Saturday, March 15, 2025
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भीड़ का कुसूर, सरकार बेकसूर!

-सोनम लववंशी-

रेलवे स्टेशन पर भगदड़ मचती है, लोग कुचले जाते हैं, चीख-पुकार मचती है, और सरकार कहती है- मोक्ष मिल गया! अगर यही मोक्ष है, तो फिर कुंभ न हुआ, सरकारी वधस्थल हो गया। अब कुंभ में जाने का मतलब सिर्फ आस्था नहीं, बहादुरी का टेस्ट भी है। स्टेशन पर कदम रखते ही आप दो चीजों का सामना करते हैं- एक, असहनीय भीड़, और दूसरा, प्रशासन की अनुपस्थिति। भीड़ से बच गए, तो समझो पुण्य कमाया, और अगर भगदड़ में फंस गए, तो मोक्ष पक्का! नया सरकारी फार्मूला यही है- मरो, तो मोक्ष मिलेगा, बच गए, तो गंगा नहाने का सौभाग्य!

हर बार की तरह, इस बार भी सरकार के बयान शानदार रहे- अज्ञात तत्वों ने अफवाह फैलाई, भीड़ बेकाबू हो गई, पर प्रशासन ने तुरंत कार्रवाई की! कार्रवाई इतनी तेज़ थी कि जब तक मदद पहुंची, मोक्ष एक्सप्रेस अपना अगला स्टेशन पार कर चुकी थी। याद कीजिए, 2013 प्रयागराज कुंभ की भगदड़। स्टेशन पर प्लेटफॉर्म अचानक बदल दिया गया और देखते ही देखते 36 लोग भगवान के चरणों में समा गए। तब के प्रशासन ने गलती मानी, कुछ अफसरों ने इस्तीफा भी दिया। लेकिन 2025 के कुंभ में सरकार इतनी आध्यात्मिक हो चुकी है कि इस्तीफे की बात छोड़िए, अब वह खुद भगवान की भूमिका निभाने लगी है- हमने सबको मोक्ष दिलाया! अब तो सरकार को यह तय कर लेना चाहिए कि भगदड़ में मरने वालों के लिए रेलवे काउंटर पर ही मोक्ष बीमा योजना शुरू कर दी जाए। 500 रुपये में प्लेटफॉर्म टिकट और स्वर्ग लोक की एडवांस बुकिंग! और जो लोग वेटिंग लिस्ट में रह जाएं, उन्हें अगले कुंभ तक टिकट कन्फर्म होने का भरोसा दे दिया जाए। आखिरकार, धर्म और पर्यटन का यह महामिलन बिना सरकारी मार्केटिंग के कैसे पूरा हो सकता है? भगदड़ के बाद सरकारें हमेशा एक ही नीति अपनाती हैं- पहले मौतों की संख्या कम कर दो, फिर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ा दो। अगर 50 करोड़ लोग कुंभ में आ चुके हैं, तो यह मान लिया जाए कि आधे हिंदू भारत में इस बार गंगा स्नान कर चुके ! अगले हफ्ते तक यह आंकड़ा 80 करोड़ हो जाए तो आश्चर्य नहीं करिएगा, सरकार इसे अविश्वसनीय उपलब्धि घोषित कर देगी।

