Tuesday, September 3, 2024
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निजी मोबाईल कंपनियों को मिली लूट की छूट?

-तनवीर जाफ़री-

जिस समय लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में तीन गुना ताक़त व सामर्थ्य से सरकार चलाने व जनकल्याण सम्बन्धी अनेक दावे व वादे कर रहे थे उस समय देश की जियो रिलायंस, एयरटेल व वोडाफोन आइडिया जैसी तीन सबसे बड़ी कम्पनियाँ भारतवर्ष के लगभग 109 करोड़ मोबाइल फ़ोन उपभोक्ताओं पर 34, 824 करोड़ रुपए वार्षिक का आर्थिक बोझ डालने का फ़ैसला कर चुकी थीं। इन कंपनियों द्वारा अपने ग्राहकों के लिये मोबाइल शुल्क को बढ़ाते हुए अब बढ़ी कीमतों के साथ नए प्लान बाज़ार में उतारे गए हैं। इस बढ़े हुये टैरिफ़ के बाद अब ग्राहकों पर मोबाइल टैरिफ पर होने पर वाला उनका ख़र्च औसतन 15 प्रतिशत और बढ़ गया है। ग़ौरतलब है कि देश के कुल लगभग 119 करोड़ में से 109 करोड़ सेल फ़ोन उपभोक्ता केवल रिलायंस जियो, एयरटेल और वोडाफ़ोन का मोबाईल कनेक्शन प्रयोग करते हैं जबकि शेष दस करोड़ उपभोक्ताओं में बीएसएनएल व अन्य छोटी क्षेत्रीय स्तर की कई कम्पनीज़ हैं। लोकसभा चुनाव समाप्त होने व एन डी ए का तीसरा कार्यकाल शुरू होने के बाद इन कंपनियों द्वारा लिया गया यह निर्णय निश्चित रूप से मोबाइल फ़ोन उपभोक्ताओं को यह सोचने के लिये मजबूर करता है कि क्या रेट बढ़ाने के लिये यह कम्पनियाँ चुनाव समाप्त होने की प्रतीक्षा में थीं? और यह भी कि चुनाव पूर्व इन कंपनियों द्वारा अपने टैरिफ़ में बढ़ोतरी इसलिये नहीं की गयी ताकि सत्ता को 109 करोड़ मोबाइल फ़ोन उपभोक्ताओं के ग़ुस्से का सामना न करना पड़े? ग़ौरतलब है कि भारतीय मोबाईल बाज़ार में इस समय रिलांयस जियो के पास लगभग 48 करोड़ उपभोक्ता हैं जबकि एयरटेल के पास क़रीब 39 करोड़ तथा वोडाफोन आइडिया के पास 22 करोड़ 37 लाख मोबाईल फ़ोन उपभोक्ता हैं। तीनों ही कम्पनीज़ ने पूरे आपसी तालमेल के साथ केवल एक एक दिन के अंतराल पर क़ीमतों में इज़ाफ़ा किया। जैसे रिलायंस जियो ने 27 जून को अपने रेट 12 प्रतिशत से 27 प्रतिशत तक बढ़ाये तो एयरटेल ने 28 जून को 11 से 21 प्रतिशत रेट बढ़ाये इसी तरह 29 जून को वोडाफोन आइडिया ने औसतन लगभग 16 प्रतिशत रेट बढ़ा दिये। विपक्ष का सीधा आरोप है कि यह कंपनियों अपनी मनमानी करते हुये अपने हिसाब से फ़ोन दर बढ़ा रही हैं और उपभोक्ताओं की जेब पर डाका डाल रही हैं। एक प्रमुख अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार केवल मोबाईल फ़ोन टेरिफ़ चार्ज बढ़ाने से देश में मुद्रा स्फ़ीति की दर में 0.02% की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। इसका ज़िम्मेदार आख़िर कौन होगा?

