएमसीजी, रियलिटी, फर्टिलाइजर, शुगर जैसे सेक्टर हैं। कहा जा रहा है कि इतने सारे सेक्टरों में गिरावट की सबसे बड़ी वजह यह है कि इकोनॉमी में जो उत्साह दिखना चाहिए, वो नहीं दिखा है। लेकिन यह बात ठीक नहीं लग रही क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था बुनियादी तौर पर कमजोर नहीं है। इस समय यह गिरावट यथार्थ यानी वास्तविकता को सही तरीके से प्रतिबिम्बित नहीं कर रही है। इस सत्य को सत्यापित करना जरूरी है। हुआ यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से टैरिफ लगाने के ऐलान से बाजार में नकारात्मकता आई है और इसका असर शेयरों में गिरावट के तौर पर देखने को मिला। इसके अलावा कंपनियों की पिछली तीन तिमाहियों से कमाई घटती दिख रही है। इसका असर शेयर बाजार पर पड़ा है। इसके अतिरिक्त विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार भारतीय बाजारों में बिकवाली कर रहे हैं, जिससे गिरावट तेज हो रही है। अक्टूबर 2024 से विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयरों और बॉन्ड से 20 अरब डॉलर से ज्यादा निकाल लिए हैं। यह हाल के इतिहास में सबसे बड़ी निकासी में से एक है। इस समय चीन की मेटल और निवेश पॉलिसी का भी अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निगेटिव असर पड़ा है। इस वजह से भारतीय शेयर बाजार गिरा है। इसके साथ ही अभी तक दुनिया भर में जियोपॉलिटिकल चिंताएं कम होती नहीं दिखाई देती। रूस-यूक्रेन के मोर्चे पर अनिश्चितता बनी हुई है। इस वजह से कच्चे तेल के दाम को लेकर भी आशंकाएं बरकरार हैं। इस वजह से भारतीय बाजारों में गिरावट देखने को मिली है। आज अंतरराष्ट्रीय कारोबारी दुनिया में अनिश्चितता का माहौल है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से चीन के खिलाफ लगातार टैरिफ के ऐलान ने ग्लोबल शेयर बाजार में आशंका बढ़ा दी है। इस वजह से लोगों ने शेयर बेचने शुरू किए हैं। भारतीय बाजार भी इसी वजह से गिरे हैं। लेकिन यह स्थिति लंबे समय रहने वाली नहीं है। इस वक्त बाजार में सेंटिमेंट काफी कमजोर है। इस सेंटिमेंट में सुधार के बगैर हालात सुधरना मुश्किल है। लेकिन याद रहे कि दीर्घकाल में शेयर बाजार को अनिश्चितता नापसंद है और मुख्यत: यह अनिश्चितता तबसे बरकरार है, जब से डोनाल्ड ट्रंप अमरीका के राष्ट्रपति चुने गए। ट्रंप जो लगातार टैरिफ की घोषणा करते जा रहे हैं, वह बाजार को प्रभावित कर रहा है।
इस बात का पूरा अंदेशा था कि ट्रंप अपने कार्यकाल के शुरुआती महीनों में अमरीका के हित के लिए मोल-भाव करने की खातिर, दूसरे देशों को टैरिफ से डराने में करेंगे और उन्होंने यह काम किया भी है। इसका असर शेयर मार्केट पर नजर आ रहा है। मार्केट में जारी इस गिरावट के बीच बाजार जानकारों ने भारतीय बाजार और शेयरों को वास्तविक कीमतों से ऊपर बताया है। अमरीकी मुद्रा की मजबूती और घरेलू शेयर बाजारों में नकारात्मक रुख ने निवेशकों की धारणा को प्रभावित किया। हाल ही में ट्रंप के टैरिफ ने बाजार में अनिश्चितता का माहौल बना दिया है, जिससे ट्रेडिंग वॉल्यूम कम हुआ है। अमरीका को चीन, कनाडा और मैक्सिको द्वारा लगाए गए टैरिफ से बचना मुश्किल होगा। इससे अमरीका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और ब्याज दरों में वृद्धि की जा सकती है। इसका असर अमरीकी शेयर बाजार पर भी पड़ सकता है, जो ट्रम्प की लोकप्रियता को प्रभावित कर सकता है। यही बात कल अमरीका के अरबपति निवेशक वॉरेन बफेट ने भी कही थी। उन्होंने कहा था कि डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से अमरीका में महंगाई की स्थिति पैदा होगी और लोगों को परेशानी होगी। इन पंक्तियों को लिखे जाने के समय पर आखिरकार भारतीय शेयर बाजार में पिछले तीन महीने से जारी गिरावट के बाद अब कुछ ब्रेक लग गया है।
अनुकूल वैश्विक और घरेलू संकेतों से बाजार में सुधार हुआ, जिससे निवेशकों में विश्वास बढ़ा है। अमरीकी टैरिफ में देरी और आगे की बातचीत की संभावना की रिपोर्ट के बाद ग्लोबल सेंटीमेंट में सुधार हुआ, जिससे वित्तीय बाजारों को स्थिर करने में मदद मिली है। इसके अलावा, कमजोर डॉलर और कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट ने निवेशकों के विश्वास को बढ़ाया है। डॉमेस्टिक फ्रंट पर, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा सिस्टम में एडिशनल लिक्विडिटी डालने के फैसले ने सकारात्मक गति को बढ़ाया है। विशेषज्ञों ने कहा है कि टैरिफ वार्ता भू-राजनीतिक तनाव और अमरीकी डॉलर तथा कच्चे तेल की कीमतों पर उनके प्रभाव पर असर डालेंगे। उन्होंने कहा कि मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए निवेशकों को सकारात्मक लेकिन सतर्क रुख बनाए रखने की सलाह दी जाती है। कुल मिला कर सकारात्मक संभावना यह भी है कि आने वाले दिनों में भारतीय बाजार अर्थव्यवस्था की बुनियादी आर्थिक मजबूती के कारण दोबारा रिकवरी करेगा। बकौल शायर, ‘रात भर का है मेहमां अंधेरा, किसके रोके रुका है सवेरा।’ आशा है शेयर बाजार का अंधेरा शीघ्र छंट जाएगा।