आज के डिजिटल युग में मौत के आंकड़े भी आत्मनिर्भर भारत का हिस्सा बन चुके हैं। कुंभ में आने वालों की संख्या हर घंटे बदलती है- आज 50 करोड़, कल 80 करोड़! यानी आधे हिंदुस्तान को सरकार पहले ही मोक्षमार्ग पर भेज चुकी है। फिर जब भगदड़ होती है, तो मृतकों की संख्या इतनी गोपनीय रखी जाती है, मानो कोई सरकारी रक्षा सौदा हो! लेकिन असली खेल तब शुरू होता है जब हादसे के बाद सरकार भीड़ को ही दोषी ठहराने लगती है। श्रद्धालु अनुशासित नहीं थे, अफवाहें फैलीं, कुछ असामाजिक तत्व घुस आए! अरे सरकार, अगर इतनी ही अनुशासनप्रिय है, तो वीआईपी लोग हेलिकॉप्टर से क्यों आ रहे हैं? क्यों मंत्रियों के लिए रेड कार्पेट बिछता है और आम श्रद्धालु रेलवे स्टेशन पर धक्के खाते हैं? क्या भीड़ कंट्रोल सिर्फ आम आदमी के लिए होता है? नेता और वीआईपी लोग कभी भगदड़ में नहीं मरते, क्योंकि वे स्पेशल गाड़ियों, हेलिकॉप्टरों और पुलिस सुरक्षा के घेरे में चलते हैं। अगर भगदड़ में मरना ही मोक्ष है, तो वीआईपी को सुरक्षा घेरे की जरूरत क्यों? इन नेताओं और अफसरों को भी बिना टिकट वाली भीड़ में खड़ा किया जाए, और देखा जाए कि उनका मोक्ष कब और कैसे प्राप्त होता है!

सरकार को एक नया बोर्ड रेलवे स्टेशनों पर लगवा देना चाहिए- सावधान! यह मोक्ष प्राप्ति स्थल है। कृपया अपने अंतिम संस्कार की तैयारी करके आएं! टिकट खिड़की पर लिखा हो- जनरल टिकट – अगले जन्म में मोक्ष की वेटिंग, कन्फर्म टिकट – सीधे बैकुंठ एक्सप्रेस! भगदड़ में मारे गए लोग गरीब थे, मजबूर थे, और सबसे बड़ी बात- सरकार पर भरोसा कर बैठे थे। उन्होंने मान लिया कि इस बार सबकुछ बेहतर होगा, अव्यवस्था नहीं होगी, लेकिन हुआ वही जो हर बार होता है। प्रशासन ने कहा- हमने सारी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद की हैं। जनता ने भरोसा किया, और बदले में भगदड़ में कुचलकर मर गई। अब प्रशासन सफाई देने में लगा है, और भक्तों की मौत को मोक्ष बताकर अपने पाप धो रहा है। अब तो लगने लगा है कि देश में मरने के भी दो कोटे हैं- एक वीआईपी मौतें होती हैं, जिन पर संसद तक हिल जाती है, और दूसरी आम आदमी की मौतें, जो प्रशासन के लिए यात्रा के दौरान मोक्ष प्राप्ति जैसी छोटी-मोटी बात हैं। पर असली सवाल कोई नहीं पूछता मरने वाले कौन थे? गरीब, मजदूर, छोटे किसान, वे लोग जो सरकार के वादों पर भरोसा कर बैठे। लेकिन उन्हें सरकार की गलती से मरा घोषित करने की बजाय, धर्म लाभ मिल गया! वाह री राजनीति, वाह री मोक्ष की दुकानदारी !

इतिहास जब महाकुंभ 2025 की समीक्षा करेगा, तो इसमें श्रद्धालुओं की भीड़ के साथ सरकार की जमीनी असफलता भी दर्ज होगी। इन हादसों को ईश्वरीय इच्छा बताने वालों को यह समझना चाहिए कि भगवान व्यवस्थाएं नहीं बनाते, यह जिम्मेदारी सरकार की होती है। लेकिन जब सरकार खुद भगवान बनने लगे, तो मौत को मोक्ष में बदलने में देर नहीं लगती। तो अगली बार जब आप रेलवे स्टेशन पर कदम रखें, तो एक सवाल जरूर पूछें- क्या मैं यात्रा पर निकला हूं या मोक्ष एक्सप्रेस पकड़ने? हकीकत यह है कि आस्था को कारोबार बना दिया गया है, मोक्ष को राजनीति का औजार, और भीड़ को सरकार की नाकामी छिपाने का बहाना। कुंभ आता रहेगा, भगदड़ मचती रहेगी, लोग मरते रहेंगे, और सरकार अगले कुंभ के लिए नई योजनाएं बनाती रहेगी। लेकिन सवाल वहीं का वहीं रहेगा- आखिर कब तक सरकार बेगुनाहों को मौत के मंजर में उतारती रहेगी?

(स्वतंत्र लेखिका एवं शोधार्थी)

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