Monday, March 17, 2025
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होली के संदेश को समझें

-सुरेश हिन्दुस्थानी-

भारत भूमि के संस्कार वास्तव में एक ऐसी अनमोल विरासत है, जो सदियों से एक परंपरा के रूप में प्रचलित है। जो समाज में ऐक्य भाव की स्थापना करने का मार्ग प्रशस्त करता है। वर्तमान में जहां परिवार टूट रहे हैं, वहीं समाज में अलगाव की भावना भी विकसित होती जा रही है। इस भाव को समाप्त करने के लिए हमारे त्यौहार हर वर्ष पथ प्रदर्शक बनकर आते हैं, लेकिन विसंगति यह है कि हम इन त्यौहारों को भूलते जा रहे हैं। त्यौहार की परिपाटी को हमने अपनी सुविधा के अनुसार बदल दिया है। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि हम अपनी जड़ों से या तो कट चुके हैं या फिर कटने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। जो व्यक्ति या समाज अपनी जड़ों से कट जाता है वह निश्चित ही पतन की ओर ही जाता है। भारत के त्यौहार हम सभी को जड़ों से जुड़े रहने का प्रेरणीय संदेश देते हैं। यह प्रकृति से जुड़ा है, इसलिए मनुष्य को प्राकृतिक करने में भी हमारे त्यौहार सहायक होते हैं।

भारत के प्रमुख त्यौहारों में शामिल होली को पूरा भारत देश मनाता है। होली के त्यौहार का सांस्कृतिक आधार देखा जाए तो यह परस्पर मनमुटाव को समाप्त करने का एक माध्यम है। भारत की संस्कृति अत्यंत श्रेष्ठ भी इसीलिए ही कही जाती है कि यहां सामाजिक सामंजस्य का बोध है। यहां के सभी त्यौहार आपासी सामंजस्य को बढ़ावा देने वाले होते हैं। इसी प्रकार रंगों का पर्व होली का त्यौहार भी सामंजस्य को बढ़ावा देता है। जिस प्रकार से होली के अवसर पर सभी रंग आपस में घुल मिल जाते हैं, उसी प्रकार से व्यक्तियों के मिलने की भी कल्पना की गई है। सब एक रंग में रंगे हुए ही दिखाई देते हैं। होली के त्यौहार पर दुश्मनों के भी भाव बदल जाते हैं, और सारे देश में दोस्ती का वातावरण निर्मित होता हुआ दिखाई देता है।

वर्तमान में होली के बारे में हम कहते हैं कि पहले जैसी होली अब नहीं होती। यह सत्य है कि कि इसमें परिवर्तन आया है, लेकिन क्या हमने सोचा कि ऐसा परिवर्तन आने के पीछे कारण क्या हैं। वास्तव में इसके लिए हम ही दोषी हैं। पांच दिन के इस त्यौहार की मस्ती को हमने समेट कर रख दिया है और मात्र एक या दो घंटे में पूरा त्यौहार मना लिया जाता है। ऐसे में मात्र एक घंटे में होली का वह भाई चारा वाला स्वरुप कैसे दिखाई देगा। हम व्यक्ति केंद्रित होकर त्यौहार मनाते हैं, जबकि भारतीय त्यौहार का स्वरूप व्यक्ति केंद्रित न होकर समाज केंद्रित है। होली के त्यौहार को इसी रूप में मनाएंगे तब ही हमें वही होली दिखेगी, जो वास्तविक है। वर्तमान में होली के इस पावन पर्व पर हमारे समाज के कई लोग दुश्मनी मिटाना तो दूर, दुश्मनी पालने की कवायद करते हुए दिखाई देते हैं। पिछले कई वर्षों से देश के कई भागों में होली के अवसर पर लड़ाई झगड़े होते हुए भी दिखाई देने लगे हैं। इससे सवाल यह उठता है कि क्या हम होली को वास्तविक अर्थों में मनाने का मन बना पा रहे हैं। अगर नहीं तो तो हमें यह कहने का भी अधिकार भी नहीं है कि होली का स्वरुप पहले जैसा नहीं रहा। पौराणिक मान्यताओं के आधार पर होली के पावन पर्व का निष्कर्ष निकाला जाए तो यही परिलक्षित होता हुआ दिखाई देता है कि जिसके मन में विकार होता है, उसे समाप्त करने का होली का त्यौहार सबसे अच्छा अवसर है, अगर हमने अपने अंदर पैदा हुए विकार को समाप्त करने का प्रयास नहीं किया तो भगवान उस विकार को समाप्त करने का काम कर देंगे। हम जानते हैं कि भगवान नरसिंह ने राक्षस हिरणाकश्यप को इसलिए मार दिया कि उसके अंदर कई प्रकार के विकार समाहित हो गए थे। भगवान के भक्त प्रहलाद ने कई बार चेताया भी, लेकिन उसने अपने अंदर के अहम को समाप्त नहीं किया। विकार को समाप्त करने का पर्व होली है। बुराई पर विजय का प्रतीक होली है।