इसी बीच दूरसंचार मंत्रालय की ओर से एक बयान जारी कर एक तरह से टेलीकॉम कंपनियों का बचाव करते हुये यह कहा गया है कि ‘ टैरिफ़ की दर टेलीकॉम कंपनियां डिमांड एंड सप्लाई के आधार पर निर्धारित करती हैं। ये कंपनियां अपने उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करने के लिए टेक्नोलॉजी और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ख़र्च कर रही हैं और इस निवेश को फ़ाइनेंस करने के लिए ही टैरिफ़ बढ़ाने जैसे फ़ैसले लिए जाते हैं’। दरअसल भारत में टैरिफ़ सम्बन्धी फ़ैसले भारतीय दूर संचार नियामक प्राधिकरण TRAI गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए कंपनियां करती हैं। सरकार स्वतंत्र बाज़ार के फ़ैसलों में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करती है। ख़बरों के अनुसार पिछले दिनों इन टेलीकॉम कंपनियों द्वारा देश में ग्राहकों को 5 जी नेटवर्क की सुविधा देने के लिए तकनीकी क्षेत्र में भारी निवेश किया गया है। अब ग्राहकों को 5 जी सर्विस का लाभ उठाने के लिए 71 फ़ीसदी ज़्यादा शुल्क देना होगा। जबकि आंकड़ों के अनुसार यदि 5 जी सुविधा देने के बदले यही कम्पनीज़ 15 से 17 फ़ीसदी प्रति उपभोक्ता औसतन शुल्क भी बढ़ाती हैं तो भी उन्हें अपनी लागत वापस मिल जायेगी। परन्तु सवाल यह है कि पूंजीपतियों के हितों का ध्यान रखने वाली सरकारें बढ़ चढ़कर उपभोक्ता हितों की केवल बातें तो करती हैं परन्तु या तो यह पूजीपतियों के हक़ में फ़ैसले करती हैं या उनके द्वारा उठाये गये इसतरह के मनमानी फ़ैसलों पर न केवल ख़ामोश रहती हैं बल्कि उन्हीं के पक्ष में कई तर्क भी दे डालती हैं।

उपरोक्त तीनों निजी कंपनियों द्वारा शुल्क दर बढ़ाने के बाद ख़बरें यह भी आ रही हैं कि इन कम्पनीज़ के तमाम उपभोक्ता इन्हें छोड़ अब बी एस एन एल का कनेक्शन ले रहे हैं। निजी मोबाईल द्वारा रिचार्ज टैरिफ़ बढ़ाए जाने के बाद बी एस एन एल ने भी प्रतिस्पर्द्धा में छलांग लगाते हुये तत्काल एक सस्ता और किफ़ायती टैरिफ़ प्लान भी पेश किया है। साथ ही बीएसएनएल की ओर से यह घोषणा भी की गयी है कि कंपनी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में 10 हज़ार 4G टॉवर लगाये हैं। इस घोषणा के बाद संभावना है कि बीएसएनएल जल्द ही 4G सर्विस शुरू कर सकती है। ग़ौरतलब है कि बीएसएनएल ने अप्रैल महीने तक देश भर में लगभग 3500 टॉवर स्थापित किए थे जोकि अब इस महीने यानी जुलाई तक 10 हज़ार तक पहुंच गए हैं।

यह वही बी एस एन एल है जो सभी मूलभूत सुविधाओं के मौजूद होने के बावजूद केवल सरकारी निष्क्रियता व अवहेलना के चलते निजी क्षेत्र की कम्पनीज़ से लगातार पिछड़ता जा रहा था और ठीक इसके विपरीत निजी कम्पनीज़ सरकारी संरक्षण में फल फूल रही थीं। यहाँ तक कि निजी कम्पनीज़ द्वारा पूरे देश में बी एस एन एल के अनेक टावर्स भी इस्तेमाल किये जा रहे थे। याद कीजिये जिस दिन जियो रिलायंस की शुरुआत हुई थी उस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चित्र कम्पनी द्वारा देशभर के अख़बारों के मुख्य पृष्ठ पर अपने विज्ञापन में इस्तेमाल किया गया था जिसपर काफ़ी बवाल मचा था। बहरहाल अब इन निजी कम्पनीज़ द्वारा मनमानी तरीक़े से शुल्क बढ़ाये जाने के बाद जिस तरह ग्राहकों में बी एस एन एल में ‘घर वापसी’ की होड़ मची है उसे देखकर बी एस एन एल के दिन फिरने की उम्मीद तो जगी ही है। साथ ही इन तीनों निजी कम्पनीज़ से ग्राहकों का मोह भांग होने के बाद इनके भी होश ठिकाने लगेंगे तभी ग्राहकों के साथ की जाने वाली इनकी व इन जैसी दूसरे क्षेत्रों की अन्य निजी कम्पनीज़ की मनमानी पर भी नियंत्रण लग सकेगा।

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