Saturday, March 15, 2025
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मणिपुर में राष्ट्रपति शासन : आखिर हार ही गए मोदी जी मणिपुर में

-राकेश अचल-

शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत ! मणिपुर में अभी न तो कोई चुनाव हुआ है और न होने की कोई संभावना है, फिर आप कहेंगे कि भाजपा कैसे हार गयी? तो जबाब है कि भाजपा किसी विरोधी दल से नहीं हारी बल्कि अपने आप से हार गयी वो भी प्रदेश में नए मुख्यमंत्री का चुनाव करने के मुद्देपर हारी। भाजपा की मणिपुर में गठबंधन की सरकार थी, लेकिन मुख्यमंत्री वीरेन सिंह के इस्तीफा देने के बाद भाजपा का अजेय नेतृत्व मणिपुर की सरकार को सम्हाल नहीं पाया। अब मणिपुर को देश कि नेताओं को दही शक़्कर खिलने वाली राष्ट्रपति कि नाम से चलने वाला शासन सम्हालेगा।

मणिपुर देश का वो बदनसीब सूबा है जो कुशासन कहिये या दुशासन की वजह से पिछले दो साल में जातीय हिंसा के जलते पूरी तरह बर्बाद हो गया है और इसके लिए सीधे तौर पर भाजपा की डबल इंजन की सरकार जिम्मेदार है। जलते मणिपुर की आग बुझाने में न केवल राज्य की भाजपा सरकार नाकाम रही बल्कि केंद्र की भाजपा सरकार भी कुछ नहीं कर पायी। देश के प्रधानमंत्री ने पिछले दो साल में दर्जनों विदेश यात्राएं की किन्तु एक बार भी मणिपुर जाकर वहां की हिंसा रोकने की जहमत प्रधानमंत्री ने नहीं उठाई और नतीजा आपके सामने है। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है।

भाजपा ने हाल ही में हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में अखंड विजय हासिल की लेकिन एक पूर्वोत्तर राज्य का मुख्यमंत्री चुनने में भाजपा की मोशा जोड़ी हार गयी। जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री को लेकर सहमति नहीं बनने के कारण राज्य में यह कदम उठाया गया। मणिपुर में विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त 2024 को पूरा हुआ था और अगला सत्र छह महीने के अंदर बुलाया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. संविधान के अनुच्छेद 174(1) के मुताबिक विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का अंतर नहीं हो सकता है।

भारत में राष्ट्रपति शासन काइस्तेमाल एक ऐसे अमोघ अस्त्र के रूप में किया जाता है जो किसी भी निर्वाचित सरकार को अपदस्थ करने के लिए किया जाता है, खासतौर पर किसी विरोधी दल की सरकार को गिराने के लिए। भाजपा सरकारों ने अब तक तक इसका प्रयोग कुल 15 बार किया है, जिसमें 5 बार अटल बिहारी की सरकार ने और 10 बार वर्तमान मोदी की सरकार ने। . देश में सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन लगाने वाली कांग्रेस की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी रही है। राष्ट्रपति शासन लगाना इंदिरागांधी का प्रिय शगल था। लेकिन मजे की बात ये है कि हाल ही में राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर कांग्रेस पर हमलावर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को भी अपने तीसरे शासन काल के पहले साल में ही राष्ट्रपति शासन के हथियार का इस्तेमाल करना पड़ा और वो भी अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ। ये तो ठीक ऐसे ही हुआ जैसे कोई अपने ही कन्याभ्रूण की हत्या कर दे !

बहुत ज्यादा पुरानी बात नहीं है। अभी 10 फरवरी 2025 को ही संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष खासकर कांग्रेस पर जमकर बरसे थे। राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव की चर्चा का जबाबा देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि उनकी सरकारों ने चुनी हुई सरकारों को गिराने का सबसे ज्यादा काम किया। मोदी जी ने कहा, था-वो कौन लोग हैं जिन्होंने आर्टिकल 356 का दुरुपयोग किया? एक प्रधानमंत्री ने आर्टिकल 356 का 50 बार दुरुपयोग किया और वो नाम है श्रीमती इंदिरा गांधी का. विपक्षी और क्षेत्रीय दलों की सरकारों को गिरा दिया गया। केरल में वामपंथी सरकार चुनी गई, जिसे नेहरू पसंद नहीं करते थे, उसे गिरा दिया गया। करुणानिधि जैसे दिग्गजों की सरकारें गिरा दी गईं। एनटीआर के साथ कांग्रेस ने क्या किया? प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी कहा कि कांग्रेस ने हर क्षेत्रीय नेता.को परेशान किया। 90 बार चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया. कांग्रेस सरकार ने डीएमके और वामपंथी सरकारों को गिरा दिया।

सवाल ये है कि अब मोदी जी मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागो करने के बाद क्या भाषण देंगे? क्या वे अपनी आलोचना खुद कर सकेंगे, शायद नहीं। ऐसा करने की सामर्थ उनमें नहीं है। माना कि इंदिरा गाँधी ने जो अपराध किये वे अक्षम्य थेकिन्तु अब मोदी जी भी यही अपराध क्यों कर रहे हैं? मोदी जी ने तो अपनी ही पार्टी की सरकार को गिराया है, क्या उन्हें अपनी ही सरकार से दुश्मनी थी? हैरानी की बात ये है कि 60 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के पास 37 विधायक और सहयोगी दलों के 11 विधायक हैं। बावजूद इसके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया है। आपको याद होगा की वर्ष 2022 में मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार बनाई थी. 60 विधानसभा सीटों वाले राज्य की विधानसभा में बीजेपी ने 32, कांग्रेस ने 5 और अन्य ने 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी। नतीजों के करीब पांच महीने बाद जनता दल यूनाइटेड के जीते हुए 6 में से 5 विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी।

मेरा अपना आकलन है कि नरेंद्र मोदी के 11 साल के शासन में पहली बार पार्टी की अंदरूनी लड़ाई इस तरह से खुलकर सतह पर आई है. राष्ट्रपति शासन लगने के बाद मोदी की सख्त प्रशासक वाली छवि मिटटी में मिल गयी है। मणिपुर में डबल इंजन की सरकार के नारे की हवा निकल गई है। आप मानकर चलिए की मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद ज्यादा कुछ बदलने वाला नहीं है, क्योंकि पहले भी मणिपुर में सरकार तो केंद्र से ही चल रही थी। मजे की बात ये है कि देश में पहली बार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने साल 1951 में किया था. इसे पंजाब में लगाया गया था, जिसे करीब एक साल तक जारी रखा गया था.और आखरी बार राष्ट्रपति शासन नेहरू के कटटर विरोधी मोदी ने लगाया है। लगता है की मोदी हर मामले में नेहरू बनना चाहते हैं, लेकिन बन नहीं पा रहे हैं। हाय री किस्मत!

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