रंगों का पर्व होली हिन्दुओं का पवित्र त्यौहार है। यह मौज-मस्ती व मनोरंजन का त्योहार है। सभी हिंदू जन इसे बड़े ही उत्साह व सौहार्दपूर्वक मनाते हैं। यह त्यौहार लोगों में प्रेम और भाईचारे की भावना उत्पन्न करता है। जिस प्रकार बसंत के मौसम में रंग बिखरते हैं, उसी प्रकार से होली के अवसर पर भी रंग बिखरते हुए दिखाई देते हैं। रंगों का अर्थ है, मन में बसंत की बहार का उल्लास। अगर होली के अवसर पर हमारे मन में उल्लास नहीं है तो फिर होली के मायने ही क्या है? इसलिए होली पर मन की प्रफुल्लता बहुल जरुरी है। प्राकृतिक रुप से फाल्गुन की पूर्णिमा ही नहीं अपितु पूरा फाल्गुन मास होली के रंगों से सराबोर हो जाता है। होली का त्योहार ज्यों-ज्यों निकट आता जाता है, त्यों-त्यों हम नए उत्साह से ओत-प्रोत होने लगते हैं ।

होली का पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस पर्व का विशेष धार्मिक, पौराणिक व सामाजिक महत्व है। इस त्योहार को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है। प्राचीनकाल में हिरण्यकश्यप नामक असुर राजा ने ब्रह्मा के वरदान तथा अपनी शक्ति से मृत्युलोक पर विजय प्राप्त कर ली थी। अभिमानवश वह स्वयं को अजेय समझने लगा। सभी उसके भय के कारण उसे ईश्वर के रूप मे पूजते थे, परंतु उसका पुत्र प्रहलाद ईश्वर पर आस्था रखने वाला था। जब उसकी ईश्वर भक्ति को खंडित करने के सभी प्रयास असफल हो गए तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को यह आदेश दिया कि वह प्रहलाद को गोद में लेकर जलती हुई आग की लपटों में बैठ जाए, क्योंकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, परंतु प्रहलाद के ईश्वर पर दृढ़-विश्वास के चलते उसका बाल भी बांका न हुआ, बल्कि स्वयं होलिका ही जलकर राख हो गई। तभी से होलिका दहन परंपरागत रूप से हर फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस बात से कहा जा सकता है कि कुटिलता पूर्वक चली गई चाल कभी सफल नहीं हो सकती है। भगवान की भक्ति के समक्ष सारी कुटिलता धरी की धरी रह जाती है। हम सभी को भगवान की भक्ति के समक्ष कुछ भी नहीं हैं। व्यक्ति वाहे कितना भी सामर्थ्यवान हो जाए, लेकिन जिन लोगों पर भगवान का आशीर्वाद है, उनका कभी कोई बिगाड़ नहीं सकता।

होली का त्योहार प्रेम और सद्भावना का त्योहार है, परंतु कुछ असामाजिक तत्व प्राय: अपनी कुत्सित भावनाओं से इसे दूषित करने की चेष्टा करते हैं। ऐसे लोग होली के मूल और सांस्कृतिक स्वभाव को बिगाडऩे का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों को होली से कोई मतलब नहीं है।

होली पर नशा करना भी एक शौक होता जा रहा है। आवश्यकता है कि हम सभी एकजुट होकर इसका विरोध करें ताकि त्योहार की पवित्रता नष्ट न होने पाए। ऐसे लोगों से हम यही कहना चाहते हैं कि उन्हें होली की पवित्रता को ध्यान में रखकर ही होली मनाना चाहिए। जिस प्रकार से भगवान नरसिंह ने धरती से बुराई का नाश किया, उसी प्रकार से हम भी अपने समाज में फैली बुराइयों का अंत करने में सहयोग करें। इसके लिए सबसे पहले अपने स्वयं के भीतर बुराई का त्याग करना होगा। तभी होली का सार्थकता मानी जाएगी। यह पर्व हमारी संस्कृतिक विरासत है। हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम मूल भावना के बनाए रखें ताकि भावी पीढिय़ाँ गौरवान्वित हो सकें।

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