Friday, August 1, 2025
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धर्मान्तरण के खेल पर विपक्ष का मौन

-डा. रवीन्द्र अरजरिया-

समूची दुनिया में लोगों की निजी मान्यताओं को प्रभावित करने वाले प्रयासों में अचानक तेजी आ गई है। व्यक्तिगत जीवन शैली को साम्प्रदायिक मूल्यों के अनुरूप परिवर्तित करने वालों की भीड बढने लगी है। ऐसे गिरोहों को आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक सहयोग देने वालों की संख्या में निरंतर इजाफा होता जा रहा है। मजहब के नाम पर चलने वाली दुकानों को धार्मिक उन्माद फैलाने वाले कारखानों में बदल दिया गया है। पैसों की चमक, प्रतिष्ठा का लालच और विलासता का वैभव दिखाकर मासूम लोगों की भावनाओं से खुलेआम खिलवाड हो रहा है। जबरन धर्मान्तरण, निकाह और जेहाद के अनगिनत मामले तेजी से उजागर हो रहे हैं जिसमें सरकारी मशीनरी के महात्वपूर्ण कलपुर्जों को दबंगी से उपयोग किया गया है। पुलिस, प्रशासन और न्याय के मंदिरों का दुरुपयोग करने वालों की मनमानियों रह-रहकर सामने आ रहीं हैं। निजी सम्पर्क, चांदी की चमक और राजनैतिक प्रभाव से निर्दोषों पर कहीं झूठी प्राथमिकी दर्जा करायी गई तो कहीं कानूनी शिकंजा कसा गया। कहीं कार्यपालिका के आला अफसरों का प्रताडना भरा हुकुम चला तो कहीं पुलिसिया डंडों की बरसात हुई। नक्कारखाने में निरीहों की आवाज तूती बनकर रह गई। शेखों की ऐशगाहों में हिन्दुस्तान की कलियों कुचलने की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती चली गई। भय, डर और खौफ के शस्त्रों का प्रहार करने वाले आतंकी गिरोहों की तादात में इजाफा होता चला गया। सुर्खियों में आने के बाद भी ऐसे अनेक मामलों पर विरोधी दलों के नेताओं के मुंह से निंदा का एक भी शब्द बाहर नहीं आया। उनकी चुप्पी ने उनकी नीतियों, रीतियों और आदर्शों को उजागर कर दिया है। संविधान की किताब लेकर फोटो खिंचाने वाले चेहरों ने जबरन धर्मान्तरण वाले मामलों पर नकाब पहन कर मुंह छिपा लिया। पर्दे के पीछे से चल रहे इस षडयंत्र की बानगी ने ही आने वाले समय के विकार दावानल की दस्तक दे दी है। गांव से लेकर महानगरों तक में फैली अवैध बस्तियों में गैरकानूनी हथियारों की बडी खेपें मौजूद है। यह जानकारी वहां के स्थानीय प्रशासन और पुलिस के पास निरंतर पहुंच रही है परन्तु कार्यपालिक ने अभी तक कट्टरता के आतंक तले पनप रही इस विष बेल को उखाडने को प्रयास ही नहीं किया है। इस उपेक्षा के पीछे जहां तंत्र में मौजूद मीर जाफरों की फौज उत्तरदायी है वहीं अनेक राजनैतिक दलों के छाती पीट आयोजन की धमकी भी कारगर हो जाती है। अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही पर आतंकियों की भीडतंत्र, खद्दरधारियों की चीखें और न्यायालयों के फरमान हमेशा ही अवरोध के रूप में खडे होते रहे हैं। यह सब कुछ पूर्व निर्धारित षडयंत्र का व्यवहारिक स्वरूप है जो रह-रहकर सामने आता है। देश की बढती अर्थ व्यवस्था, वैश्विक प्रतिष्ठा और नागरिक खुशहाली को अस्तित्वहीन करने के लिए सीमापार से अनगिनत परियोजनायें चलाईं जा रहीं हैं। इस हेतु अनेक विकसित राष्ट्रों, कट्टर देशों और जेहादी संगठनों द्वारा पूरे देश में आस्तीन के सांपों को पौष्टिक दूध पिलाया जा रहा है। जेहाद के नाम पर जहर की खेती करने वालों ने जन्नत की कल्पना में गर्म खून झौंककर काफिरों को मृत्युदण्ड देने का फतवा जारी कर दिया है। अल्लाह के इस्लाम से कोसों दूर मुल्ला का इस्लाम अब मानव जाति पर कहर बनकर टूट रहा है। व्यवहारिक आबादी के आंकडों में बहुसंख्यक होते ही वहां के इलाकों में तिरंगे से हटकर चांद-तारों की बातें होने लगतीं हैं। सरकारी दफ्तरों तक में रविवार के स्थान पर शुक्रवार का अवकाश तक घोषित कर दिया जाता है। यह देश की विडम्बना ही है कि समय के साथ सभी ज्वलंत और अमानवीय मुद्दे खामोशी अख्तियार कर लेते हैं। कोरोना काल में जिस तबलीगी जमात पर वायरस फैलाने, सरकारी आदेश न मानने और जबरन मनमानियां करने के आरोप लगाये गये थे, उस घटना पर की गई कानूनी कार्यवाही आज तक सामने नहीं आई। उत्तराखण्ड के वन क्षेत्रों में अवैध रूप से बनाई गई 5 हजार से अधिक मजारों के सुर्खियों में आने के बाद भी परिणाम सामने नहीं आये। राजनैतिक दलों के मुखियों ने हमेशा ही ‘देश की जनता जानना चाहती है’, ‘देश को जानने का हक है’, ‘देश को बताया जाना चाहिए’, जैसे शब्दों का प्रयोग करके निहित स्वार्थों को साधने के लिए हमेशा से वोट बैंक बढाने के लिए षडयंत्र किया है। इसी के तहत कभी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का नारा दिया गया तो कभी भगवां आतंक का राग अलापा गया। कभी अनुसूचित जाति-जनजाति जैसे शब्दों को तलवार बनाकर सौहार्य की हत्या की गई तो कभी सनातन को मनुवाद कहकर कोसा गया। ऐसा करने वालों के निशाने पर केवल और केवल सनातन, हिन्दू और वैदिक परम्पराओं का अनुशरण करने वाले ही रहते हैं। ऐसे लोग कट्टरता से लोहा लेने की सोचने मात्र से ही सिहर जाते हैं। धर्मान्तरण के खेल पर विपक्ष का मौन उनकी मान्यताओं को उजागर करने के लिए पर्याप्त है। राजनैतिक ठेकेदार बनकर देश के नागरिकों को जातिगत जनगणना से खण्ड-खण्ड करने का मनसूबा पालने वाले षडयंत्रकारी अब पूरी तरह से बाह्य आक्रान्ताओं के पदचिन्हों पर ही कदमताल करने लगे हैं। इन्हें रोकने के लिए आम आवाम को आगे आना पडेगा तभी सफेदपोश अपराधी पूरी तरह बेनकाब हो सकेंगे। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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